मच्छरों को भगाने के लिए इस केमिकल का न करें इस्तेमाल, याददाश्त पर पड़ता है बुरा असर!
मच्छरों को भगाने के लिए फॉगिंग का इस्तेमाल किया जाता है जो आपके शरीर पर खराब असर करता है। खासकर उन लोगों को जो सांस से संबंधित दिक्कतें हैं। साथ ही ऐसे भी कीटनाशक हैं जो आपके दिमाग पर काफी बुरा असर डाल सकते हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। मच्छरों से होने वाली खतरनाक बीमारियों से बचने के लिए लोग कई तरह के उपाय अपनाते हैं। इनमें बॉडी स्प्रे/क्रीम, ऑयल, स्टिक प्रमुख है। हालांकि, ये सच है कि इन उपायों की मदद से आपको मच्छरों से छुटकारा जरूर मिल जाता है लेकिन साथ ही ये आपके शरीर में बुरा असर भी डाल सकते हैं क्योंकि इनमें कीटनाशक दवाएं शामिल होती हैं।
मच्छरों को भगाने के लिए फॉगिंग का इस्तेमाल किया जाता है, जो आपके शरीर पर खराब असर करता है। खासकर उन लोगों को जो सांस से संबंधित दिक्कतें हैं। साथ ही ऐसे भी कीटनाशक हैं जो आपके दिमाग पर काफी बुरा असर डाल सकते हैं।
ये दावा करती है सीधे दिमाग पर असर
अमरीका के एक शोध में पाया गया कि कीटनाशक दवा डीडीटी (डायक्लोरो-डायफ़िनायल-ट्रायक्लोरोएथेन) के अधिक सम्पर्क में आने से अल्ज़ाइमर्स होने का ख़तरा बढ़ जाता है। अल्ज़ाइमर्स से पीड़ित व्यक्ति में भ्रमित रहने, बिना वजह आवेश में आने, मूड में तेज़ी से बदलाव आने और दीर्घकाल में याददाश्त चले जाने जैसे लक्षण देखे जाते हैं।
जामा न्यूरोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में दिखाया गया है कि अल्ज़ाइमर्स के मरीज़ों के शरीर में डीडीटी का स्तर किसी स्वस्थ इंसान की तुलना में चार गुना अधिक पाया गया। कुछ देशों में डीडीटी का इस्तेमाल मलेरिया के लिए ज़िम्मेदार मच्छर को मारने के लिए अभी भी किया जाता है।
दूसरा विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बाद मलेरिया नियंत्रण के लिए डीडीटी का बड़े पैमाने पर सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया था। 'अल्ज़ाइमर्स रिसर्च यूके' का कहना है कि अल्ज़ाइमर्स और डीडीटी के संबंध की अभी और पड़ताल करने की ज़रूरत है।
डीडीटी पर बैन
दूसरा विश्वयुद्ध ख़त्म होने के बाद कुछ ख़ास तरह की फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए भी डीडीटी का बड़े स्तर पर उपयोग किया गया। हालांकि इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण, ख़ासतौर पर शिकारी परिंदों पर इसके दुष्प्रभाव के बारे में सवाल उठाए जाते रहे हैं।
अमरीका में डीडीटी के इस्तेमाल पर साल 1972 में बैन लगा दिया गया है। कई अन्य देशों में भी ऐसा ही किया गया। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन मलेरिया की रोकथाम के लिए डीडीटी के इस्तेमाल पर अभी भी ज़ोर देता है। डीडीटी इंसानों के शरीर में भी पाया जाता है जहां यह डीडीई (डायक्लोरो-डायफ़िनायल-डायक्लोरो-एथिलीन) में तब्दील हो जाता है।
रटगर्ज़ और इमोरी यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं के एक दल ने अल्ज़ाइमर्स से पीड़ित 86 मरीज़ों के रक्त में डीडीई के स्तर की जांच की। उन्होंने पाया कि अल्ज़ाइमर्स के मरीज़ों में डीडीई का स्तर तीन गुना अधिक मिला। लेकिन फिर भी यह मामला अभी एकदम स्पष्ट नहीं है क्योंकि कुछ ऐसे लोगों में भी डीडीई की मात्रा अधिक पाई गई है जो एकदम स्वस्थ हैं।