International Yoga Day 2020: समाज सरोकार, योग का विश्व गुरुकुल
International Yoga Day 2020 1937 में स्वामी शिवानंद सरस्वती ऋषिकेश से मुंगेर आए और अपने शिष्य स्वामी सत्यानंद सरस्वती के साथ जगह-जगह संकीर्तन और योग का संदेश देने लगे।
दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। International Yoga Day 2020:केंद्रीय आयुष मंत्रालय के प्रधानमंत्री योग पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है मुंगेर का बिहार स्कूल ऑफ योग। सरल तरीके से योग को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रसिद्ध इस आश्रम के विद्यार्थी आते हैं दुनियाभर से...
जिस तरह प्राचीन भारत के नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में विद्याध्ययन के दौरान गळ्रुओं और छात्रों का संपर्क बाहरी दुनिया से कटा होता था, ठीक उसी तर्ज पर बिहार स्कूल ऑफ योग भी योग-साधना में बाह्य जगत की खबरों, समाचारों से संपर्क को बाधक मानता है। देश के कई कॉलेजों, जेल, अस्पतालों और अन्य संस्थाओं तक योग का प्रशिक्षण-प्रसार करने वाला बिहार स्कूल ऑफ योग दुनिया का पहला योग विश्वविद्यालय भी है जो संस्कृति की धरोहर सहेजे हळ्ए गौरव का प्रतीक है।
जन जन तक पहुंचाया योग
1937 में स्वामी शिवानंद सरस्वती ऋषिकेश से मुंगेर आए और अपने शिष्य स्वामी सत्यानंद सरस्वती के साथ जगह-जगह संकीर्तन और योग का संदेश देने लगे। गुरु शिवानंद सरस्वती से परमहंस संन्यास में दीक्षित होने के बाद सत्यानंद सरस्वती ने भारत, अफगानिस्तान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका आदि देशों की यात्राएं कीं और यौगिक क्रियाओं पर खूब शोध किए। 1956 में अंतरराष्ट्रीय योग मित्र मंडल की स्थापना कर मुंगेर के गंगा तट पर ‘गंगा दर्शन आश्रम’ की नींव रखी तथा 1963 में बिहार स्कूल ऑफ योग की स्थापना की। इसके बाद वे वैज्ञानिक तरीके से योग सीखने के लिए आम लोगों को प्रेरित करने लगे। उन्होंने योग पर लगभग 300 किताबें लिखीं, जो न सिर्फ सरल शब्दों में हैं, बल्कि जनोपयोगी भी हैं। संन्यास लेने के बाद स्वामी सत्यानंद सरस्वती देवघर के रिखिया (झारखंड) आ गए और फिर उच्च वैदिक साधनाएं करते हुए 2009 में महासमाधि ले ली।
पहाड़ी पर प्रकृति दर्शन
पहाड़ी पर निर्मित बिहार स्कूल ऑफ योग के बगल से गंगा बहती है। पहाड़ी को काटकर बनाए गए योग आश्रम को नाम दिया गया शिवानंद आश्रम। वर्ष 1985 में इसका नाम बदलकर बिहार स्कूल ऑफ योग कर दिया गया। इसकी नौमंजिली इमारत के चारों ओर खूबसूरत प्राकृतिक नजारा दिखाई देगा। जनश्रुतियों के अनुसार, महाभारत काल में अंग प्रदेश (भागलपुर-मुंगेर जिला क्षेत्र) के राजा कर्ण यहीं बैठकर दान, तप और साधना करते थे इसलिए इस स्थान को ‘कर्ण चौड़ा’ भी कहते हैं। यहां योग थेरेपी, योग टीचर्स ट्रेनिंग जैसे कई कार्यक्रम और कोर्स चलाए जाते हैं। यहां कैंसर, एड्स जैसी गंभीर बीमारियों पर योग के प्रभाव पर वर्षों से अनुसंधान कार्य हो रहे हैं। गुरुकुल जैसा कड़ा अनुशासन बिहार स्कूल ऑफ योग से 4 महीने का यौगिक स्टडीज का कोर्स कर चुकीं उर्वशी राय बताती हैं, ‘आश्रम की दिनचर्या प्रतिदिन सुबह चार बजे शुरू हो जाती है। व्यक्तिगत योग साधना के बाद योग कक्षाएं शुरू होती हैं। शयन करने तक आपको या तो धीमी आवाज में बोलना है या मौन रहना है। टीवी, रेडियो, अखबार से कोई संपर्क नहीं होगा तथा नियम तोड़ने पर तीन-चार किलोमीटर की दौड़ पूरी करनी पड़ती है।’इसी तरह विद्यालय में एकवर्षीय कोर्स करने वाले शिवेंद्र के अनुसार, ‘आश्रम में बाहरी वस्त्र या बाहरी भोजन का प्रयोग पूरी तरह निषिद्ध है। शाम को कीर्तन के बाद अपने कमरे में व्यक्तिगत साधना करनी होती है।’
योगनगरी का मिला खिताब
बिहार स्कूल ऑफ योग की ख्याति इतनी अधिक है कि अपने कार्यकाल में पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी बिहार स्कूल ऑफ योग आ चुके हैं। उन्होंने जब इस योग संस्थान द्वारा मुंगेर के घर-घर में योग का प्रसार होते देखा तो उन्होंने मुंगेर को योगनगरी की संज्ञा भी दी थी। इस आश्रम में बॉलीवुड के कई प्रसिद्ध कलाकार सामान्य जीवन व्यतीत कर चुके हैं। यहां के निवासी संजीव कुमार बताते हैं कि ‘आशिकी’ फेम अभिनेत्री अनु अग्रवाल यहां संन्यासिन के रूप में वर्षों तक रही थीं। अनु के अलावा, सलमान खान की बहन अलवीरा के भी यहां रहकर योगाभ्यास के लाभ लेने की चर्चा है।
दुनियाभर में मान्यता
योग के क्षेत्र में कार्यों को आगे बढ़ाते हुए स्वामी निरंजनानंद ने वर्ष 1994 में बिहार योग भारती की स्थापना की। वर्ष 2000 में इसे डीम्ड यूनिवर्सिटी की मान्यता मिल गई। यह बिहार स्कूल ऑफ योग का ही अकादमिक विंग है। यह पूरी तरह से योग विज्ञान और अनुसंधान के लिए समर्पित है। यहां से डिग्री प्राप्त करने के बाद आप दुनिया के किसी भी कोने में योग से संबंधित नौकरी पा सकते हैं। इससे पूर्व वर्ष 1995 में स्वामी निरंजनानंद ने योग को बच्चों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए बाल योग मित्र मंडल की स्थापना भी की थी।