COVID-19 & Dementia: डिमेंशिया से जुड़े जीन से बढ़ा कोरोना का ख़तरा, जानें क्या कहती है नई रिसर्च
COVID-19 Dementiaरिसर्च में पाया है कि जिन लोगों में ये खास जीन होता है उनमें कोरोना वायरस का ख़तरा दो गुणा बढ़ जाता है। उन लोगों में भी जिनमें ये बीमारी विकसित नहीं हुई है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। COVID-19 & Dementia: कोरोना वायरस से जुड़े कई शोधों के बीच हाल ही की एक रिसर्च में ये खुलासा हुआ है कि डिमेंशिया का ख़तरा बनने वाले जीन के चलते, डिमेंशिया वाले मरीज़ों में कोरोना वायरस होने का भी गंभीर ख़तरा हो सकता है।
यह जानलेवा वायरस उन लोगों में ज़्यादा पाया जाता है जिनमें डिमेंशिया से जुड़ा जीन मौजूद होता है। इसके रिज़ल्ट बड़े पैमाने पर किए गए शोध के आधार पर निकाले गए हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे कोरोना वायरस के इलाज के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं।
इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सीटर मेडिकल स्कूल और यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टीकट स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने डाटा में इस बात का खुलासा किया और उल्लेख किया कि जिन लोगों में डिमेंशिया से जुड़ा एक दोषपूर्ण जीन होता है, उनमें गंभीर COVID-19 विकसित होने का जोखिम दोगुना हो जाता है।
क्या कहती है रिसर्च
अब, रिसर्च टीम ने ये पाया है कि जिन लोगों में यह जीन उत्परिवर्तन हैं, उनमें COVID-19 का जोखिम दोगुना हो जाता है, यहां तक कि उन लोगों में भी जिनमें अभी इस बीमारी का विकास नहीं हुआ है। टीम ने इससे पहले ये पाया था कि जो लोग डिमेंशिया के मरीज़ हैं, उनका कोविड-19 से संक्रमित होने का ख़तरा तीन गुना अधिक है, लेकिन इसके बावजूद, उन्हें उस समूह में शामिल नहीं किया गया था, जिन्हें खास ऐतियात बरतने को कहा गया था।
जर्नल ऑफ जेरोंटोलॉजी में छपे इस शोध के अनुसार, कोरोना वायरस का ख़तरा उन लोगों ने ज़्यादातर देखने को मिलता है जिनके जीन ई4ई4 या एपीओई के वाहक होते हैं। इस बारे में तकरीबन 5 लाख लोगों के डेटा पर शोध किया गया है।
इस शोध में हर 36वें व्यक्ति में वो जीन पाया गया। शोध में बताया गया है कि इस जीन के लोगों में भूलने की बीमारी यानी अल्ज़ाइमर का रिस्क 14 गुना ज़्यादा हो सकता है। इतना ही नहीं इस जीन की वजह से हार्ट से जुड़ी समस्याएं भी आती हैं। ऐसे जीन वालों में कोरोना होने के चांस दोगुना अधिक होते हैं।
कैसे काम आएगी ये रिसर्च
अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे कोरोना वायरस के इलाज के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं। UConn स्कूल ऑफ मेडिसिन के सह-लेखक, डॉ. चिया-लिंग कुओ ने कहा, " यह एक अच्छा परिणाम है क्योंकि हम अब यह समझ सकेंगे कि यह दोषपूर्ण जीन COVID -19 का जोखिम कैसे बढ़ा देता है। इसकी मदद से इसके इलाज के दायरे खुल सकते हैं।"
"यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये दिखाता है कि बढ़ती उम्र के साथ निश्चित दिखने वाले कुछ रोग का जोखिम वास्तव में विशिष्ट जैविक मतभेदों के कारण हो सकता है, जिससे हम ये समझ पाएंगे कि कुछ लोग 100 या उससे ज़्यादा की उम्र तक कैसे एक्टिव रहते हैं और वहीं, कुछ लोग 60 की उम्र में कई बीमारियों के चलते अपनी जान गंवा देते हैं।"