आखिर क्या है पैरानॉयड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर, जानें इसके लक्षण, बचाव और उपचार
यह एक ऐसी मनोवैज्ञानिक समस्या है जिसकी शुरुआत अनावश्यक शक करने की आदत से होती है। क्यों होता है ऐसा और इससे कैसे करें बचाव जानते हैं एक्सपर्ट के साथ।
हमेशा शक करना और छोटी-छोटी बातों के लिए केवल संदेह के आधार पर दूसरों को दोषी ठहराना कुछ लोगों की आदत होती है। आमतौर पर अविश्वास एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है लेकिन जब ऐसा करना किसी व्यक्ति की आदत बन जाए और वह हमेशा संदेह से घिरा रहे तो यह पैरानॉयड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर जैसी मनोवैज्ञानिक समस्या का संकेत हो सकता है, जिसकी वजह से उसकी रोज़मर्रा की दिनचर्या प्रभावित होने लगती है।
क्या है इसकी कारण
इस मनोवैज्ञानिक समस्या के कारणों को दो हिस्सों में बांटा जाता है- पहली श्रेणी में ब्रेन की संरचना में गड़बड़ी, सिर में अंदरूनी चोट और आनुवंशिकता जैसे जैविक कारणों को रखा जाता है। इसके अलावा, कुछ परिस्थिति से संबंधित कारणों से भी ऐसी समस्या हो सकती है। मसलन, बचपन के कटु अनुभव, तनावपूर्ण पारिवारिक माहौल और करियर की असफलताओं के कारण भी कुछ लोगों में संदेह की भावना इतनी प्रबल हो जाती है कि वह मनोरोग का रूप धारण कर लेती है।
इसके लक्षण
आमतौर पर सभी के मन में मामूली शक होना स्वाभाविक है लेकिन पैरानॉयड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर और सामान्य संदेह में बहुत बारीक फर्क होता है, जिसे समझना बहुत ज़रूरी है। जब कोई व्यक्ति हर बात में बेबुनियाद शक ढूंढने लगे और उसका यह संदेह पक्के विश्वास में बदल जाए तो यह पैरानॉयड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर का लक्षण हो सकता है। अगर मर्ज ज्यादा बढ़ जाए तो ऐसी अवस्था में लोगों की कल्पना इतनी सजीव हो जाती है कि मरीज़ जो कुछ भी सोचता है, वही दृश्य उसकी आंखों के सामने इस तरह दिखाई देते हैं मानो सचमुच वह घटना घटित हो रही है। हालांकि यह उनका भ्रम होता है, लेकिन वे उसे ही पूरी तरह सच मानने लगते हैं। अगर सही समय पर उपचार शुरू न किया जाए तो यही लक्षण बाद में स्क्रिज़ोफेनिया जैसे गंभीर मनोरोग के कारण बन जाते हैं।परिवार का दायित्व
पीपीडी यानी पैरानॉयड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर के उपचार में मरीज़ के परिवार और दोस्तों का सहयोग इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इससे पीडि़त व्यक्ति यह मानने को तैयार नहीं होता कि उसे कोई परेशानी है। अगर आपके परिवार में किसी व्यक्ति को ऐसी समस्या हो, तो इन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें:
1. मरीज़ को यह समझाएं कि शरीर की तरह कई बार व्यक्ति का मन भी बीमार हो जाता है। इसलिए ज़रूरत पडऩे पर उसका भी उपचार करवा लेना चाहिए।
2. इस बात का ध्यान रखें कि पीड़ित व्यक्ति दवाओं का सेवन नियमित रूप से करे।
3. अपनी सकारात्मक बातों से पीड़ित व्यक्ति को यह एहसास दिलाएं कि वह जल्द ठीक हो जाएगा।
4. अगर उसकी कुछ आदतों से आपको परेशानी हो तब भी उसके सामने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर न करें।
ऐसी मनोवैज्ञानिक समस्याओं के उपचार के दौरान अपना धैर्य बनाए रखें क्योंकि कई बार मरीज़ को स्वस्थ होने में महीनों लग जाते हैं। भले ही इससे आपको थोड़ी असुविधा हो लेकिन बीच में उपचार को अधूरा न छोड़ें। अगर डॉक्टर के निर्देशों का पालन करते हुए सही समय पर उपचार शुरू किया जाए तो व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ हो जाता है।