पुस्तक चर्चा: मनोभावों की पड़ताल
शीर्षक कहानी में अभिलाषपुर नामक एक गांव है जहां खजाने को लेकर विचित्र किस्म के अंधविश्वास और किंवदंतियां हैं तो वहीं उत्सुकता भी है। पागलपन की हद तक लोगों के दिमाग में बस खजाना ही सोते जागते घूमता रहता है।
कहीं बिलकुल सहज रूप में तो कहीं प्रतीकात्मक और व्यंजनात्मक ढंग से जिंदगी को देखने-समझने की सलाहियत, साथ ही गहरे व्यंग्य की बानगी पूरी गंभीरता और पैनेपन के साथ प्रस्तुत संग्रह में दिखती है जैसे शीर्षक कहानी में अभिलाषपुर नामक एक गांव है जहां खजाने को लेकर विचित्र किस्म के अंधविश्वास और किंवदंतियां हैं तो वहीं उत्सुकता भी है। पागलपन की हद तक लोगों के दिमाग में बस खजाना ही सोते जागते घूमता रहता है। कुरीतियां और अज्ञानता को लेकर बहुत प्रभावशाली कहानी है ‘अशुभ’। एक फोड़े की टीस
और ऑपरेशन के बाद तक के अनुभवों पर ‘टीस’ जैसी कहानी लिखी जा सकती है यह चमत्कार लेखक ने कर
दिखाया है।
‘चोरी’ कहानी तो जैसे चौर्य कर्म पर लेखक का एक बेहतरीन रिसर्च वर्क है। हर व्यक्ति कभी न कभी कुछ न कुछ चुराता है। हिंदी में ‘चोरी’ को लेकर शायद ही ऐसी प्रखर मनोवैज्ञानिक कहानी पहले लिखी गई हो। एक बालक का फूलों के पौधों से प्रेम और उनके बीज बोकर उन्हें फलते-फूलते देखकर खुश होने वाली कहानी ‘मदीना’ में ‘मैं’ पात्र के मित्र के रूप में मनुष्य की अच्छाई तथा माली और बाबा के रूप में राक्षसी प्रवृत्ति का परिचय मिलता है। पंडित जी भी इसी श्रेणी में आते हैं। उनके द्वारा ‘मदीना’ के पेड़ को मुसलमानी पेड़ कहना और फिर बाबा द्वारा उस पेड़ को काटकर फेंक देना हमारे भीतर पलती हुई सांप्रदायिकता की भावना को अद्भुत रूप से दर्शाता है। ‘कष्ट’, ‘घंटा’, और ‘मोह’ कहानियां भी जीवन को समझने और उससे दो-चार होने की धारदार रचनाएं हैं जो संग्रह को विशिष्टता प्रदान करती हैं।
पुस्तक : खजाना
लेखक: मनोज कुमार पांडेय,
प्रकाशक: आधार प्रकाशन,
सेक्टर 16, पंचकूला-134113 (हरियाणा), रु.: 120