देश और समाज के हित के लिए कार्य करने वाली लक्ष्मीबाई केलकर ने महिलाओं में बोया आत्मनिर्भर का बीज
देश और समाज के हित के लिए कार्य करने वाली लक्ष्मीबाई केलकर न केवल महिलाओं को शिक्षित करने की बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की भी बात करती थीं। उनका मानना था कि स्त्री राष्ट्रशक्ति का एक मजबूत स्तंभ है। यदि स्त्री मजबूत होगी तो राष्ट्र भी मजबूत होगा...
निहारिका पोल सर्वटे। भारत के स्वाधीन होने की बात जब भी चलती है तो दिमाग में बहुत से क्रांतिकारियों के नाम आते हैं। देश के लिए बलिदान होने वाले इन क्रांतिकारियों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं। फिर चाहे वो ऊदा देवी हों, कनकलता बरुआ हों, कित्तूर रानी चेन्नम्मा हों, रानी लक्ष्मीबाई हों या अन्य बहुत सी स्वतंत्रता सेनानी। यही नहीं इन नामों में से कई ऐसे नाम हैं, जो केवल स्वाधीनता संग्राम में ही नहीं, बल्कि इसके बाद भी देश की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने हैं। उन्होंने केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर ही नहीं बनाया है, बल्कि उनके लिए ऐसे संगठनों की स्थापना की और काम किया, जिन्होंने देश की महिलाओं को संस्कार, स्वधर्म और संघर्ष की प्रेरणा दी है।
इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नाम है लक्ष्मीबाई केलकर का। इन्होंने राष्ट्रसेविका समिति की स्थापना कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया और उन्हें स्वयं के लिए और राष्ट्र के लिए सदैव खडे़ रहने का संकल्प दिलाया। राष्ट्रसेविका समिति के माध्यम से लक्ष्मीबाई केलकर ने एक सुसंस्कृत और आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न संजोया और उसे साकार भी करवाया।
13 अगस्त, 1947 का दिन, भारत और पाकिस्तान का औपचारिक बंटवारा होने में केवल एक दिन शेष था। ऐसे में पाकिस्तान जाने की हिम्मत कौन कर सकता था? वह भी कोई महिला? सोचने मात्र से ही रोंगटे खडे़ हो जाते हैं, लेकिन विषम परिस्थितियों में भी एक साहसी महिला कराची जाकर हिंदू महिलाओं को ढांढ़स बंधाने और उनके प्राणों की रक्षा करने का प्रण करती है। यह साहसी महिला थीं लक्ष्मीबाई केलकर।
वेणुताई के साथ वह कराची हवाई अड्डे पर उतरती हैं और वहां की सेविका बहनों के घर जाती हैं और उनका हौसला बढ़ाती हैं। जिस दिन पाकिस्तान का निर्माण हुआ, जिस कराची में पाकिस्तान बनने का कार्यक्रम हुआ, उसी कराची में लक्ष्मीबाई केलकर चौदह सौ सेविकाओं की एक सभा करके उनमें हिम्मत जगाती हैं और उनके सुरक्षित भारत पहुंचने की योजना बनाती हैं।
लक्ष्मीबाई केलकर को लोग आदर से मौसी जी कहते थे। वह हमेशा कहती थीं कि स्त्री राष्ट्रशक्ति का एक मजबूत स्तंभ है। यदि स्त्री मजबूत होगी तो हमारा राष्ट्र भी मजबूत होगा। मातृत्व, नेतृत्व और कतृत्व का अनूठा संगम थीं लक्ष्मीबाई केलकर। लक्ष्मीबाई का जन्म बहुत ही सुसंस्कृत और शालीन दाते परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम था कमल भास्करराव दाते। घर में धर्म संस्कार भरपूर मिले, लेकिन कम उम्र में ही उनका विवाह विधुर पुरुषोत्तमराव केलकर से हो गया। पुरुषोत्तमराव की पहली पत्नी से दो बेटियां थीं। उन दोनों बेटियों का लालन-पालन भी लक्ष्मीबाई ने ही किया। दुर्भाग्य से शादी के कुछ ही समय बाद पति का निधन हो गया। इस पर उन्होंने विधवा होने का दंश भी झेला।
