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Air Pollution & Stroke: ख़तरनाक प्रदूषित हवा बढ़ा रही है स्ट्रोक का ख़तरा!

Air Pollution Stroke स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क के एक हिस्से में खून का बहाव बंद हो जाता है या फिर एक नलीका के फटने से मस्तिष्क में खून भर जाता है जिसे hemorrhagic stroke कहा जाता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 09:44 AM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 09:44 AM (IST)
Air Pollution & Stroke: ख़तरनाक प्रदूषित हवा बढ़ा रही है स्ट्रोक का ख़तरा!
प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से स्ट्रोक हो सकता है।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Air Pollution & Stroke: कोरोना वायरस महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के दौरान देश भर में प्रदूषण का स्तर न के बराबर हो गया था। खासतौर पर दिल्ली और आसापास के इलाके में हवा सांस लेने लायक़ हो गई थी, लेकिन अब दोबारा हवा खराब होती दिख रही है। इस वक्त दिल्ली का AQI 635, यानी ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया है।

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प्रदूषण से बढ़ता है स्ट्रोक का ख़तरा

डॉक्टरों का कहना है कि प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से स्ट्रोक हो सकता है। स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क के एक हिस्से में खून का बहाव बंद हो जाता है, या फिर एक नलीका के फटने से मस्तिष्क में खून भर जाता है, जिसे hemorrhagic stroke कहा जाता है। 

प्रदूषण और ब्रेन स्ट्रोक में रिश्ता 

वायु प्रदूषकों में ऐसे कण शामिल होते हैं जिनका आकार काफी छोटा होता है। ये छोटे कण संवहनी प्रणाली (vascular system) में प्रवेश कर सकते हैं और उन लोगों में स्ट्रोक का खतरा ज़्यादा पैदा करते हैं जो पहले से ही इस बीमारी की चपेट में हैं। रिसर्च में ये भी पाया गया है कि प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से छोटे कण आपके दिमाग़ के अंदर की परत को भी नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे स्ट्रोक होता है। 

यानी प्रदूषण और ब्रेन स्ट्रोक में रिश्ता है। आंकड़ों की मानें तो पिछले 10 सालों में स्ट्रोक के मामले काफी बढ़ गए हैं। इससे पहले स्ट्रोक से पीड़ित मरीज़ों की उम्र 60-70 के बीच की होती थी। लेकिन आजकल 40 और उससे कम उम्र के लोगों में स्ट्रोक का खतरा बढ़ रहा है।

प्रदूषित हवा में सांस लेना स्मोक करने के ही बराबर है। इन दोनों से ही दिमाग़ के अंदर की परत को नुकसान पहुंचता है और स्ट्रोक होता है। ज़्यादातर डॉक्टर्स स्ट्रोक के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं। स्ट्रोक दुनिया में मौत के प्रमुख कारणों में से एक है। ये धूम्रपान, शारीरिक गतिविधि की कमी और उच्च रक्तचाप की अंदेखी करने से इसका खतरा बढ़ जाता है।

दुनिया भर में दिल की बीमारी के बाद सबसे ज़्यादा मौतें स्ट्रोक से ही हो रही हैं। इसके बावजूद इसके बारे में बीमारी के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बेहद कम है। स्ट्रोक होने पर अचानक संतुलन खोना, एक या दोनों आंख से न दिखना, चेहरा लटक जाना और धीमे या फिर बोलने में दिक्कत आना जैसे लक्षण नज़र आते हैं जिससे इस बीमारी को पहचाना जा सकता है। 

अगर स्ट्रोक आने के कुछ घंटों में ही मरीज़ का इलाज हो जाए तो वह बिल्कुल ठीक या फिर काफी हद तक ठीक हो सकता है। इंजेक्शन के ज़रिए ब्लड क्लॉट को हटा दिया जाता है लेकिन ये सिर्फ 41/2 घंटे के अंदर ही मुमकिन है। अगर 6 घंटे हो गए हैं तो इसे एंजियोग्राफी के ज़रिए निकाल दिया जाता है। हालांकि, इससे ज़्यादा देर होने पर मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है। 


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