मयूरपंख: संस्कृति के सेतुबंध
औपन्यासिक शैली में लिखी यह किताब नई पीढ़ी को श्रीराम के वनवास, सीता के अपहरण और रावण पर विजय जैसी घटनाओं से ही रूबरू नहीं कराती बल्कि इस बात की भी तस्दीक करती है
रामकहानी वही है, बस समय के साथ लिखने वालों का विश्लेषण बदला है लेकिन जब भी कुछ नया लिखा गया तो नवीनता और मूल्यांकन की दृष्टि से कोई कमी भी नहीं रही। यही वजह है कि श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाए या भगवान, उनकी जीवन गाथा में अनूठापन कहीं भी कम नहीं हुआ। इसी क्रम में सर्वत्र प्रकाशन से प्रकाशित किताब 'मेरा राम मेरा देश' श्रीराम के जीवन से जुड़ी तथ्यपरक सामग्री के साथ पाठकों के सामने लाए हैं, इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले लोक सेवा आयोग अधिकारी संजय त्रिपाठी। औपन्यासिक शैली में लिखी यह किताब नई पीढ़ी को श्रीराम के वनवास, सीता के अपहरण और रावण पर विजय जैसी घटनाओं से ही रूबरू नहीं कराती बल्कि इस बात की भी तस्दीक करती है कि राम-रावण युद्ध से पूर्व ही उन्होंने आर्यों व द्रविड़ों का एकीकरण कर नई सभ्यता, नए धर्म और नई संस्कृति का निर्माण कर दिया था, जिसने भारत को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित करना प्रारंभ किया। राम के द्वारा किए गए अनेक महान कार्यों में यह महानतम था, जिसने ईश्वर के रूप में उनका रूपांतरण कर दिया। यह सच भी है कि राम को ईश्वर मानकर हम उनकी उपलब्धियों को लीला के रूप में आंकते हैं, जबकि उस समय की दो सभ्यताओं का विलय कराने वाले उनके योगदान की अनदेखी कर जाते हैं। राम के चरित्र व कृत्यों को ऐतिहासिक कसौटी पर कसती यह किताब पाठकों को नई जानकारी देने में मददगार है!
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