शरीर के लिए बहुत ही ज़रूरी है विटामिन डी, जानें इसकी कमी से होने वाली समस्याएं और उपचार के बारे में
बढ़ते प्रदूषण के कारण सर्दियों में लोगों को सही मात्रा में विटामिन डी नहीं मिल पाता जो सेहत के लिए नुकसानदायक होता है। पोषक तत्व और इसे पाने के लिए किन बातों का ध्यान रखें जानें।
शरीर को स्वस्थ और सक्रिय बनाए रखने के लिए जिन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, विटमिन डी उनमें से एक है। बोस्टन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन में किए गए एक शोध के अनुसार यह केवल हड्डियों के लिए ही नहीं बल्कि हार्ट और ब्रेन के लिए भी बहुत ज़रूरी है। इसमें कुछ कैंसररोधी तत्व भी पाए जाते हैं। विटमिन डी शरीर के इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाता है, जो नुकसानदेह बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करके शरीर को सर्दी-ज़ुकाम और बुखार जैसी समस्याओं से बचाता है। चूंकि सर्दियों में ठंड से बचने के लिए लोग शरीर का अधिकांश हिस्सा ढककर रखते हैं और आउटडोर एक्टिविटीज़ भी थोड़ी कम हो जाती हैं, इससे उन्हें पर्याप्त मात्रा में विटमिन डी नहीं मिल पाता।
क्यों पड़ती है ज़रूरत
विटमिन डी की मदद से ही शरीर में कैल्शियम का निर्माण होता है। दरअसल विटमिन डी वसा में घुलनशील प्रोहॉर्मोन्स का समूह है, जो आंतों से कैल्शियम को सोखकर उसे हड्डियों तक पहुंचाता है। यह आंतों को कैंसर से भी बचाता है। इसके दो प्रकार होते हैं-विटमिन डी-2 (आर्गोकैलसिफेरल) और डी-3 (कोलेकैलसिफेरल)। शरीर को संक्रमण से बचाने वाली कोशिकाओं की कार्य प्रणाली को भी विटमिन डी के माध्यम से अधिक सक्रिय बनाया जा सकता है। यह इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है, फेफड़े को इन्फेक्शन से बचाता है और शरीर के नर्वस सिस्टम को भी सक्रिय बनाए रखता है। विटमिन डी-3 कोशिकाओं में प्रोटीन की मात्रा को नियमित करता है। इसी प्रोटीन के कारण शरीर को सही आकार मिलता है। अत: बच्चों के शारीरिक विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है।
कब होती है समस्या
विटमिन डी की कमी होने पर हड्डियों में कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता, जिससे वे कमज़ोर हो जाती हैं। चाहे कितनी अधिक मात्रा में कैल्शियम का सेवन किया जाए पर विटमिन डी के अभाव में शरीर को इसका पूरा फायदा नहीं मिल पाता। समस्या यहीं खत्म नहीं होती। अगर ब्लड में कैल्शियम का लेवल कम हो जाता है तो उसकी पूर्ति के लिए खून हड्डियों से अपने हिस्से का कैल्शियम लेना शुरू कर देता है। इसी वजह से लोगों के हाथ-पैरों में दर्द शुरू हो जाता है। कुछ बच्चों में जन्म से विटमिन डी की कमी होती है, जिससे उनके हाथ-पैर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। ऐसी समस्या को रिकेट्स कहा जाता है, हालांकि गर्भावस्था के दौरान खानपान संबंधी बढ़ती जागरूकता और बढ़ती चिकित्सा सुविधाओं के कारण अब ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते हैं पर जिन क्षेत्रों में गर्भवती स्त्रियां कुपोषण से ग्रस्त होती हैं, वहां के बच्चों में इस बीमारी की आशंका बनी रहती है। कुछ मामलों में किडनी विटमिन डी को ऐक्टिव फॉर्म में नहीं बदल पाती, तब भी व्यक्ति को ऐसी समस्या हो सकती है।
