Coal Miners Day: जानें कब और कैसे हुई थी इस दिन को मनाने की शुरुआत और इसका महत्व
Coal Miners Day कोयला एक प्राकृतिक संसाधन है जो आर्थिक और सामाजिक विकास दोनों को तेज करता है। विश्व में सबसे अधिक कोयला भंडार की उपलब्धता वाले देशों की सूची में भारत का 5वां स्थान है। जानेंगे इस दिन से जुड़ी जरूरी बातों के बारे में।
भारत में कोयले के साथ तेल, प्राकृतिक गैस, और बॉक्साइट, डोलोमाइट, फ्लोरास्पार, जिप्सम, लौह अयस्क, चूना पत्थर, तांबा, शतावरी और जस्ता जैसे धातु और गैर-धातु खनिजों का भंडार मौजूद है। यह एक ऐसा देश है जहां पर खनिज पदार्थों की कमी नहीं है। जिसे प्राप्त करने के लिए खदानों में हजारों-लाखों मजदूर दिन रात मेहनत करते हैं जब जाकर ये सारी चीज़ें प्राप्त होती हैं। तो इन्हीं मजदूरों की मेहनत को दुनिया के सामने लाने और उसे सराहने के लिए हर साल 4 मई को कोयला खनिक दिवस (Coal miners day 2022) मनाया जाता है। इस दिन औद्योगिक क्रांति के महान नायकों को याद किया जाता है साथ ही उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों सुरंग से लेकर खदानों को खोजने और निकालने तक के कामों की भी सराहना की जाती है। तो आइए जानते हैं इस दिन का इतिहास और महत्व से जुड़ी खास बातों के बारे में...
कोयला खनिक दिवस का इतिहास
कोयला एक प्राकृतिक संसाधन है, लेकिन इसे बनाना आसान नहीं बल्कि इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। भारत में कोयला खनन की शुरुआत 1774 में हुई जब ईस्ट इंडिया कंपनी के जॉन समर और सुएटोनियस ग्रांट हीटली ने दामोदर नदी के पश्चिम किनारे के साथ रानीगंज कोल फील्ड में वाणिज्यिक की खोज की। इसी दौरान देश में 1760 और 1840 के बीच औद्योगिक क्रांति भी चली थी। जिसमें कोयले का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर ईंधन और लोकोमोटिव इंजन और गर्मी इमारतों में किया गया। इसके बाद 1853 में रेलवे लोकोमोटिव की शुरुआत के बाद कोयले की मांग बढ़ती गई। लेकिन ये समय इतना अच्छा भी नहीं रहा क्योंकि इस दौरान कोयला खदानों में मजदूरों के शोषण और नरसंहार की भी कई घटनाएं सामने आई थीं।
क्यों मनायाा जाता है कोल खनिक दिवस
कोयला खनन सबसे मुश्किल कामों में से एक है। कोयला खनिकों के लिए इसी संघर्ष को लोगों को बताने, उनकी प्रशंसा करने और उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने के लिए यह दिन मनाया जाता है।
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