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होली का लें आनंद लेकिन सेहत का भी रखें ख्याल

वैज्ञानिक अध्ययनों से यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि हास्य और मनोविनोद स्वास्थ्य के लिए किसी बेहतरीन टॉनिक से कम नहीं हैं। आप सबकी होली सुरक्षित हो, इसके लिए कुछ सुझावों पर अमल करना जरूरी है...

By Srishti VermaEdited By: Published: Sat, 04 Mar 2017 03:46 PM (IST)Updated: Sat, 04 Mar 2017 04:46 PM (IST)
होली का लें आनंद लेकिन सेहत का भी रखें ख्याल
होली का लें आनंद लेकिन सेहत का भी रखें ख्याल

होली उमंग, उल्लास, और हंसी खुशी का त्यौहार है। 
 जैसे अच्छी सेहत के लिए खानपान और व्यायाम आवश्यक है, उसी प्रकार से मानसिक स्वास्थ्य के लिए हंसी ठहाकों का भी अपना विशेष महत्व है। एक स्टडी के अनुसार जो लोग लंबे समय तक उदासी और मानसिक तनाव की जिंदगी जीते हैं, उन्हें स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में हृदय रोग होने की आशंका 70 प्रतिशत अधिक होती है।
हास्य से बनता है स्वास्थ्य जो लोग जीवन में हास-परिहास, उमंग, उल्लास से इस अंदाज में जीते हैं कि 'सब कुछ तुम्हारा है- उन्हें तनावग्रस्त परिस्थितियों से सहज ही मुक्ति मिल जाती है। हास्य, लगाव और सद्भाव
मानसिक अशांति के समय हमें सही दिशा देते हैं। यही कारण है कि एक हंसमुख और प्रफुल्लित व्यक्ति किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति का सामना सहजता से कर लेता है।

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तनाव और रोग-प्रतिरोधक क्षमता
दैनिक जीवन में मानसिक तनाव व प्रतिकूल परिस्थितियां शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) को कमजोर कर देती हैं। यही तनावग्रस्त स्थिति दीर्घकाल तक बनी रहे, तो मानसिक अशांति घर जमा लेती है। इस स्थिति में रोग प्रतिरोधी तत्वों को पनपने का अवसर ही नहीं मिलता। तब आत्मविश्वास की कमी, उदासी, कार्य में अरुचि, हाई ब्लडप्रेशर, दिल का दौरा, व्यवहार में चिड़चिड़ापन और अनिद्रा जैसी परेशानियां व्यक्ति को दबोच लेती हैं और यहीं से अन्य गंभीर बीमारियों की शुरुआत होती है।

हंसी का अच्छा असर
हंसी एक स्वस्थ और प्रभावशाली व्यायाम है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है। इससे डायफ्राम, छाती, पेट, फेफड़े और लिवर का व्यायाम होता है। हंसी एक शरीर शोधक प्रक्रिया है, जिसमें श्वसन तंत्र में मौजूद नुकसानदेह तत्वों का निष्कासन होता है। हंसी से रक्त प्रवाह और हृदय गति बढ़ जाती है। ठहाका लगाकर हंसने से चेहरे और भुजाओं की मांसपेशियां भी सक्रिय हो जाती हैं। विनोदी प्रकृति के लोगों को मानसिक तनाव, सिरदर्द, पीठ दर्द, अशांति और चिंता से मुक्ति मिल जाती है।
हंसने से मस्तिष्क से कुछ हार्र्मोंस का स्राव बढ़ जाता है और यह हार्र्मोंस रक्त में कुछ अन्य बेहतर हार्र्मोंस की मात्रा बढ़ा देते हैं। इस कारण व्यक्ति उत्तेजना, उमंग और उल्लास की अनुभूति करता है।

लाफिंग थेरेपी


प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक नॉर्मन कंजन ने हास्य उपचार विधि (लाफिंग थेरेपी) का सफल प्रयोग रोग उपचार के लिए किया है। इस पद्धति का प्रमुख सिद्धांत है कि 'स्वास्थ्य के लिए दिन में कम-से-कम एक बार खुलकर हंसना चाहिए।
- वह रोगियों के लिए हास्य-व्यंग्य की पुस्तकें पढऩे को प्रेरित करते हैं, ताकि लोग प्रसन्नचित्त रह सकें। वर्जीनिया विश्वविद्यालय के डॉ. रेमंड ए. मूडी ने हास्य चिकित्सा पर कई पुस्तकें लिखी हैं। उनके इस कथन- 'हंसी एक अच्छी और सर्वोत्तम प्रकृति प्रदत्त औषधि है-को मान्यता मिल रही है।

मनोविनोद का प्रभाव
डॉक्टरों का मत है कि व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए दवाओं की अपेक्षा, हंसना-हंसाना अधिक श्रेयस्कर है। हंसनेवाले व्यक्ति के स्नायुतंत्र (नर्वस सिस्टम) पर तनाव नहीं रहता। मांसपेशियों और टिश्यूज को रक्त अधिक मात्रा में मिलता है, जिससे पूरे शरीर में स्फूर्ति और ऊर्जी का संचार होता है।

रंगों से सुरक्षित रखें आंखों को
हमें रंगों से नेत्रों को बचाना चाहिए। रंगों का आंख पर दो तरह का असर होता है। पहला मैकेनिकल इंजरी और दूसरा केमिकल इफेक्ट। मैकेनिकल इंजरी के अंतर्गत प्रमुख रूप से पानी के गुब्बारे मारना है या फिर पिचकारी की धार का आंख में चले जाना है। इनसे आंखों में गंभीर इंजरी हो सकती है। कुछ मामलों में तो आंखों की रोशनी तक जा सकती है।


केमिकल इफेक्ट में ऐसे रंगों को शामिल किया जाता है, जिनमें अम्ल या क्षार शामिल होते हैं। ऐसे रंग आंख की कॉर्निया पर बुरा असर डालते हैं। कॉर्निया पर जख्म हो सकता है। अबीर-गुलाल से भी मैकेनिकल इंजरी हो सकती है। नेत्रों को सुरक्षित रखने के लिए इन सुझावों पर अमल करें...

- रंग भरे गुब्बारों का इस्तेमाल न करें। सरकार या प्रशासन को इन्हें प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
- गुलाल या केमिकल रंगों की जगह हर्बल कलर्स का इस्तेमाल करें।
- चेहरे पर रंग लगवाते समय आंखों को बचाएं।
जब रंग पड़ जाए, तो क्या करें...
- जल्द ही पानी से आंख साफ करें। कुछ देर तक आंखों को धोते रहें।
- अगर आंखों में चुभन या जलन महसूस हो, तो शीघ्र ही नेत्र विशेषज्ञ को दिखाएं।
- जब तक समुचित मेडिकल मदद न मिल जाए, तब तक आई पैड पर टेप लगाकर आंखों को
सुरक्षित रखें।
डॉ. ए.सी. ग्रोवर, वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ, नई दिल्ली
डॉ.अनिल चतुर्वेदी
फिजीशियन, प्रीवेंटिव हेल्थ स्पेशलिस्ट
पुष्पावती सिंघानिया हॉस्पिटल, नई दिल्ली


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