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Coronavirus Pandemic: कोरोना वायरस के दौर में इन वजहों से बढ़ रहे हैं आत्महत्या के मामले

World Suicide Prevention Day दुनिया में उपलब्ध कई चीज़ों से लोगों का मोह भंग होता जा रहा है। चाहे बच्चे हों नौजवान या फिर बुज़ुर्गआत्महत्या की चपेट में हर उम्र के लोग आ रहे हैं।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 03:39 PM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 03:39 PM (IST)
Coronavirus Pandemic: कोरोना वायरस के दौर में इन वजहों से बढ़ रहे हैं आत्महत्या के मामले
Coronavirus Pandemic: कोरोना वायरस के दौर में इन वजहों से बढ़ रहे हैं आत्महत्या के मामले

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। World Suicide Prevention Day 2020: हर साल 10 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day 2020 ) मनाया जाता है। दिन ब दिन लोगों में अवसाद लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से आत्महत्या के मामले भी बढ़ रहे हैं। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। खासकर कोरोना वायरस के इस दौर में आत्महत्या के मामले तेज़ी से बढ़ते दिख रहे हैं, घरों में बंद लोगों में हताशा और निराशा दोनों बढ़ रही है।

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इस साल व‌र्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे की थीम 'वॉकिंग टुगेदर टू प्रिवेंट सुसाइड' यानी आत्महत्या की रोकथाम के लिए साथ काम करना है, रखी गई है। दुनिया में उपलब्ध कई चीज़ों से लोगों का मोह भंग होता जा रहा है। चाहे बच्चे हों, नौजवान या फिर बुज़ुर्ग, आत्महत्या की चपेट में हर उम्र के लोग आ रहे हैं। 

कोरोना काल में आ रहे हैं ज़्यादा मामले

पिछले साल दिसंबर में चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस ने पलक झपते ही दुनिया भर को अपनी चपेट में ले लिया। इस तेज़ी से फैलने और ख़तरनाक बीमारी ने दुनिया के लगभग सभी देशों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए सभी देशों ने 3-4 महीने तक पूरी तरह लॉकडाउन रखा। जिसकी वजह से सभी लोग अपने घरों में बंद रहने पर मजबूर हो गए। कई लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, कई लोगों का व्यवसाय बंद हो गया, तो अकेले रह रहे कई लोग और अकेले पड़ गए। जो लोग पहले से अवसाद या दिमाग़ से जुड़ी बीमारी से पीड़ित थे, उनके लिए ये समय और भी भयानक हो गया।  

कई सारे लोगों ने अपनी नौकरी या फिर शादीशुदा समस्याओं की वजह से परेशान होकर ऐसा कदम उठाया। वहीं एग्जाम और बेरोज़गारी जैसी चीज़ें भी इस लिस्ट में हैं। अकेलेपन का शिकार होने की वजह से व्यक्ति आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठा सकता है।

ऐसा है आत्महत्या का डेटा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। हर साल लगभग 8 लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या कर लेते हैं। जबकि इससे भी अधिक संख्या में लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं। 

