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प्रोफेशनल हो या पर्सनल, हर र‍िश्‍ते में ऐसे रखें ट्रांसपैरेंसी

अपने रिश्तों को संभालना और संवारना भी एक कला है। यह बात बिलकुल सही है कि हमारे संबंधों में पूरी सच्चाई होनी चाहिए लेकिन पारदर्शिता के मामले में सजगता क्यों ज़रूरी है...

By Shweta MishraEdited By: Published: Wed, 15 Nov 2017 09:41 AM (IST)Updated: Wed, 15 Nov 2017 09:45 AM (IST)
प्रोफेशनल हो या पर्सनल, हर र‍िश्‍ते में ऐसे रखें ट्रांसपैरेंसी
प्रोफेशनल हो या पर्सनल, हर र‍िश्‍ते में ऐसे रखें ट्रांसपैरेंसी

संबंधों की पारदर्शिता
अपने रिश्तों को संभालना और संवारना भी एक कला है। यह बात बिलकुल सही है कि हमारे संबंधों में पूरी सच्चाई होनी चाहिए लेकिन पारदर्शिता के मामले में सजगता क्यों ज़रूरी है, जानने के लिए ज़रूर पढ़ें यह लेख। पता नहीं वो लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे, मुझे उनसे यह सब नहीं कहना चाहिए था, दीदी को मैंने आकाश की नाराज़गी के बारे में बेकार ही बता दिया, अब तो यह बात सारे रिश्तेदारों को मालूम हो जाएगी...। कई बार जीवन में ऐसी स्थितियां आती हैं, जब हमारे मन में यह सवाल उठता है कि अपने संबंधों के मामले में हमें कितनी पारदर्शिता बरतनी चाहिए? यहां मनोवैज्ञानिक सलाहकार सुनीता पाण्डेय बता रही हैं कि अपने रिश्तों को निभाते समय हमें किस तरह और कितनी पारदर्शिता बरतनी चाहिए...      

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दांपत्य की दहलीज़

पति-पत्नी का रिश्ता बेहद नाज़ुक होता है। इसलिए दांपत्य जीवन की दहलीज़ पर कदम रखते ही आपको अपने रिश्ते के प्रति संजीदा हो जाना चाहिए। शादी के बाद पति-पत्नी एक नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं। इसलिए उनके रिश्ते में सहजता और खुलापन होना बहुत ज़रूरी है। लाइफ पार्टनर के साथ अपने मन से जुड़ी हर बात खुलकर शेयर करें।  दुराव-छिपाव के लिए इस रिश्ते में कोई जगह नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे पति-पत्नी के बीच शक की दीवार खड़ी हो जाती है। हां, यहां इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि लाइफ पार्टनर शादी के बाद आपकी जिंदगी में शामिल होता है। इसलिए अपने अतीत पर पति-पत्नी दोनों का निजी अधिकार होता है। आपको लाइफ पार्टनर के साथ ऐसी बातें शेयर नहीं करनी चाहिए, जिनकी वजह से रिश्ते में कड़वाहट पैदा हो। अपने साथी को थोड़ा पर्सनल स्पेस भी दें। छोटी-छोटी बातों को लेकर पति या पत्नी से बहुत ज्य़ादा पूछताछ न करें।  

बच्चों को कितना बताएं

वैसे तो बच्चों के साथ माता-पिता का रिश्ता बहुत सहज होता है, फिर भी परवरिश के दौरान उनके साथ कितनी पारदर्शिता बरतनी चाहिए, यह बात उनकी उम्र पर निर्भर करती है। अगर आपके बच्चों की उम्र दस साल से कम है तो आपकी यही कोशिश होनी चाहिए कि परिवार से जुड़ी समस्याओं के बारे में उन्हें न बताया जाए। उनके कोमल मन पर ऐसी बातों का नकारात्मक असर पड़ता है। हां, अपनी टीनएजर संतान के साथ दोस्ताना रिश्ता बनाने की पूरी कोशिश करें ताकि वे आपके साथ अपनी समस्याओं पर खुल कर बातचीत कर सकें। किशोरावस्था के बाद बच्चों में इतनी परिपक्वता आ जाती है कि आप उनके साथ अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी से जुड़ी समस्याओं के बारे में न केवल खुल कर बात कर सकते हैं, बल्कि उनसे सलाह भी ले सकते हैं, अगर आपके दांपत्य जीवन में कोई परेशानी हो तो उसे खुद ही हल करने की कोशिश करें। परिपक्व होने के बाद भी ऐसे मामलों के प्रति बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं। यह जानकर उन्हें बहुत दुख होता है कि उनके माता-पिता के आपसी संबंध अच्छे नहीं हैं।                

