मुश्किल में हैं मम्मी और बच्चे
आजकल पैरेंटिंग सबसे कठिन काम हो गया है। एक ओर जहां बच्चे कहते हैं कि उनके मम्मी-पापा उन्हें समझते नहीं तो दूसरी ओर मम्मी भी हैं हैरान और परेशान। क्या है इसका सही हल, आइए जानें...
पिछले रविवार को बाजार में अचानक मेरी मुलाकात एक पुरानी सहेली आयशा से हो गई। बातों ही बातों में आयशा ने बताया कि उसके दोनों बच्चे अब थोड़ा समझदार हो गए हैं, लेकिन समस्या यह है कि हम पति-पत्नी को समझ नहीं आ रहा है कि बड़े हो रहे अपने बच्चों से हम किस रूप में और किस तरह पेश आएं। कारण, दोनों बच्चे अपने मन की करते हैं, वे किसी की सुनते ही नहीं हैं। भले ही कोई उन्हें लाख समझाए, लेकिन उन्हें जो करना होता है, वे वही करते हैं। मैंने आयशा की बातों को गंभीरता से सुनकर यह महसूस किया कि आजकल पैरेंटिंग वाकई एक टफ जाब हो गई है।
कोई कहता है कि बच्चों के साथ सख्ती से पेश आओ अर्थात मम्मी-पापा ही बनकर रहो तो कोई कहता है कि अगर बच्चों का सही पालन पोषण करना है तो उनके दोस्त बनकर रहो।
इस संदर्भ में कोलकाता की सीनियर साइकोलाजिस्ट डा. रूपिना चौधरी कहती हैं कि आजकल का दौर बहुत ही कन्फ्यूज पैरेंटिंग का दौर है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इन दिनों माता-पिता के पास अपने बच्चों को देने के लिए सब सुविधाएं तो हैं, लेकिन समय नहीं है। ढेर सारी समस्याओं की जड़ यही है। यही वजह है कि बहुत से बच्चे बाहर से तो बहुत कूल माइंड के और समझदार नजर आते हैं, लेकिन है इसके बिल्कुल विपरीत। ऐसे में जरूरी है कि बच्चों को महंगे खिलौने, पैसे और नए-नए उत्पाद देने के साथ ही उनको क्वालिटी टाइम दिया जाए। इसके साथ ही उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों से भी अवगत करवाया जाए। उन्हें सामाजिकता का पाठ पढ़ाने के अलावा नैतिकता की भी शिक्षा देनी चाहिए। उन्हें आधुनिकता का तो ज्ञान हो, लेकिन परंपराओं से भी वे अनभिज्ञ न रहें। समय तेजी से बदल रहा है। ऐसे में लाजिमी है कि बच्चों के तेवर भी बदलेंगे ही। दूसरी ओर यह भी सच है कि दुनिया कितनी भी बदल जाए, बच्चों की पहली पाठशाला उनका घर ही होता है। वे जैसा माहौल घर में देखते हैं, आगे चलकर उसी का अनुसरण करते हैं। डा. रूपिना कहती हैं कि छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर हम अपने बच्चों को सही दिशा दे सकते हैं।
बच्चों से करें बात
आप कामकाजी हैं या गृहिणी इस बात के फेर में न पड़कर प्रतिदिन थोड़ा सा समय बच्चों के साथ अवश्य बिताएं। हर दिन कोशिश करें कि ब्रेकफास्ट, लंच या डिनर में से कोई एक मील टाइम आप सपरिवार साथ होंगी। इस दौरान बच्चों से प्यार से बात करें और अगर उन्हें कोई परेशानी है तो उनकी परेशानियों को समझने की कोशिश करें। साथ ही उन्हें सही सुझाव भी दे सकती हैं।
दिनचर्या में मदद
अगर आपके बच्चे को अपनी दिनचर्या व्यवस्थित करने में प्राब्लम हो रही है तो उसकी दिनचर्या को व्यवस्थित करवाना आपकी जिम्मेदारी है। भले ही आप उसकी पढ़ाई-लिखाई में मदद न कर पा रही हों, लेकिन उसकी दिनचर्या को व्यवस्थित करवाने में जरूर मदद करें। साथ ही उसको इसका महत्व भी समझाएं कि ऐसा करने से क्या फायदा होगा। उदाहरण के लिए उसके सोने, जागने, टीवी देखने, खेलने-कूदने का समय निर्धारित करें। इससे बच्चे को यह सहूलियत रहेगी कि आप उसके पास हैं या नहीं, वह अपनी दिनचर्या को समय के हिसाब से सेट करेगा। उसे पता रहेगा कि स्कूल जाने से पहले और आने के बाद उसका टाइम टेबल निर्धारित है। अगर वह इसका पालन नहीं करेगा तो उसका सारा काम अव्यवस्थित हो जाएगा।
मनोरंजन में साथ दें
बच्चों की परवरिश के संदर्भ में मशहूर साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था कि अगर आप अपने बच्चे को बुद्धिमान बनाना चाहती हैं तो उसे परी कथाएं सुनाएं। अगर अधिक बुद्धिमान बनाना चाहती हैं तो अधिक परी कथाएं सुनाएं। आपने अपने बच्चे को खेलने के लिए भले ही नई से नई टेक्नोलाजी के उत्पाद लाकर दे दिए हों, लेकिन यह मत भूलिए कि जब आप उसके साथ बैठकर मनोरंजन में भागीदारी करती हैं तो बच्चे को जो खुशी मिलती है, वह दुनिया का महंगे से महंगा खिलौना या कोई अन्य उत्पाद नहीं दे सकता है। इसलिए समय निकालकर बच्चों के साथ टीवी देखें, इनडोर गेम खेलें और मोबाइल और इंटरनेट में भी उसकी साथी बनकर खेलें।
प्रकृति के करीब ले जाएं
आज के दौर में बच्चों के पास लेटेस्ट टेक्नोलाजी के उत्पाद हैं। वे घर बैठे-बैठे पूरी दुनिया के बारे में जानकारी कर लेते हैं, लेकिन इसके साथ ही प्रकृति का साथ भी बहुत जरूरी है। इसलिए जब भी मौका मिले बच्चों को प्रकृति के करीब ले जाएं और उन्हें प्रकृति की खूबियों के बारे में बताएं।