क्या है वजह
शोध से यह तथ्य सामने आया है कि विटमिन डी का सेवन करने लिए सुबह 11 से 1 बजे तक कम से कम 40 मिनट तक सूरज की रोशनी के संपर्क में रहना चाहिए लेकिन व्यस्तता के कारण लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते। घर से बाहर जाने वाले लोग टैनिंग के डर से चेहरे के साथ पूरे शरीर को अच्छी तरह ढक लेते हैं या सनस्क्रीन लगा लेते हैं, जिससे शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटमिन डी का पोषण नहीं मिल पाता। हालांकि त्वचा को टैनिंग से बचाना भी एक बड़ी समस्या है। इसलिए बेहतर यही होगा कि अगर लंबे समय के लिए बाहर निकलना हो तो सनस्क्रीन लगाएं लेकिन विटमिन डी का पोषण लेने के लिए थोड़ी देर खुली धूप में बिना किसी स्किन प्रोटेक्शन के ही बैठें।
कमी के लक्षण
1. हड्डियों और मांसपेशियों में कमज़ोरी
2. चलते समय घुटनों से आवाज़ निकलना
3. थकान और कमज़ोरी
4. बेचैनी और व्यवहार में चिड़चिड़ापन
5. स्त्रियों में पीरियड्स संबंधी अनियमितता
6. बाल झडऩा
7. इम्यून सिस्टम की कमज़ोरी
8. कमज़ोर याददाश्त
जांच एवं बचाव
अगर आपको यहां बताए गए लक्षण नज़र आएं तो बिना देर किए विटमिन डी के स्तर की जांच कराएं। इस जांच को 25 हाइड्रॉक्सी टेस्ट के नाम से जाना जाता है। ब्लड में 20 से 50 नैनोग्राम के विटमिन डी के स्तर को सामान्य माना जाता है। अगर रिपोर्ट में इसका स्तर 20 नैनोग्राम से कम हो तो व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिए। डॉक्टर की सलाह पर विटमिन डी के सप्लीमेंट के नियमित सेवन से इसके लेवल को सुधारा जा सकता है पर स्वयं विटमिन डी का सप्लीमेंट लेने की भूल न करें क्योंकि इसकी अधिकता से भी नॉजि़या और वोमिटिंग जैसी समस्याएं हो सकती हैं। नियमित एक्सरसाइज़ से शरीर को विटमिन डी और कैल्शियम ज़ज़्ब करने में मदद मिलती है। इसके साथ 20 मिनट तक ब्रिस्क वॉक करना भी फायदेमंद साबित होता है। विटमिन डी की ज़रूरत और प्रभाव के बारे में ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार हर व्यक्ति को रोज़ाना 10 माइक्रोग्राम विटमिन डी की ज़रूरत होती है।
विटामिन डी के स्त्रोत
मिल्क प्रोडक्ट्स, अंडा, मछली, ब्रॉक्ली, हरी पत्तेदार सब्जि़यों के सेवन और प्रतिदिन आधे घंटे तक सूरज की रोशनी के संपर्क में रहने पर यह ज़रूरत पूरी हो जाती है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि केवल शरीर के खुले हिस्सों से ही विटमिन डी का अवशोषण हो पाता है। अत: धूप में बैठते समय ऐसे कपड़ों का चुनाव करें, जिससे शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटमिन डी का पोषण मिल सके। इसकी एक खासियत यह भी है कि लिवर में इसका संग्रह होता है और शरीर की मांग के अनुसार वहां से निश्चित मात्रा में इसका सिक्रीशन होता है। अगर रोज़ाना धूप में बैठना संभव न हो तो सप्ताह में एक या दो दिन भी धूप का सेवन पर्याप्त होता है। इसके बावज़ूद अगर शरीर में विटमिन डी की कमी हो तो डॉक्टर की सलाह के बाद ही इसके सप्लीमेंट का सेवन करना चाहिए।प्रकृति ने सूरज की रोशनी के रूप में विटमिन डी का ऐसा उपहार दिया है, जो पूर्णत: नि:शुल्क है, अत: सभी को इसका फायदा ज़रूर उठाना चाहिए।
मैक्स हॉस्पिटल दिल्ली के ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ.एल तोमर से बातचीत पर आधारित