रिश्तेदारी में हो सजगता 

आमतौर पर शादी के बाद जब सभी भाई-बहनों का अपना घर-संसार बस जाता है तो इससे रिश्ते में थोड़ी दूरी आना स्वाभाविक है। हर परिवार के कुछ फैमिली सीक्रेट्स होते हैं। ऐसे में यह ज़रूरी नहीं है कि परिवार से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात अपने भाई-बहनों को बताई जाए। हां, अपने माता-पिता के साथ आप बेशक अपने दिल की बातें शेयर कर सकते हैं पर उन्हें भी यह समझाना ज़रूरी है कि वे आपकी बातें दूसरे रिश्तेदारों को न बताएं। इस मामले में यह भी समझने की ज़रूरत है कि हमें बुज़ुर्गों को ऐसी कोई भी बात नहीं बतानी चाहिए, जिससे वे चिंतित या उदास हो जाएं। मसलन अगर आपके माता-पिता दूसरे शहर में रहते हों तो अपने मामूली बुखार या आर्थिक समस्याओं के बारे में बता कर उन्हें बेवजह परेशान करना अनुचित है। स्त्रियों के ऊपर दो परिवारों के रिश्ते संभालने की जि़म्मेदारी होती है। उन्हें हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी किसी बात से दोनों परिवारों के बीच कोई अनबन न हो। यह ज़रूरी नहीं है कि मायके की हर बात ससुराल में सभी को बताई जाए। इसी तरह ससुराल के किसी भी सदस्य या पति के साथ होने वाले मामूली वाद-विवाद की खबर मायके वालों को देना ज़रूरी नहीं है। ध्यान रहे कि यह नियम केवल सामान्य स्थितियों में लागू होता है। अगर घरेलू हिंसा जैसी कोई गंभीर स्थिति हो तो माता-पिता को इसकी जानकारी अवश्य देनी चाहिए।         

दोस्ती में न हो कुश्ती

जब दोस्ती का जि़क्र होता होता है तो इस रिश्ते के लिए सबसे ज्य़ादा बेत कल्लुफी और खुलेपन की बात की जाती है। कुछ हद तक यह बात सच भी है लेकिन इससे पहले आपको अपने दोस्तों की पहचान भी होनी चाहिए। निजी जीवन से जुड़ी समस्याओं पर केवल उन्हीं दोस्तों से बातचीत करें, जिन पर आपको भरोसा हो लेकिन उन्हें भी अपने वित्तीय मामलों से संबंधित सारी बातें न बताएं। उनके साथ आप सिनेमा, साहित्य और संस्कृति से जुड़ी हलकी-फुलकी बातचीत कर सकते हैं। यह न भूलें कि कुछ बातें बेहद निजी होती हैं, जिन्हें किसी के भी साथ शेयर नहीं करना चाहिए। दोस्ती को खुशनुमा बनाने के लिए यह भी ज़रूरी है कि हम इस रिश्ते को भी थोड़ा पर्सनल स्पेस दें ।

प्रोफेशन में पारदर्शिता

प्रोफेशनल लाइफ में कुछ मामले ऐसे होते हैं, जिनमें पारदर्शिता बहुत ज़रूरी है। मसलन अगर किसी नए सहकर्मी को ऑफिस की कार्य-प्रणाली से जुड़े नियमों की जानकारी न हो तो इस मामले में आप उसे पूरा सहयोग दें। कार्यस्थल पर निजी जीवन से जुड़ी बातें करने से बचें। इसी तरह घर जाने के बाद लाइफ पार्टनर या परिवार के अन्य सदस्यों से ऑफिस से जुड़ी परेशानियों पर अधिक चर्चा न करें। प्रोफशनल लाइफ में पारदर्शिता के साथ गोपनीयता भी बहुत ज़रूरी है। हर विभाग की नीतियों से संबंधित कुछ गोपनीय जानकारियां भी होती हैं। कंपनी की गाइडलाइंस के अनुसार जिन बातों को कॉन्फिडेंशियल की श्रेणी में रखा गया है, उनके बारे में कलीग्स या किसी भी दूसरे व्यक्ति से कोई बातचीत न करें। ऑफिस के रिश्तों में संतुलन का होना बेहद ज़रूरी है। नियम-कायदों के मामले में जहां पारदर्शिता की ज़रूरत हो वहां अपने कलीग्स के साथ खुलकर सूचनाओं और जानकारियों का आदान-प्रदान करें। इसके विपरीत गोपनीय मामलों की गंभीरता को समझते हुए दूसरों के सामने उन पर चर्चा न करें। कलीग के साथ आपका व्यवहार शालीन और औपचारिक होना चाहिए। 


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