Guru Gobind Singh Jayanti 2020: शान-ए-शहनशाह गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से लें ये अनमोल सीखें
श्री गुरु गोविंद सिंह ने अपने चार साहबजादों और माता गुजर कौर जी को भी धर्म के मार्ग पर अर्पण कर दिया लेकिन सदैव अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। जानें उनके जीवन से जुड़ी अहम बातें।
श्री गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा जीवन परमात्मा के प्रति दृढ़ विश्वास और संपूर्ण समर्पण का आदर्श और अलभ्य उदाहरण है। नौ वर्ष की अल्प आयु में पिता गुरु तेग बहादुर जी को धर्म रक्षा हेतु बलिदान के लिए प्रेरित करने वाले गुरु गोविंद सिंह जी की शक्ति वस्तुत: परमात्मा का बल था। उन्होंने अपने चार साहबजादों और माता गुजर कौर जी को भी धर्म के मार्ग पर अर्पण कर दिया, लेकिन सदैव अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। उनकी मान्यता थी कि अधर्मी चाहे कितना शक्तिशाली क्यों न हो, बड़ी फौज और भारी खजाने का स्वामी हो, परमात्मा की शरण का कोई मोल नहीं है।
जफरनामा में नीहित अनमोल संदेश
गुरु साहिब ने आनंदपुर साहिब छोड़ने और साहबजादों के बलिदान के बाद औरंगजेब को लिखे विजय पत्र 'जफरनामा' में लिखा कि यदि आपको अपने साम्राज्य और दौलत पर अभिमान है, तो मुझे भी परमात्मा की शरण की भरपूर आश्वस्तता है। गुरु जी का उपदेश था कि ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य का जीवन निरर्थक है। गुरु गोविंद सिंह ने एक ओर जहां सिखों में वीरता का संचार किया, वहीं युद्ध कला में उन्हें प्रवीण बनाया तथा उनके आत्मिक उन्नयन पर पूरा ध्यान केंद्रित किया। सिखों को खालसा का नाम देना उनके विचार और आचार दोनों की पवित्रता का परिचायक था। उन्होंने कहा कि परमात्मा ही विषम परिस्थितियों से उबार लेने वाले और सच की राह दिखाने वाले हैं। परमात्मा ज्ञान और चेतना प्रदान करने वाले हैं।
पूरे परिवार के बलिदान के बाद भी कम नहीं हुई प्रभु में आस्था
खालसा पंथ की साजना करते हुए गुरु गोविंद सिंह जी ने अनेक मर्यादाओं की घोषणा की और उनका पालन सिखों के लिए अपरिहार्य बना दिया। मर्यादाओं को गुरु जी ने भावना से जोड़ा, ताकि जीवन में सहजता बनी रहे और मर्यादाएं बाध्यकारी लगने के स्थान पर जीवन का अंग बन जाएं। गुरु जी ने परमात्मा की भक्ति के लिए प्रेम का मार्ग अपनाने की प्रेरणा दी। पावन आचार और प्रेम भावना में परिपूर्ण होने की कारण ही सिखों के लिए धर्म के मार्ग पर जीवन तक सहज ही बलिदान कर देना संभव हो गया था। गुरु गोविंद सिंह का पूरा परिवार धर्म के लिए बलिदान हो गया फिर भी उनकी सहजता, अंतर की कोमलता और प्रेम रंच मात्र भी कम नहीं हुआ था। युद्धों की विभीषिका से गुजरने के बाद जैसे ही उन्हें समय मिला, गुरु ग्रंथ साहिब पुन: लिखवाया और उसमें गुरु तेग बहादुर की वाणी सम्मिलित कर संपूर्णता प्रदान की। गुरु जी ने सिखों को गुरुवाणी के अर्थ और भाव समझाने की व्यवस्था भी की।
डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह