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बॉर्बी, बैनटेन या डोरेमॉन नहीं, भारत के पहले टॉय फेयर में देखने को मिलेगा इन रंग-बिरंगे खिलौनों का कल्चर

भारत में हो चुकी है पहले खिलौने मेले की शुरूआत जो 2 मार्च तक चलेगा। जहां आकर आप अलग-अलग राज्यों के मशहूर खिलौने के इतिहास वर्तमान से जुड़ी हर एक जरूरी जानकारी ले सकते हैं। जिनमें से कुछ के बारे में पहले यहां जान लें।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 01:09 PM (IST)Updated: Mon, 01 Mar 2021 01:09 PM (IST)
बॉर्बी, बैनटेन या डोरेमॉन नहीं, भारत के पहले टॉय फेयर में देखने को मिलेगा इन रंग-बिरंगे खिलौनों का कल्चर
राजस्थान का मशहूर खिलौना है रंग-बिरंगी कठपुतलियां

खिलौनों के साथ भारत का रिश्ता उतना ही पुराना है, जितना इस भूभाग का इतिहास। विदेशी यात्री जब भारत आते थे वे भारत में खेलों को सीखते थे व अपने यहां खेलों को लेकर जाते थे। धीरे-धीरे खेल और खिलौने गायब होते गए और इनकी जगह बॉर्बी, बैनटेन और डोरेमॉन ने ले ली। इन्हीं पुरानी और रंग-बिरंगी दुनिया से सिर्फ बच्चों को ही नहीं उन सभी को रूबरू कराने के मकसद से पहले टॉय फेयर का आयोजन किया जा रहा है। जिसकी शुरुआत 27 फरवरी को की गई और ये 2 मार्च तक चलेगा। जिसमें अलग-अलग जगहों के मशहूर खिलौनों को देखने और जानने का मौका मिलेगा।  

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भारतीय खिलौनों से भारतीयता की भावना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को पहले टॉय फेयर (खिलौना मेला) की शुरुआत की। पीएम मोदी के अनुसार, भारत के पास दुनिया को देने के लिए यूनिक पर्सपेक्टिव है। बच्चों में भारतीयता की भावना आएगी। यह कार्यक्रम पुराने खेल, उल्लास की संस्कृति को मजबूत करने की कड़ी है।

 

 

 

 

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तंजावुर डॉल

घरों में, गाड़ियों के फ्रंट में सजावट के तौर पर नजर आने वाली हिलती-डुलती डॉल देखने में बहुत ही सुंदर और यूनिक लगती हैं। जिन्हें तमिलनाडु के तंजावुर में बनाया जाता है। इस डॉल को भारत सरकार की तरफ से खास जीआई टैग दिया जा चुका है। गर्दन और कमर से हिलती हुई इन डॉल्स को एक साउथ इंडियन डांसर के तौर पर डिज़ाइन किया जाता है जो हल्के हवा के झोंके या फूंक मारने से भी डांस करने लगती हैं। मिट्टी से बनने वाली डॉल्स की डिज़ाइन और खूबसूरत रंग इनकी खासियत हैं। इसकी कीमत 500 से शुरू होकर 5000 तक जाती है। 

नातुनग्राम की गुड़िया

पं. बंगाल के बर्धमान में बसा है एक गांव नातुनग्राम, जहां की गुड़िया है बेहद मशहूर। जिसे लकड़ी के बनाया जाता है। यहां के ज्यादातर खिलौने उल्लू के आकार और रूप के होते है। लकड़ी को बहुत खास तरीके से काटकर ये खिलौने तैयार किए जाते हैं। जिनका रंग उन्हें और भी खास बना देता है।  इस खिलौने की कीमत 30 रुपये से शुरू होकर 30 हजार तक होती है।

कोंडापल्ली खिलौने

आंध्र प्रदेश के कोंडापल्ली में बरसों से पौराणिक किरदारों पर खिलौने बनाए जा रहे हैं। इसी जगह विशेष की वजह से इन्हें कोंडापल्ली खिलौना कहा जाता है। इन खिलौनों का इतिहास तकरीबन 400 साल पुराना बताया जाता है, लेकिन खिलौना बनाने की यह संस्कृति पौराणिक काल से ही है। कलाकार इन्हें बनाते और रंग भरते हुए बारीक कारीगरी का इस्तेमाल करते हैं। तेल्ला पोनिकी पेड़ की लकड़ी से बनने वाले इस खिलौने 500 से 4000 रुपये तक में बिकते हैं। और इन्हें GI टैग भी मिला है।

बत्तो बाई की आदिवासी गुड़िया

बत्तोबाई की आदिवासी गुड़िया है मध्य प्रदेश की खास पहचान। जो खासतौर से झबुआ, भोपाल और ग्वालियर में बनाई जाती है। बत्तो बाई की आदिवासी गुड़िया नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस गुड़िया को पहचान एक महिला जिनका नाम बत्तो बाई था, उनसे मिली। कॉटन और चटख रंगों के इस्तेमाल से तैयार होने वाली ये गुड़िया खूबसूरत जूलरी और पहनावे से सजी होती हैं। इसकी कीमत 150 से 200 रुपये होती है।

बनारसी लकड़ी के खिलौने

लकड़ी के खिलौने के लिए वाराणसी में खोजवां के कश्मीरीगंज का इलाका बहुत मशहूर है। जिनकी सबसे बड़ी खासियत है कि इनमें कोई जोड़ नहीं होता। बच्चों के खेल के लिए बनने वाले इन खिलौनों में जानवर, पक्षी, देवी-देवताओं को खासतौर से गढ़ा जाता है। दिवाली के मौके पर इन लकड़ी के देवी-देवताओं की काफी मांग होती है। इस खिलौने को भी भारत सरकार की तरफ से जीआई टैग मिल चुका है।

Pic credit- freepik


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