स्वस्थ समाज: डिप्रेशन के खिलाफ मुहिम चलाएगी सरकार
अब ज्यादा जोर इस बात पर होगा कि जरूरतमंद इसके लिए मेडिकल सहायता हासिल करने से हिचकिचाएं नहीं। इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस का विषय भी अवसाद ही रखा गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : मानसिक रोगियों को जरूरी मानवाधिकार दिलाने के लिए संसद में बिल पारित करवाने के बाद अब केंद्र सरकार डिप्रेशन (अवसाद) के शिकार लोगों के लिए भी विशेष अभियान चलाने जा रही है। अब ज्यादा जोर इस बात पर होगा कि जरूरतमंद इसके लिए मेडिकल सहायता हासिल करने से हिचकिचाएं नहीं। इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस का विषय भी अवसाद ही रखा गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक भारत में कुल आबादी का 4.5 फीसद यानी साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा लोग डिप्रेशन के मरीज हैं। दुनियाभर में यह सबसे ज्यादा मरीजों वाली बीमारी है। इसकी पहचान और इलाज दोनों संभव है। इसके बावजूद अधिकतर लोगों को इसका इलाज नहीं मिल पाता। भारत में डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि हेंक बेकडम कहते हैं कि इसके मरीजों की बरी संख्या और उनकी उपेक्षा को देखते हुए ही इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस का विषय डिप्रेशन रखा गया है। इससे इस विषय पर लोगों का अधिक से अधिक ध्यान जाएगा। स्वास्थ्य दिवस सात अप्रैल को होता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल मानते हैं कि अब तक यह विषय सरकारी कार्यक्रमों में काफी उपेक्षित रहा है। इस लिहाज से तीन पहलुओं पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। जरूरतमंद लोगों को आगे आने के लिए जागरूक किया जाना, मानसिक चिकित्सकों की कमी दूर करना और इस कार्यक्रम को सामान्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करना। ये ऐसे कदम हैं, जिनसे सभी तरह के मानसिक रोगियों को लाभ होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को मजबूत करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। प्रशिक्षित विशेषज्ञों की कमी की वजह से अब तक इस कार्यक्रम को पर्याप्त गति नहीं मिल सकी है। इसलिए सरकार स्नातकोत्तर स्तर पर इस विषय में सीटें बढ़ाने का प्रयास कर रही है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली के प्रोफेसर राजेश सागर कहते हैं, 'आत्महत्या करने वालों में 70 से 80 फीसद लोग अवसाद के मरीज होते हैं। इसी तरह अवसाद के मरीजों में से 10 से 15 फीसद आत्महत्या करने का प्रयास करते हैं।' वे बताते हैं कि अभिभावकों के नकारात्मक प्रभाव से लेकर घरेर्लू ंहसा, प्राकृतिक आपदा, गरीबी आदि इसके बहुत से कारण हो सकते हैं। इसके अलावा यह अनुवांशिक कारणों से भी होता है।
इसी हμते मानसिक स्वास्थ्य बिल संसद में पारित हुआ है। इसके लागू हो जाने के बाद आत्महत्या का प्रयास करने वालों को अपराधी मान कर उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जाएगा। इसी तरह मानसिक रोगियों को अपने उपचार के बारे में फैसला लेने का अधिकार होगा।