कुछ समय पश्चात लक्ष्मीबाई ने रामायण आधारित प्रवचन देना प्रारंभ कर दिया। वह हमेशा कहती थीं कि हर घर में प्रभु श्रीराम तभी आएंगे, जब हर घर में सीतामाई होंगी। सीतामाई के होने से ही प्रभु श्रीराम की संपूर्णता होती है। उन्होंने प्रवचनों के माध्यम से रामायण और महाभारत को तत्कालीन समय से जोड़ते हुए युवा पीढ़ी तक उसके सार को पहुंचाया। इसको सुनियोजित तौर पर आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने वर्ष 1936 में राष्ट्रसेविका समिति की स्थापना की। उन्होंने सेविका बहनों को कई सूत्र दिए, जो आगे चलकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में और राष्ट्र के प्रति प्रेम जगाने में मददगार साबित हुए।
महिलाओं के उत्थान हेतु राष्ट्रसेविका समिति में लक्ष्मीबाई केलकर द्वारा दिए गए कुछ सूत्रों में से प्रमुख निम्न हैं-
समाज से अज्ञान दूर हो: यदि स्त्रियां अज्ञानी रहेंगी तो पूरा परिवार अज्ञान से ग्रसित रहेगा। यदि एक महिला शिक्षित और जागरूक होती है तो वह पूरे परिवार को जागरूक करेगी।
धर्म संकल्पना स्पष्ट हो: महिलाओं में अपने धर्म के प्रति आस्था हो साथ ही वे संस्कारवान भी बनें, लेकिन उन्हें धर्मान्धता और धार्मिक भावनाओं के बीच का अंतर अच्छी तरह से पता हो। महिलाओं को ऐसी सामजिक रूढ़ियों और परंपराओं से मुक्ति मिले, जो उनके आगे बढ़ने में बाधक बनती हैं।
महिलाएं स्वयं की रक्षा करें: शुरू से ही महिलाओं के मन में यह बात घर कर दी जाती है कि उनकी रक्षा कोई और करेगा। यह सही नहीं हैं। महिलाओं को अपनी रक्षा स्वयं करनी चाहिए। इसी वजह से राष्ट्रसेविका समिति में दंडाभ्यास और शारीरिक अभ्यास पर बहुत बल दिया जाता है ताकि देश की हर महिला स्वयं की रक्षा करने के योग्य बन सके।
स्त्री राष्ट्र की आधारशक्ति है: देश और समाज के रीढ़ की हड्डी है स्त्री। यदि स्त्री शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेगी तो उसे देखकर परिवार के सभी लोग उन गुणों को धारण करेगें।
वह हमेशा मानती थीं कि पुरुष चाहे कितना भी पराक्रमी, साहसी या यशस्वी हो। यदि उसे अनुरूप पत्नी न मिले तो उसकी इस सफलता को माटी में मिलते देर नहीं लगती। इसलिए यह जरूरी है कि स्त्री और पुरुष एक साथ मिलकर देश और समाज के विकास के लिए कार्य करें। ऐसा करने से ही सही मायने में समाज का विकास होगा। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण हैं समाज के उत्थान के लिए काम करने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी धर्मपत्नी सावित्री बाई फुले।
लक्ष्मीबाई केलकर ने ये सारे गुण स्त्रियों में अंकुरित करने के लिए ही राष्ट्रसेविका समिति की स्थापना की, जो आज संपूर्ण देश में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, उन्हें सक्षम करने और उनमें आत्मविश्वास जगाने का कार्य कर रही है। उन्होंने समाज कल्याण और स्त्री कल्याण का एक बीज बोया था, जिसका हरा-भरा वृक्ष आज देश में लहरा रहा है। देश रक्षा परम पुण्यं, देश रक्षा परम व्रतं का संकल्प लेकर समिति से जुड़ी महिलाएं एक सक्षम समाज और सुसंस्कृत समाज का निर्माण कर रही हैं और यह परंपरा हमेशा चलती रहेगी। लक्ष्मीबाई केलकर की जन्मतिथि (छह जुलाई) के अवसर पर इससे बड़ी श्रद्धांजलि उनके लिए और क्या हो सकती है।