Gandhi Jayanti 2019: गांधीजी के जीवन की अनसुनी घटनाएं, जो देती है सबक के साथ संदेश भी
अगर हम बापू के पूरे जीवन पर गौर करें तो कोई एक प्रसंग ही नहीं बल्कि उनका पूरा जीवन यहां तक कि रोजमर्रा का जीवन आदत-व्यवहार आदि भी कुछ न कुछ संदेश देते हैं। जानते हैं इन्हें...
वास्तव में महात्मा गांधी के जीवन के संदेशों से प्रेरणा लेकर हम सभी उनकी तरह बन सकते हैं। यहां पर हम उनके जीवन की कई कई छोटी-बड़ी, सुनी-अनसुनी घटनाएं जानते हैं, जिनसे सीख लेकर हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में प्रयोग में लाएं, तो देश और संपूर्ण मानवता का भला कर सकते हैं।
समय के पाबंद
बापू के लिए एक-एक क्षण की कीमत थी। उनका 24 घंटों का कार्यक्रम पहले से ही निश्चित रहता था। वे प्रत्येक काम को निश्चित समय पर शुरू कर देते और जितना समय जिस काम के लिए निश्चित करते, उतना ही समय वे उसमें लगाते। एक बार एक जर्मन व्यक्ति बापू से दो मिनट के लिए मिलना चाहता था। उनके सेक्रेटरी महादेव देसाई ने किसी तरह बापू को दो मिनट का समय देने के लिए राजी किया। जर्मन महोदय जब बापू से मिले, तो 1 मिनट तो शिष्टाचार में ही निकल गया और दूसरा मिनट बात की भूमिका बांधने में। जर्मन ने समझा था कि 2 मिनट का बहाना करके वे जितना चाहेंगे, बापू का उतना समय ले लेंगे। 2 मिनट बाद ही बापू ने उन्हें घड़ी दिखाई और उठ कर खड़े हो गए। जर्मन बेचारा निराश होकर बाहर चला गया। वहीं, एक बार एक व्यक्ति की घड़ी 5 मिनट तेज चल रही थी। इस पर उन्होंने उसे सलाह दी कि जो घड़ी ठीक समय न दे, उसे रखने में कोई लाभ नहीं है।
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नहीं पसंद था ज्यादा खर्च
बापू पैसे ज्यादा खर्च करने के बहुत विरोधी थे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वे छपे हुए कागज के दूसरी ओर भी लिख कर न सिर्फ पैसे बचाते थे, बल्कि पर्यावरण संरक्षण भी करते थे। अपने ऊपर नाम मात्र का खर्च करने के कारण वे घुटने तक की धोती पहनते और एक खद्दर का दुपट्टा कंधे पर डाले रहते थे। साथ ही, रूमाल के स्थान पर एक खद्दर का टुकड़ा रखते थे। उनका यह टुकड़ा काफी साफ रहता था।
साफ-सफाई को महत्व
दोस्तो, बापू बहुत कम कपड़े जरूर पहनते थे, लेकिन वे उन्हें बहुत साफ रहते थे। उनके खाने की कटोरियां भी खूब साफ रहती थीं। एक बार खाते समय तरल भोजन की एक बूंद उनके दुपट्टे पर गिर गई, लेकिन वह मुश्किल से दिखाई पड़ रही थी। बापू ने उसे जब तक बदल नहीं लिया, तब तक वे परेशान ही रहे। आदर्श सफाई पर जोर देने वाले बापू कहते थे कि रसोई घर और टॉयलेट इतने साफ होने चाहिए कि वहां एक मक्खी भी न बैठ सके। वे खुद भी घर-बाहर की साफ-सफाई किया करते।
सामान को जगह पर रखने की आदत
बापू हर चीज को उसके स्थान पर रखते थे, जिससे अंधेरे में भी वे हाथ बढ़ाएं, तो वह वस्तु उनको मिल जाए। एक दिन उन्हें अपने स्थान पर रखी पेंसिल नहीं मिल रही थी। जब उनके साथ रहने वाले लोग भी उन्हें उसके बारे में नहीं बता सके, तो वे गंभीर हो गए। बापू ने कहा, 'यह बात छोटी, लेकिन बहुत गंभीर है। जीवन में व्यवस्थित होने की बड़ी जरूरत है।
बच्चों से प्रेम
बापू बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। उनके साथ वे उन्हीं की तरह खेला भी करते थे। जब वे दुखी होते, तो उनका मनोरंजन भी वे करते। बापू जब घूमने जाते, तो प्राय: दो बच्चियां उनके हाथ अपने कंधों पर रखकर चलतीं। एक दिन इनमें से कोई एक लड़की नहीं आ पाई, जिसकी उस दिन बारी थी। आश्रम की एक दूसरी छोटी लड़की आई और उसने बापू का हाथ अपने कंधों पर रख लिया। जब बापू चलने लगे तब वह देर से आने वाली लड़की भी आ गई और उसने छोटी लड़की को हटाना चाहा। वह लड़की बहुत दुखी हुई। बापू रुक गए और जब तक उसे खुश नहीं कर लिया तब तक वहां से आगे नहीं बढ़े।
निश्चय के पक्के
बापू मिरज(महाराष्ट्र) गए और वहां से वह एक दूसरे स्थान जाने वाले थे, लेकिन लोगों की इच्छा थी कि वे मिरज में कुछ समय तक और ठहरें। बापू ने इसे पसंद नहीं किया। वे तो अपने कार्यक्रम के अनुसार अगले स्थान पर जाना चाहते थे। मोटरगाड़ी समय से नहीं आई। बहाना यह किया गया कि मोटरगाड़ी बिगड़ गई है। बापू ने पैदल चलना शुरू किया। लोगों ने सही रास्ता भी नहीं बताया। उनके पैरों में कांटे भी चुभ गए, लेकिन वे रुके नहीं। जब लोगों ने देखा कि बापू किसी प्रकार भी नहीं रुकेंगे, तो चट उनके पास मोटरगाड़ी पहुंच गई और बापू अपने निश्चित स्थान को समय से पहुंच गए।