जोखिम बढ़ा देता है डायबिटीज व हाइपरटेंशन का साथ, इन बातों का रखें ख्याल
Health Tips पटना के डायबेटोलाजिस्ट एमडी डा. अजय कुमार ने बताया कि डायबिटीज के साथ हाइपरटेंशन की समस्या स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। दवाओं के साथ जीवनशैली में सुधार से ही इस पर पाया जा सकता है काबू...
रांची, जेएनएन। टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस वर्तमान में असंक्रामक बीमारियों का एक सामान्य रूप है। तेजी से बदल रही जीवनशैली के कारण देश में लगभग 77 मिलियन लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं और कोविड-19 ने इस समस्या को बेहद जटिल बना दिया है। टाइप 2 डायबिटीज से लंबे समय तक प्रभावित रहने पर शरीर ब्लड शुगर को प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं कर पाता है। यदि इससे ग्रसित व्यक्ति को हाइपरटेंशन की भी समस्या हो तो यह स्थिति बीमारी के जोखिम को और बढ़ा देती है।
हाइपरटेंशन होने पर धमनियों में रक्त का दबाव सामान्य से अधिक बढ़ जाता है। सामान्यत: जब रक्तचाप 140/90 से अधिक दर्ज किया जाए तो इसे उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) कहा जाता है और जब डायबिटीज के रोगियों में ये समस्या हो तो इस स्थिति को सहरुग्णता की संज्ञा दी जाती है। एक अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों में केवल डायबिटीज की समस्या है, उनकी तुलना में डायबिटीज के साथ हाइपरटेंशन वाले रोगियों के मामले दोगुने हैं।
समस्याओं में समानता
डायबिटीज और हाइपरटेंशन का एक-दूसरे से गहरा संबंध है और इनके जोखिम कारक समान हैं, जैसे जीन, ब्लड ग्लूकोज को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में असमर्थता, मोटापा, असामान्य कोलेस्ट्राल का स्तर आदि। एरिस लाइफसाइंसेज द्वारा समर्थित इंडियन डायबिटीज स्टडी के अनुसार, एक शोध में भाग लेने वाले डायबिटीज के 42 फीसद नए रोगियों में हाइपरटेंशन की समस्या थी और उनकी आयु औसतन 45 वर्ष थी, जबकि इस अध्ययन में टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस के केवल नए रोगियों को प्रतिभागी बनाया गया था। इनमें से अधिकतर प्रतिभागी डायबिटीज का उपचार नहीं ले रहे थे।
दवाओं के साथ खुद से करें प्रयास
चिकित्सा के साथ जीवनशैली में सुधार करके डायबिटीज व हाइपरटेंशन को नियंत्रित किया जा सकता है। स्वस्थ आहार, नियमित शारीरिक सक्रियता और वजन को नियंत्रित करके लंबे समय तक सेहत से जुड़ी इन गंभीर समस्याओं से बचा जा सकता है और इसके लिए प्रयास स्वयं करने होंगे।
समय पर रोग की पहचान जरूरी
उन मामलों की संख्या पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिनका रोग अनियंत्रित हो जाता है या जो रोगी चिकित्सकों तक पहुंचने में सक्षम नहीं होते हैं। इसलिए निदान से चूक जाते हैं। भविष्य के लिए यह गंभीर स्थिति का संकेत है।