Makar Sankranti 2020 Special: जहां हरियाणा में पुरुषों को मिलता है स्त्रियों से उपहार, वहीं उड़ीसा में होती है मित्रता की शुरूआत
मकर संक्रांति मनाने का तरीका और इस दिन बनने वाले पकवान भिन्न-भिन्न हो सकते हैं लेकिन भारतीयों की उत्सवधर्मिता इसकी भावना को एक सूत्र में बांधकर रखती है।
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गोवा से लेकर हिमाचल प्रदेश तक मकर संक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाने वाला जनवरी माह का सर्वमात्र त्योहार है। स्थानीय भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियां इसके लोकरूप में थोड़ी भिन्नता तो ला सकती है परंतु इस उत्सव का मूल भाव, दर्शन व कारण एक ही है।
राजपरिवार से आती पहली खिचड़ी
उत्तर प्रदेश में यह पर्व खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति प्रयागराज के माघ मेले का पहला स्नान होता है। गोरखपुर की गोरक्षनाथ परंपरा में खिचड़ी के दिन देश-विदेश के श्रद्धालु नाथ परंपरा के आदियोगी गोरखनाथ जी के मंदिर में खिचड़ी चढ़ाते हैं। यहां ब्रह्म मुहूर्त में पहली खिचड़ी नेपाल के राजपरिवार की चढ़ती है, फिर दिनभर यह क्रम चलता रहता है। रंगीले राजस्थान से भी मकर संक्रांति का सीधा नाता है। घर-घर में तिल-पट्टी, गजक, पकौड़ी और पुआ बनता है। विवाह के पश्चात पहली संक्रांति देखने वाली नई-नवेली दुल्हन को उसके माता-पिता जमाई समेत विशेष संक्रांति-भोज के लिए आमंत्रित करते हैं।
समय को जोड़ने की संक्रांति
14-15 जनवरी को मकर संक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाने वाला वह उत्सव है, जब प्रकृति हमें शीत से राहत देना प्रारंभ करती है। फसलें या तो कटने योग्य हो जाती हैं या कट चुकी होती हैं। मकर संक्रांति से दिन बड़े होने लगते हैं। संक्रांति का आशय है- संधि अर्थात जोड़ना। समय को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण काल। इस त्योहार का आनंद सभी राज्य, जनपद और गांव अपनी -अपनी परंपराओं के साथ उठाते हैं।
मकर संक्रांति के दिन हरियाणा के पुरुष अपनी हवेली में बैठकर स्त्रियों से उपहार ग्रहण करते हैं और घी-चूरमा, खीर, हलवा आदि चखते हुए लोकगीतों का आनंद उठाते हैं। मकर संक्रांति जिसे पंजाब में 'माघी' और 'लोहड़ी' नाम से मनाते हैं, मुक्तसर साहिब में बड़ा मेला लगता है। दिल्ली और पंजाब के बड़े क्षेत्र में इस दिन आग जलाकर धूमधाम से लोहड़ी मनाई जाती है, भांगड़ा-गिद्दा होता है और नई फसल का उत्साह चमकते चेहरों पर साफ दिखाई देता है।
सेहत से जुड़ी रीतियां
इसी दिन से सूर्य देव उत्तरायण हो जाते हैं- मतलब धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य देव की ओर मुड़ जाता है और सूर्य 6 माह के लिए उत्तर से उदय होना प्रारंभ कर देते हैं। धीरे-धीरे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। हाड़ कंपाती शीत को सूर्य की ऊष्मा निगलना प्रारंभ कर देती है। इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश त्वचा, हड्डियों और पूरे शरीर के लिए लाभकारी होता है।
शुरुआत पक्की मित्रता की
फ्रेंडशिप डे जैसी पश्चिमी अवधारणा के समानांतर मकर संक्रांति के दिन मित्रता का यह विशेष भाव पूर्वी राज्य उड़ीसा में देखने को मिलता है। यह त्योहार सूर्य देव की आराधना को समर्पित है और विश्व प्रसिद्ध कोणार्क-सूर्य मंदिर इसी राज्य में स्थित है। इस राज्य के कुछ भागों में इस दिन से मित्रता की नई शुरुआत होती है। इस परंपरा को मकर नसीबा कहते हैं। यदि दो बहनें या मां-बेटी या कोई दो स्त्रियां एक दूसरे को सर्वोत्तम मित्र बनाने का निर्णय लेती हैं तो उसी मकर संक्रांति से वे एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि मकर कहकर बुलाती हैं। इसी प्रकार जब दो पुरुष ऐसा निर्णय लेते हैं तो वे एक-दूसरे को मरसद नाम से संबोधित करते हैं। उड़ीसा में इस पर्व का स्वागत नारियल , केला, गुड़, काली मिर्च, गन्ना, छेना आदि नए चावल में मिलाकर नैवेद्य तैयार किया जाता है।
पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण के 6 महीनों को शुभकाल बताया है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी पर ऊष्मा और प्रकाश की वर्षा हो रही होती है। ऐसा समय शरीर के परित्याग के लिए भी उचित है और शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं तजा था जब तक सूर्यदेव उत्तरायणी नहीं हो गए थे।