लावा से बिजली बनाने वाला पहला देश बनेगा आइसलैंड
ज्वालामुखीय देश आइसलैंड अब लावा से बिजली उत्पन्न करने की योजना बना रहा है। ऐसा करने वाला यह पहला देश है।
पनबिजली और भू-तापीय ऊर्जा से 65% ऊर्जा जरूरतें पूरी करने वाला ज्वालामुखीय देश आइसलैंड अब लावा से बिजली उत्पन्न करने की योजना बना रहा है। ऐसा करने वाला यह पहला देश है। वहां के जियोथर्मल रिसर्च ग्रुप व ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे केवैज्ञानिक ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न भाप से ऊर्जा उत्पादित करने की परियोजना पर काम कर रहे हैं। इससे पारंपरिक स्रोतों की अपेक्षा दस गुना अधिक ऊर्जा उत्पादित होगी। आइसलिंक केबल से यह ऊर्जा ब्रिटेन को बेची जाएगी, जिससे 16 लाख घर रौशन हो सकेंगे।
-10 करोड़ डॉलर परियोजना की लागत
-10 गुना ऊर्जा उत्पादन में होने वाला इजाफा
-1000 किमी आइसलैंड और ब्रिटेन के बीच बिछाई जाने वाले आइसलिंक नामक केबल की लंबाई
2020 में शुरू होगा पहला चरण
क्राफ्ला मैग्मा टेस्टबेड नाम की इस परियोजना से अमेरिका, कनाडा और रूस समेत 11 देशों के 38 शैक्षणिक संस्थान और कंपनियां जुड़ी हुई हैं। ये सभी ऊर्जा उत्पादन के इस संभावित स्रोत पर शोध कर रहे हैं। परियोजना का पहला चरण 2020 तक शुरू करने की योजना है। इसमें तीन करोड़ डॉलर का खर्च आएगा।
ऐसे बनेगी बिजली
परियोजना के तहत उत्तरी आइसलैंड में मौजूद क्राफ्ला ज्वालामुखी में 4.8 किमी गहरा गड्ढा खोदा जाएगा। यह दो टेक्टोनिक प्लेटों के बीच में होगा। यहां धरती के नीचे का तापमान 400 डिग्री सेल्सियस से एक हजार डिग्री सेल्सियस तक होता है। वहां अत्यधिक दाब और लावा की गर्मी के कारण पानी भाप में बदल जाता है। इसी भाप से ऊर्जा उत्पादन किया जाएगा।
2009 में मिले संकेत
टीम ने 2009 में क्राफ्ला में करीब दो किमी गहरा गड्ढा खोदा था। तब वे उपकरणों के जरिये एक हजार डिग्री सेल्सियस के तापमान क्षेत्र में पहुंचने में सफल हुए थे। इस क्षेत्र में मौजूद भाप का भी पता चला था।
दूसरी बार पहुंचेंगे लावा तक
वैज्ञानिक इस परियोजना के जरिये धरती में सुराख बनाकर दूसरी बार लावा तक पहुंचेंगे। पहली बार ऐसा 2007 में हवाई द्वीप में किया गया था। खोदाई के बाद वहां उस गड्ढे को कंक्रीट से भरकर बंद कर दिया गया था। लेकिन आइसलैंड में यह ऊर्जा पर शोध के लिए खुला रहेगा।
-जेएनएन
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