क्या कहना है एक्सपर्ट्स का

डॉ. श्वेता शर्मा, कंसल्टेंट क्लिनिकल सायकोलोजिस्ट, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, पालम विहार का कहना है कि, लॉकडाउन के बाद से हर 10 में से 7 मरीज़ों ने कहा है कि उन्होंने लॉकडाउन में आत्महत्या करने के विचारों को महसूस किया है। प्री-लॉकडाउन समय के बाद से ऐसे केसेस में बहुत ही साफ़ और तेजी से वृद्धि देखी गयी है। पहले हर 10 में से 5 से 7 मरीज इस तरह के विचारों को महसूस करते थे। मार्च से यह लगभग 70% बढ़ा है। इसके बढ़ने का कई कारण है जैसे कि कई काम करने वाले प्रोफेशनल्स ज्यादातर अनियमित काम करने के घंटों, काम का स्ट्रेस, पर्सनल स्पेस की कमी की शिकायत करने लगे  क्योकि इस समय वे अपने पार्टनर के साथ रह रहे होते हैं और वे इस समय घर से काम कर रहे होते  हैं। उनमें से ज्यादातर अपने माता-पिता और परिवारों, दोस्तों से दूर शहर में रह रहे हैं। परिवार के साथ न रहने से लोगों के बीच स्ट्रेस और एंग्जाइटी का लेवल बढ़ रहा है। लॉकडाउन के बाद से हमें मिले केसेस में से अधिकांश एक्टिव सुसाइडल आइडियेशन वाले थे। जिसका मतलब है कि  लगभग 70% केसेस एक्टिव सुसाइडल आइडियेशन के थे। ऐसे अधिकांश मरीजों की उम्र 25 से 40 के बीच थी, और महिलाओं की तुलना में पुरुष इससे ज्यादा प्रभावित  थे। यह आंकड़ा पुरुषों में महिलाओं के मुकाबलें एंग्जाइटी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ते लेवल को दर्शाता है। इनमे से लगभग आधे मरीजों को पहले कोई भी मानसिक बीमारी नही थी। हम दवाओं, काउंसलिंग बातचीत या थेरेपी जैसे कि कोगनिटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) से ऐसे मरीजों का इलाज करते हैं। इसके अलावा इनमे से ज्यादातर मरीज फॉर्मल इंटरेक्शन पीरियड, जैसे कि मीटिंग या टेलीकांफ्रेंसिंग, के बाद भी डाक्टरों से लगातार सम्पर्क में है। ऐसे मरीजों की मानसिक स्थिति ठीक होने में कई महीने लग सकते है।”

डॉ. प्रीति सिंह, सीनियर क्लिनिकल कंसल्टेंट- सायकोलॉजी और सायकोथेरेपी, पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम का कहना है कि, “लॉकडाउन में हमने 300 आत्महत्या के केसेस को देखा है और इन आत्महत्याओं में ज्यादातर मरने वाले पुरुष थे। वे महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए क्योंकि इनमे से ज्यादातर परिवार के लिए रोजी- रोटी कमाने वाले अकेले  सदस्य थे। गुरुग्राम जैसे मेट्रोपॉलिटिन सिटी में स्थिति सबसे खराब रही है, जहाँ नौकरी जाने से कई परिवार को बड़ा झटका लगा है क्योंकि यहाँ जीवन यापन की लागत बहुत ज्यादा हो गयी है। भविष्य के  बारें में अभी भी कुछ नही कहा जा सकता है, इसने मिलेनियम सिटी में मेंटल हेल्थ की समस्या को बढ़ा दिया है। हमारी ओपीडी में हम आत्महत्या से पीड़ित मरीजों को देख रहे हैं। ये मरीज पहले भयानक मूड स्विंग या एंग्जाइटी डिसऑर्डर से पीड़ित थे, लेकिन महामारी के दौरान ये लक्षण और भी भयानक हो गए। इसलिए एक साइड  में 30 मरीजों में से 5 में आत्महत्या करने का विचार था और इस 30 में से 2 महिलाएं भी थी जिन्होंने आत्महत्या करने की असफल कोशिश की थी। महामारी के कारण इकोनॉमिक और सायकोलोजिकल प्रभाव हमारी कल्पनाओं से परे है। गुरुग्राम में लॉकडाउन के दौरान कुछ युवाओं की भी मौतें हुई हैं। आत्महत्या करने वाला हर कोई मानसिक रूप से बीमार नहीं होता है। कई बार यह एक इम्पल्स (आवेग) होता है जो इस तरह के बिहैवियर को ट्रिगर करता है। हमने 16 साल के एक आत्महत्या केस को भी देखा है, जिसने फोन के इस्तेमाल के संबंध मे माता-पिता से झगड़ा करने पर आत्महत्या कर ली थी।"


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