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Shab-e-Barat 2020: इस्लाम धर्म में क्या है शब-ए-बारात का महत्व?

Shab-e-Barat 2020 इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक इस रात को अगर सच्चे दिल से इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह हर गुनाह से पाक कर देता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Thu, 09 Apr 2020 07:00 AM (IST)Updated: Thu, 09 Apr 2020 07:06 AM (IST)
Shab-e-Barat 2020: इस्लाम धर्म में क्या है शब-ए-बारात का महत्व?
Shab-e-Barat 2020: इस्लाम धर्म में क्या है शब-ए-बारात का महत्व?

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Shab-e-Barat 2020: इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार शाबान माह की 15 तारीख को शब-ए-बारात मनाई जाती है। माना जाता है कि इस रात को अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। इस बार शब-ए-बारात लॉकडाउन के बीच 9 अप्रैल को पड़ी है। शब-ए-बारात में शब का मतलब होता है रात और बारात का अर्थ है बरी। मुस्लिम समुदाय में इस रात को फजीलत यानी महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं। सारी रात इबादत कर वह अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मागते हैं।इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, इस रात को अगर सच्चे दिल से इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह हर गुनाह से पाक कर देता है।

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शब-ए-बारात का महत्व

शब-ए-बारात को (इबादत, तिलावत और सखावत) जिसे सामान्य भाषा में दान- पुण्य करना कहते हैं, को सभी मुस्लिम बड़ी संख्या में करते हैं। इस रात को मस्जिदों और कब्रिस्तानों में सजावट की जाती है। शब-ए-बरात की रात को कब्रिस्तानों में बहुत भीड़ इकट्ठा होती है। 

4 मुकद्दस रातें

शब-ए-बारात इस्लाम की 4 मुकद्दस रातों में से एक है। जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज़, तीसरी शब-ए-बारात और आखिरी शब-ए-कद्र होती है।

क्या है शब-ए-बारात

शब-ए-बरात की पूरी रात को इबादत में गुज़ारने की परंपरा है। इस रात में नमाज़, तिलावत-ए-कुरआन, कब्रिस्तान की ज़ियारत और अपनी क्षमता के अनुसार दान- पुण्य करने में बिताया जाता है। मालवा-निमाड़ में कई प्रकार के स्वादिष्ट मिष्ठान बनाए जाते हैं। यहां पर फातेहा पढ़कर शब-ए-बारात को मनाया जाता है।

कैसे मनाया जाता है ये दिन

मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इस रात को शानदार सजावट की जाती है। इस रात को मुस्लिम धर्मावलंबियों के द्वारा जुलूस और जल्से का इंतज़ाम किए जाते हैं। शब-ए-बरात की रात शहर में कई स्थानों पर जलसों का आयोजन किया जाता है। हालांकि, इस बार लॉकडाउन के चलते पुरुषों को मस्जिदों और कब्रिस्तान में जाने की इजाज़त नहीं होगी। इसलिए इस बार पुरुष भी घरों में रहकर नमाज़ पढ़ेंगे और इबादत करेंगे।


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