नाले के पानी से भी फैल सकता है संक्रमण, IIT रिसर्च का खुलासा
आईआईटी गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में सीवेज के पानी में वायरस की उपस्थिति का पता लगाया है। इससे देशभर के हॉटस्पॉट क्षेत्रों में सामुदायिक प्रसारण का भी पता लग सकता है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। कोरोनावायरस एक ऐसा संक्रामक रोग है, जो एक-दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है, लेकिन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-गांधीनगर (IIT-GN) ने अपने शोध में खुलासा किया है कि नाले के पानी से भी फैल सकता है कोरोनावायरस। जो लोग नाले की सफाई करते हैं, उन लोगों को अपना बचाव करने की जरूरत है। आईआईटी गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में सीवेज के पानी में वायरस की उपस्थिति का पता लगाया है। अध्ययन के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने अहमदाबाद के एक नाले से बिना ट्रीटमेंट का थोड़ा पानी इक्ट्ठा किया था। शोधकर्ताओं ने बताया कि उनकी खोज कोविड-19 के प्रसार का पता लगाने के लिए है। इससे देशभर के हॉटस्पॉट क्षेत्रों में सामुदायिक प्रसारण का भी पता लगाया जा सकता है कि सीवेज वाटर भी कहीं इसका प्रसार का कारण तो नहीं है।
आपको बता दें कि अभी तक ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों ने ही जल में कोविड-19 के प्रसार की सूचना दी थी। इसी क्रम में अप्रैल में IIT-GN भी एक वैश्विक शोध का हिस्सा बना जहां सीवेज के पानी में कोविड-19 के प्रसार के बारे में पता लगाने के लिए 51 अन्य प्रमुख विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थान भी इस शोध में शामिल हुए।
आईआईटी-जीएन के प्रोफेसर मनीष कुमार ने कहा कि सीवेज का पानी वायरस की पहचान का प्रमुख स्रोत हो सकता है, क्योंकि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति में चाहे इस वायरस के लक्षण दिखते हैं या नहीं, अगर वह मल या पेशाब त्याग करेगा तो वह सीवेज वाटर में जाकर मिल जाएगा। ऐसे में कोरोना के इस गंदे पानी में कितनी मौजूदगी है, इसका पता लगाया जा सकता है।
हालांकि, इस अध्ययन में यह पता चला कि कोविड-19 जल में संक्रामक नहीं है। इसके अलावा वायरस के जल में रहने का तापमान कनेक्शन भी नहीं है। इस अध्ययन को सफल बनाने के लिए गुजरात पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (GPCB) ने IIT-Gn टीम को 8 मई और 27 मई को सीवेज जल के नमूने एकत्र करने में मदद की थी।
मनीष कहते हैं कि मौजूदा जांच से कोरोना के फैलने का अंदाजा नहीं होता। गंदे पानी के सैंपल से हम जिंदा कोरोना वायरस को तो नहीं पकड़ सकते। लेकिन जीन सीक्वेंसिंग से पता लगाया जा सकता है कि कोरोना का जेनेटिक मटेरियल पानी में कितनी हद तक मौजूद है।
Written By Shahina Noor