स्वस्थ समाज: खुदकशी के जेनेटिक कारणों का पता लगाएगा एम्स
एम्स के फोरेंसिक विभाग में आत्महत्या के ऐसे मामले भी आए हैं जिनमें यह पता चला है कि माता-पिता द्वारा वाट्सएप व टीवी सीरियल देखने से मना करने पर बच्चों ने खुदकशी कर ली।
पारिवारिक तनाव के कारण आत्महत्या की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं। अकादमिक परीक्षाओं व पढ़ाई में असफल रहने पर छात्रों की खुदकशी की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं, लेकिन एम्स के फोरेंसिक विभाग में आत्महत्या के ऐसे मामले भी आए हैं जिनमें यह पता चला है कि माता-पिता द्वारा वाट्सएप व टीवी सीरियल देखने से मना करने पर बच्चों ने खुदकशी कर ली। बच्चों की खुदकशी के ऐसे मामलों से डॉक्टर भी हैरान हैं और उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए इसे खतरे की घंटी बता रहे हैं। मामले की गंभीरता समझते हुए एम्स ने खुदकशी की ऐसी घटनाओं के जेनेटिक कारणों पर शोध शुरू किया है।
डॉक्टरों का कहना है कि आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चलाने की जरूरत है। अमेरिका में इसकी रोकथाम के लिए व्यापक कार्यक्रम शुरू किया गया है और वहां 2020 तक आत्महत्या के 20 फीसद मामले कम करने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि यहां देश में अब तक ऐसा कोई खास कार्यक्रम शुरू नहीं हुआ है। वाट्सएप पर चैटिंग व टीवी सीरियल देखने से मना करने पर कर रहे आत्महत्या : एम्स के फोरेंसिक विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. चितरंजन बेहरा ने कहा कि आत्महत्या के लिए अवसाद, तनाव, परिवारिक कलह आदि कारणों को जिम्मेदार बताया जाता है।
इन सबके बीच बच्चों की आत्महत्या के ऐसे मामले आ रहे हैं जिसका कारण सिर्फ अवसाद नहीं माना जा सकता।
स्थिति यह है कि वाट्सएप पर चैटिंग व टीवी सीरियल देखने से मना करने पर कई बच्चे आत्महत्या की घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं। हाल ही में तीन बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम किया गया है। इनकी उम्र 12 साल के आसपास थी। इन बच्चों के माता-पिता ने उन्हें वाट्सएप पर चैटिंग व टीवी सीरियल देखने से मना किया तो उन्हें
इतना गुस्सा आया कि उन्होंने जीवन ही समाप्त कर लिया। यह मस्तिष्क में क्षणिक परिवर्तन को प्रदर्शित करता है।
विश्व स्वास्थ्य दिवस पर अवसाद है थीम :
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने विश्व स्वास्थ्य दिवस पर इस बार अवसाद को थीम बनाया है। गंभीर अवसाद का अंतिम परिणाम आत्महत्या के रूप में सामने आता है। देश में 1.40 लाख लोगों की आत्महत्या की घटनाओं में मौत होती है। आत्महत्या की प्रवृति को रोकना चिकित्सा जगत के लिए चुनौती है। इसलिए दुनिया भर में इसके कारणों का पता लगाने के लिए कई स्तरों पर शोध चल रहे हैं। कुछ शोध में यह बात सामने आई है कि मस्तिष्क के किसी खास जीन में परिवर्तन आने के कारण लोग आत्महत्या जैसी घटनाओं को अंजाम देते
हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने यहां भी मॉलिक्यूलर मार्कर ढूंढने के लिए शोध शुरू कराया है।
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए मार्च-जुलाई का समय अतिसंवेदनशील
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : एम्स में छात्रों की आत्महत्या के मामलों पर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अकादमिक असफलताओं, तनाव व परिवारिक विवाद के कारण छात्र खुदकशी अधिक करते हैं। छात्रों
की आत्महत्या के मामले मार्च से जुलाई के बीच अधिक सामने आते हैं। इसका कारण यह है कि इस दौरान ही
अकादमिक परीक्षाएं व प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाएं होती हैं और उसके परिणाम आते हैं। ऐसे में मार्च से जुलाई का समय छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अतिसंवेदनशील होता है। इसलिए माता-पिता को उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
एम्स के फोरेंसिक विभाग ने छात्रों की आत्महत्या के 69 मामलों पर यह अध्ययन किया है। छात्रों की आत्महत्या की यह घटनाएं दक्षिणी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में हुई थीं। आत्महत्या करने वाले इन छात्रों की उम्र आठ से 30 साल थी, लेकिन ज्यादातर छात्र (44.64 फीसद) 16-20 आयु वर्ग के थे। इनमें 31 लड़के व 38 लड़कियां शामिल थीं। आत्महत्या करने वालों में स्कूली छात्रों के अलावा 32 फीसद स्नातक व व्यावसायिक
पाठ्यक्रमों के छात्र थे। 90 फीसद छात्रों ने फांसी लगाकर खुदकशी की थी।
अध्ययन में पाया गया है कि 32 फीसद छात्रों ने पढ़ाई में असफलता के चलते खुदकशी की। 36 फीसद मामलों में खुदकशी के कारणों का पता नहीं चल सका। सात छात्रों ने परिवार में कलह व 15 फीसद छात्रों ने अन्य तनाव के
कारण आत्महत्या की थी। मार्च से अगस्त के बीच 73 फीसद छात्रों की आत्महत्या के मामले सामने आए।
आत्महत्या करने वाले ज्यादातर छात्र अपने माता-पिता के साथ और 19
फीसद परिवार से अलग छात्रावास में रह रहे थे।
रणविजय सिंह