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Stay Home Stay Empowered: आपकी ज्यादा शॉपिंग की आदत बीमारी तो नहीं बन गई है?

मनोवैज्ञानिक अरुण कुमार कहते हैं कि कुछ लोगों के लिए खरीदारी एक लत या सनक होती है उन्हें इस बात का इल्म तक नहीं होता है कि वे अपनी आर्थिक स्थिति से ज्यादा खरीदारी कर गए हैं। जरूरी है कि इससे बचने के लिए आप मेडिटेशन व्यायाम आदि करें।

By Vineet SharanEdited By: Published: Wed, 10 Mar 2021 08:30 AM (IST)Updated: Wed, 10 Mar 2021 08:35 AM (IST)
Stay Home Stay Empowered: आपकी ज्यादा शॉपिंग की आदत बीमारी तो नहीं बन गई है?
शॉपिंग तनाव कम करती है, लेकिन अगर ये लत या सनक बन जाए तो मुश्किल बढ़ा सकती है।

नई दिल्ली, जेएनएन। अक्सर युवाओं की ये मान्यता होती है कि शॉपिंग तनाव को दूर करने का कारगर उपाय होता है। ऐसे में तनाव को दूर करने के लिए युवाओं में शॉपिग करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। कोई शक नहीं कि कई मामलों में शॉपिंग तनाव कम करने का काम करती है, लेकिन अगर ये लत या सनक बन जाए, तो तनाव को कम करने की बजाय बढ़ा भी सकती है।

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क्यों होता है शॉपिंग स्ट्रेस बस्टर ?

सामाजिक सरोकार

आखिर शॉपिंग करने से तनाव कम कैसे होता है, पूछने पर मनोवैज्ञानिक अरुण कुमार कहते हैं कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमारे पास खुद के लिए समय ही नहीं होता है। धीरे-धीरे हमारा सामाजिक दायरा खत्म सा हो जाता है। शॉपिंग अप्रत्यक्ष रूप से किसी व्यक्ति को समाज से जोड़ती है, ऐसे में लोगों को ऐसा लगने लगता है कि शॉपिंग स्ट्रेस बस्टर है।

माहौल में बदलाव

अक्सर लोगों के साथ ऐसा होता है कि रोजमर्रा की जीवनशैली बड़ी उबाऊ सी हो जाती है। ऑफिस, रूटीन काम और फिर वापस घर। ऐसे में शॉपिंग लोगों के माहौल में बदलाव लाती है। वे बाहरी दुनिया से जुड़ते हैं। साथ ही उनका ध्यान भी कुछ देर के लिए रोजाना की उबाऊ जिंदगी से हट जाता है।

बढ़ता है आत्मविश्वास

अधिकांश लोगों के साथ ये समस्या होती है कि वे बदलते जमाने से कदमताल नहीं कर पाते। उन्हें बाहर के बारे में जो भी जानकारी मिलती है, वह भी अखबार, मैग्जीन या इंटरनेट के द्वारा। ऐसे में वे हीन-भावना से ग्रसित हो जाते हैं, क्योंकि चीजों के बारे में जानकारी न होने के कारण लोगों के बीच में बैठने से वे कतराने लगते हैं। लिहाजा शॉपिग, उसका आत्मविश्वास बढ़ाने में कारगर होती है।

भावनात्मक रूप से जोड़ना

शॉपिंग के दौरान प्राय: मनपसंद चीज की खरीदारी तनावमुक्त करती है। वह किसी को बीती बातों व कड़वी स्मृतियों से मुक्त करती है। अपनों को करीब लाने के लिए की गई खरीदारी आपको उनके और करीब लाती है। उपहार खरीदकर देना संबंधित व्यक्तियों से आपको भावनात्मक रूप से जोड़ता है और आपके संबंधों की मजबूती को बढ़ाता है।

