Robotic Assisted Surgery किस तरह डॉक्टरों के लिए मुश्किल सर्जरी को बना रहे हैं आसान
Robotic Assisted Surgeryआज हम एक ऐसे दौर में हैं जब सेन्सर और मोशन कंट्रोल टेक्नोलॉजी ने रोबोट को और भी ज़्यादा सटीक बना दिया है जो सर्जन्स के लिए मददगार साबित हो रहे हैं।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Robotic Assistance Surgery: हेल्थकेयर में रोबोटिक्स की भूमिका की शुरुआत 1980 के दशक में हुई जब दुनिया में पहली बार एक रोबोटिक आर्म ने एक सर्जरी में सहायता की। अमेरिका में किया गया एक न्यूरोसर्जिकल बायोप्सी का ऑपरेशन सफल रहा। कई सालों के बाद 2002 में भारत में दिल्ली के एस्कॉर्ट्स हार्ट हॉस्पिटल में रोबोटिक्स की मदद से पहली सर्जरी की गई जिसमें इन्ट्यूटिव द्वारा बनाए गए दा विंची सर्जिकल सिस्टम का इस्तेमाल किया गया। इस सिस्टम के मुकाबले रोबोटिक आर्म काफी पुराना सा लगने लगा।
आज हम एक ऐसे दौर में हैं जब सेन्सर और मोशन कंट्रोल टेक्नोलॉजी ने रोबोट को और भी ज़्यादा सटीक बना दिया है और यह सर्जन्स को पहले से कहीं ज्यादा क्षमता प्रदान करती हैं। रोबोटिक्स की मदद से की जाने वाली सर्जरी से न केवल बेहतर क्लिनिकल नतीजे मिलने की संभावना है बल्कि यह बेहद कठिन सर्जरी को भी आसान बना रही है।
मेरे तीन दशकों की क्लिनिकल प्रैक्टिस में, मैंने दा विंची जैसे सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए रोबोटिक की मदद से 4000 से ज़्यादा सफल सर्जरी की है। इस सिस्टम की मदद से मैंने छोटे चीरे के साथ कठिन से कठिन सर्जरी भी की। कुछ मामलों में मरीजों को खून का कम नुकसान हुआ, कॉम्लीकेशंस भी कम रहे, उन्हें अस्पताल में कम समय के लिए रुकना पड़ा और अस्पताल में दोबारा भर्ती होने की संख्या भी कम रही, साथ ही वे काम पर भी तेजी से लौटने में सक्षम हुए।
रोबोटिक टूल्स, टेक्नोलॉजीज और तकनीकों की मदद से अब सर्जिकल ऑपरेशन एनाटॉमी (शरीर रचना) के बेहतर दृश्यू (विजुअलाइलेशन) के साथ किया जा सकता है, जोकि लैप्रोस्कोशपिक सर्जरी में संभव नहीं था। इस बेहतर दृश्यू से नसों और अन्यन महत्वसपूर्ण अंगों के संरक्षण में मदद मिली। यह खासतौर से गायनेकोलॉजिकल, रेक्ट ल एवं प्रोस्टेनट कैंसर से संबंधित मुश्किल सर्जरीज के लिए बहुत ज्यादा महत्वदपूर्ण है।
मेरे लिए एक सर्जन के तौर पर दा विंची रोबोटिक असिस्टेड सिस्टम ने न सिर्फ मेरी सटीकता को बढ़ाया है बल्कि इससे लचीलेपन और नियंत्रण में भी बढोतरी हुई है। दरसअल, 21,000 से ज्यादा स्वंतंत्र, समकक्षों द्वारा समीक्षा किए गए लेख हैं जिसमें दा विंची सर्जिकल सिस्टम के इस्तेमाल से किए गए रोबोटिक- असिस्टेड सर्जरी का निरीक्षण किया गया है और जो रोबोटिक-असिस्टेड सर्जरी की सुरक्षा, प्रभावशीलता और फायदों को दर्शाते हैं।
