रंग बरसे कैसे-कैसे
सरकारी आवास पर आयोजित होने वाला होली मिलन दिल्ली के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में हैसियत रखने वालों के लिए विशेष महत्व रखता था।
यूं तो राजधानी में होली मिलन के अनेक आयोजन होते रहे हैं, इस बार भी होंगे। लेकिन कुछ आयोजन यादगार रहे हैं। शुरुआत करते हैं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से। उनके सरकारी आवास पर आयोजित होने वाला होली मिलन दिल्ली के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में हैसियत रखने वालों के लिए विशेष महत्व रखता था। उसमें इंदिरा गांधी मेहमानों को गुझिया खिलवाती थीं। काफी शालीन अंदाज में होने वाले इस आयोजन में एक दौर था जब हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन सारे इसमें शरीक होते थे।
जब तक अटल बिहारी वाजपेयी राजेंद्र प्रसाद रोड के बंगले में रहे तब तक उधर होली का खूब धमाल होता रहा। वहां पर खूब मस्ती के साथ-साथ लजीज व्यंजन भी परोसे जाते थे। सबको खूब गुलाल लगाया जाता था। लेकिन 1996 में जब वाजपेयी जी प्रधानमंत्री बने तो उनके आवास पर आयोजित होने वाला होली मिलन बंद हो गया। बीते कुछ सालों से रामविलास पासवान के जनपथ स्थित आवास पर भी होली का खूब रंग चढ़ता है।
राम विलास पासवान और उनके सांसद पुत्र चिराग मेहमानों को भिगोने में पीछे नहीं रहते। इधर सामिष और निरामिष भोजन का उत्तम इंतजाम रहता है। पासवान की पड़ोसी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर खेली जाने वाली होली में शालीनता ही रहती है।
हालांकि होली पर सोनिया गांधी लाल-पीली हो जाती हैं। लेकिन प्रियंका और राहुल गांधी होली को लेकर कोई बहुत उत्साहित नहीं होते। जब एपी जे अब्दुल कलाम देश के राष्ट्रपति थे तब वे अपनी होली अलग ही अंदाज में मनाते थे। उन्होंने एक बार मानसिक तौर पर कमजोर बच्चों के साथ होली मनाई। लाल कृष्ण आडवाणी के पृथ्वीराज रोड स्थित आवास पर भी होली बड़े प्रेम से खेली जाती है। बंगाली मार्केट की मशहूर मिठाई की दुकानों की विशेष गुझिया सबको खिलाई जाती हैं। आडवाणी जी के घर भी होली का रंग शालीनता के दायरे में ही रहता है।
बनी रहे हिंदू -मुस्लिम परंपरा और अब दिल्ली वाले याद करते हैं हकीम अब्दुल हामिद साहब के कौटिल्य मार्ग पर आयोजित होने वाले होली मिलन को। हकीम साहब हमदर्द दवाखाना के संस्थापक थे। हकीम साहब ने होली मिलन 1955 में चालू किया था। उसके बाद ये लगातार जारी रहा। इसमें तमाम देशों के राजदूतों के अलावा देश के चोटी के नेता, कवि, शायर तो शामिल होते ही थे बाकी आम आदमी के लिए भी हकीम साहब के दरवाजे खुले होते थे। सब एक-दूसरे से गले मिलते। होली मिलन में लाजवाब शर्बत के साथ-साथ मेहमान लजीज व्यंजनों के
साथ मिठाई का भी आ लुत्फ लेते। हकीम साहब का तो साल 2001 में इंतकाल हो गया था, पर उसके बाद भी उनके घर में होली मिलन का सिलसिला जारी रहा।
एक दौर में शरद पवार, राजेश पायलट, लाल कृष्ण आडवाणी, वीसी शुक्ल, खुशवंत सिंह, कुलदीप नैयर, शीला दीक्षित सरीखी हस्तियां हकीम साहब के होली मिलन में शिरकत करना फक्र महसूस करती थीं। हकीम साहब ने इस परंपरा को इसलिए शुरू किया था ताकि दिल्ली में हिन्दू-मुसलमान अमन और प्रेम के साथ रहे। और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) की होली के भी क्या कहने। शायद ही देश के किसी यूनिवर्सिटी कैंपस में जेएनयू की तरह प्रेम और सदभाव के वातावरण में होली खेली जाती हो। सब धाराओं-विचारधाराओं के स्टूडेंट्स होली के रंगों में रंग जाते। हालांकि पिछले साल कैंपस में होली के महत्व को लेकर कुछ विवादास्पद पोस्टर लगने से माहौल जरूर बिगड़ा था। उम्मीद कीजिए कि इस बार जेएनयू में फिर से रंग बरसेगा। और हाल के सालों में भाजपा सांसद आरके सिन्हा के हुमायूं रोड स्थित आवास में होने वाले होली मिलन की भी खासी धूम रहने लगी है। इसमें सभी दलों के नेता, सरकारी अफसर, पत्रकार वगैरह भाग लेते हैं।
विवेक शुक्ला
लेखक व इतिहासकार