खुशी में शुमार

महिलाएं प्राय: समूह में खरीदारी करने जाती हैं। वे खूब मोलभाव करती हैं, वैरायटी देखती हैं और चीजों को चुनने में अधिक समय लगाती हैं। इस बीच वे आपसी सुख-दुख भी बांटती हैं। एक-दूसरे से बात शेयर करने से तनाव कम होता है।

आज के दौर में न्यूक्लियर फैमिली बढ़ी है, जिसकी वजह से अक्सर लोग अकेलापन महसूस करते हैं। शॉपिंग उनके लिए लोगों से मिलने और उनके साथ शामिल होने का माध्यम भी बन जाती है।

शॉपएल्कोहलिक

मनोवैज्ञानिकों का ये मानना है कि जिन लोगों की कोई हॉबी नहीं होती है, अक्सर उनके लिए शॉपिंग तनाव दूर करने का प्रमुख माध्यम बन जाती है। मनोवैज्ञानिक इस बात की सलाह देते हैं कि अपनी हॉबी जरूर बनाएं, भले ही वह बागवानी हों, किताबों या म्यूजिक का कलेक्शन करना या फिर वाद्य यंत्रों को बजाना ही क्यों न हो। साथ ही यह भी जरूरी है कि आप अपनी शॉपिंग साइकिल को बीच-बीच में ब्रेक करते रहें और इसे तनाव दूर करने के लिए हमेशा इस्तेमाल न करें।

कहीं ज्यादा शॉपिंग मर्ज न बन जाएं

अनावश्यक शॅपिंग करना भी बीमारी होती है। यह एक ऐसी बीमारी है, जो किसी को भी हो सकती है। इस बीमारी को इंपल्स कंट्रोल डिसऑर्डर कहते हैं। यह क्लिप्टोमेनिया या पाइरोमेनिया जैसी बीमारियों की तरह ही होती है। इस रोग में लोग अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते हैं। वे अपने साथ के किसी व्यक्ति को कष्ट में तो डालते ही हैं और आपसी रिश्तों तक को बर्बाद कर डालते हैं।

दिखावे के लिए

कई बार देखा गया है कि लोग दिखावे में ज्यादा खरीदारी कर जाते हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आमतौर पर कई लोग शॉपिग के इस फोबिया के शिकार हो जाते हैं। वे दूसरे की खरीदारी को देखकर अवसाद या डिप्रेशन की स्थिति में आ जाते हैं। वे अमुक व्यक्ति से खरीदारी के मामले में तुलना करने लगते हैं। ऐसे में सोचे-समझे बिना खरीदारी करने लगते हैं।

जब जेब हो जाए हल्की

वर्तमान में आम आदमी क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल पर्सनल मनी फ्रेंड के तौर पर करता है। ऐसे में आम आदमी बिना इस बात की चिंता किए कि जेब में पैसा है या नहीं, खरीदारी करता रहता है। अक्सर इसकी वजह से लोग अपनी आर्थिक स्थिति से ज्यादा खरीददारी कर जाते हैं। बाद में उम्मीद से ज्यादा बिल आने पर लोगों के लिए डिप्रेशन का कारण बन जाता है।

अरे ये क्या हुआ!

अक्सर लोग कुछ देर की संतुष्टि के लिए शॉपिंग करते हैं, लेकिन बाद में उन्हें अहसास होता है कि उन्होंने उम्मीद से ज्यादा खरीदारी कर ली है और वे इसे लेकर आत्मग्लानि के शिकार हो जाते हैं। मनोवैज्ञानिक अरुण कुमार कहते हैं कि कुछ लोगों के लिए खरीदारी एक लत या सनक होती है, उन्हें इस बात का इल्म तक नहीं होता है कि वे अपनी आर्थिक स्थिति से ज्यादा खरीदारी कर गए हैं। अरुण कुमार का कहना है कि जरूरी है कि इससे बचने के लिए आप मेडिटेशन, व्यायाम आदि करें। 


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