कई सालों तक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी को कोलन, सर्वाइकल-एन्डोमेट्रियल (गर्भाशय संबंधी) और इसोफेगल (खाने की नली) कैंसर सहित विशिष्ट कैंसर के लिए सुरक्षित और व्यावहारिक विकल्प माना जाता था। हालांकि यह अपनी सीमाओं के साथ आता था जैसे- एक टू डायमेन्शनल तस्वीर, मोशन के सीमित प्रकार के साथ कैमरा और उपकरण पकड़ने के लिए प्रशिक्षित सहायक पर निर्भरता।
दा विंची जैसे सिस्टम की मदद से मैं ऑपरेशन रूम में कंसोल यूनिट में बैठकर, मेरे हाथ और पैर के कंट्रोल का इस्तेमाल कर ऑपरेट कर सकता हूं। इसमें मुझे एनाटॉमी (शरीर रचना) का 3डी हाई डेफिनेशन दृश्य मिलता है, जो कि ओपन सर्जिकल प्रोसीजर के लिए ज़रूरी बड़े चीरे लगाने के शारीरिक आघात के बिना एक स्पष्ट दृष्टिकोण उपलब्ध कराता है। मशीन के चार पतले रोबोटिक हाथों, जो कैमरा और सर्जिकल उपकरण पकड़ते हैं, को केवल एक से दो सेंटीमीटर लंबे बेहद छोटे चीरों में डाला जाता है। यह सिस्टम सर्जन के हाथ, कलाईयों और उंगलियों की मूवमेंट को मरीज़ के शरीर के अंदर रखे हुए सर्जिकल उपकरणों के एकदम सटीक, रियल टाइम और कंपन मुक्त मूवमेंट में परिवर्तित कर देता है जो किसी भी पारम्परिक लैप्रोस्कोपिक उपकरणों या मानवीय कलाई से कहीं ज़्यादा बेहतर तरीके से झुक या घूम सकती है।
बड़ी तस्वीर की ओर नज़र
वर्तमान में भले ही भारत में 70 से ज़्यादा रोबोटिक इन्स्टॉलेशन किए गए हैं लेकिन फिर भी सर्जरी किए जाने की संख्या और टेक्नोलॉजी की उपलब्धता में विस्तार करने की क्षमता है। इससे भारत के मरीज़ों और यहां के हेल्थकेयर सिस्टम में सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012-2030 की अवधि के दौरान गैर संचारी रोगों से भारतीय अर्थव्यवस्था को 6.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है। इसलिए बीमारियों के बोझ का प्रबंधन करने के लिए भारतीय स्वास्थ्यरक्षा उद्योग के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे टेक्नोलॉजी के मामले में बड़ी छलांग लगाने की तैयारी करें और रोबोटिक के ज़रिए की जाने वाली सर्जरी जैसी तकनीक पर विचार करें जो लाभ पाने वाले मरीजों को कम से कम चीरफाड़ करने वाले सर्जिकल विकल्प पेश करते हैं।
मुझे पूरी उम्मीद है कि अब तक मैंने सैकड़ों सर्जन को रोबोटिक असिस्टेड सर्जिकल सिस्टम का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया है और मैं यह देखकर काफी प्रभावित हूं कि किस तेज़ी से युवा सर्जन आरएएस को अपना रहे हैं। जैसे-जैसे भारतीय सर्जन इस प्रैक्टिस को अपनाएंगें, देशभर में मरीज़ों को इसके बारे में शिक्षित करेंगे और अपने सहकर्मियों के साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करेंगे। इस तरह, हमें भविष्य में आरएएस की पहुंच में बढोतरी देखने मिल सकती है और इसका सकारात्मगक असर देखने को मिलेगा।
-डॉ. सुधीर कुमार रावल, डायरेक्टर सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली