'परी आपकी सभी ख्वाहिशें पूरी करती हैं, मैं मां को परी कहती थी': दिव्या दत्ता
अभिनेत्री दिव्या दत्ता ने बीते दिनों अपनी किताब 'मी एंड मां' रिलीज की थी। इसमें उन्होंने अपनी मां के साथ गुजारे पलों को संजोया है। इसमें उनके बचपन और जिंदगी के कई अनसुने किस्से हैं।
मां भांप लेती थीं मेरी सारी इच्छा
दिव्या दत्ता कहती हैं, मैं अपनी मां को परी संबोधित करती थी। पौराणिक कहानियों के मुताबिक परी आपकी सभी ख्वाहिशें पूरी करती हैं। मेरी मां भी बिना कुछ कहे मेरी हर इच्छा को भांप लेती थीं। लिहाजा वह मेरी लिए परी सरीखी थीं। मेरे लिए सुबह उनके मुहं से हैलो सुनना अहम होता था। मां से मिला जोश और हौसलाअफजाई आत्मविश्वास में इजाफा करता है। उनके शब्द मुझे ताकत देते थे। दुनिया को मैं आत्मविश्वास से परिपूर्ण नजर आती हूं। यह देन मेरी मां की है।
पैरेंट्स आपके बेस्ट फ्रेंड होते हैं
मां के बच्चों के प्रति प्रेम, त्याग और समर्पण को आंका नहीं जा सकता है। मैं तो हर दिन मां का शुक्रिया अदा करती हूं। दरअसल, हमारे जीवन की नींव मां ही रखती है। मैंने जब अपनी मां को खोया तब लगा कि बहुत कुछ कहने के लिए है। अमूमन आपके पैरेंट्स आपके बेस्टफ्रेंड नहीं होते हैं, मगर मेरी मां मेरी बेस्टफ्रेंड थीं। हम अपनी सारी बातें एक-दूसरे से साझा करते थे। भले वे खुशी की हों या गम की।
मां से नहीं छुपाई कोई बात
मुझे कभी भी कोई बात मां से छिपाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। लगा नहीं कि फलां बात को दोस्त से साझा करना चाहिए। मां मेरी दोस्त के साथ पथ प्रदर्शक भी रहीं। वह मजबूत स्तंभ की तरह मेरे साथ हमेशा होती थीं। मेरी ख्वाहिश अभिनेत्री बनने की थी। पूरा घर मेरे इस प्रोफेशन के चुनने के खिलाफ था। सिर्फ मेरी मां ने मेरा समर्थन किया। उन्होंने मुझे मेरा सपना साकार करने का पूरा अवसर दिया। उनके प्रयास और दृढ़ निश्चय को देखकर बाकी लोग भी बाद में साथ आए।
तो अभिनेत्री बनने का ख्वाब अधूरा रह जाता
बहरहाल, पीछे मुड़कर देखती हूं तो पाती हूं कि मुझे इंडस्ट्री और प्रशंसकों ने काफी प्यार दिया। अगर मां को मेरे सपने पर यकीन नहीं होता तो मेरा यह मुकाम नहीं होता। पिछले कुछ वर्षों से पैरेंट्स अपने बच्चों को रियलिटी शो में भेजने को आतुर रहते हैं। करीब दो दशक पहले आज जैसा माहौल नहीं था। हमारा फिल्मी दुनिया से कोई ताल्लुक नहीं था। फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। लिहाजा मुझे अभिनेत्री बनाना मेरी मां का साहसिक कदम था।
मैं उन्नीस साल की थी जब मेरे लिए शादी का रिश्ता आया था। लड़का अमेरिका में डॉक्टर था। उन्होंने मुझे किसी शादी में डांस करते देखा था। उन दिनों किसी भारतीय लड़की के लिए यह स्वर्णिम मौका होता था। उस रिश्ते के लिए सभी रजामंद थे सिर्फ मेरी मां ने इंकार किया था। उन्होंने कहा कि शादी के लिहाज से यह बहुत छोटी है। वह मुझे थोड़ा समय देना चाहती हैं। अगर उस समय मेरी शादी हो जाती तो शायद अभिनेत्री बनने का मेरा ख्वाब धरा रह जाता। बहरहाल, पहली फिल्म करने के बाद मम्मा ने ही मुझे ट्रीट दी थी। तब हम लोग रेस्त्रां खाना खाने और फिल्म देखने जाते थे। सामान वगैरह तोहफे में नहीं देते थे।
पहली कमाई दी थी मां को
मैंने अपनी पहली कमाई अपनी मां को ही भेंट की था। मुझे 175 रुपये का चेक मिला था। यह चेक मुझे स्कूली दिनों में टीवी पर एक शो में आने के सिलसिले में मिला था। उस चेक को मम्मा ने खर्च नहीं किया था। उन्होंने उसे सहेजकर रख लिया था। मां के साथ इतनी यादें जुड़ी हैं कि मुझे लगता है कि एक किताब उसे बयां करने के लिए नाकाफी है।
प्रस्तुति : स्मिता श्रीवास्तव