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कैसे जूस और दूध का कार्टन दे रहा है पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा, कार्टन से बनते हैं डेस्क, बेंच, ऑटो सीट और बहुत कुछ

एक जिम्मेदार ब्रांड होने के नाते Tetra Pak यह अच्छी तरह से समझता है कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर हर छोटा प्रयास आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करेगा।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 30 Jun 2020 10:25 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jul 2020 11:55 AM (IST)
कैसे जूस और दूध का कार्टन दे रहा है पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा, कार्टन से बनते हैं डेस्क, बेंच, ऑटो सीट और बहुत कुछ
कैसे जूस और दूध का कार्टन दे रहा है पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा, कार्टन से बनते हैं डेस्क, बेंच, ऑटो सीट और बहुत कुछ

लगभग हर व्यक्ति ने जूस, दूध, ORS, छाछ और लस्सी का आनंद Tetra Pak कार्टन में जरूर उठाया होगा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कार्टन खाली हो जाने पर उसका क्या होता है? इस कार्टन को बनाने वाली कंपनी Tetra Pak एक ऐसी कंपनी है जो न केवल फूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग के लिए विश्व विख्यात है, बल्कि पर्यावरण के क्षेत्र में भी इसका योगदान काफी सराहनीय है। इसकी सफलता के पीछे 2 स्तंभों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वो स्तंभ है खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण। कंपनी ने जहां तकनीक और इनोवेशन से अपनी सफलता की गाथा लिखी है, तो वहीं पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ा। एक जिम्मेदार ब्रांड होने के नाते Tetra Pak यह अच्छी तरह से समझता है कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर हर छोटा प्रयास आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित करेगा। 

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अलग-अलग टेक्नोलॉजी से होती है कार्टन की रीसाइक्लिंग

कार्ट्न्स को रीसाइकिल करने के कई तरीके हैं। चूंकि कार्ट्न्स अधिकतर पेपर के बने होते हैं, इसलिए इनमें से कागज को अलग करके कई चीजें बनाई जा सकती हैं। ITC जैसी नामी पेपर मिल्स इस फाइबर का बखूबी इस्तेमाल करती है। इस पेपर को टूथपेस्ट, चाय आदि के डिब्बे बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। पेपर निकल जाने के बाद बचा हुआ पॉली-एल्युमिनियम, वाटरप्रूफ एप्लिकेशन्स में बहुत कारगर साबित होता है, जैसे कि प्लांटर्स, आउटडोर फर्नीचर, छत की चादरें, दरवाजे, अलमारियां आदि। इस तरह कार्टन पूरी तरह से रीसाइकिल हो जाता है। 

तीसरी टेक्नोलॉजी है जिसमें पूरा का पूरा कार्टन ही टुकड़े-टुकड़े करके हीट कम्प्रेशन की मदद से पैनल बोर्ड में तब्दील कर दिया जाता है। जो कि प्लास्टिक या लकड़ी को अधिकतर एप्लीकेशन्स में बदल सकता है, जैसे क्लासरूम डेस्क, फर्नीचर, इंडस्ट्रियल पैलेट्स, पेनस्टैंड्स, ट्रे यहां तक कि सड़कों पर दिखने वाले ऑटो की सीट और बैकरेस्ट भी इनकी मदद से बनाए जा रहे हैं। ये एक जीरो वेस्ट प्रकिया है, जिसमें कार्टन पूरी तरह से रीसाइकिल भी हो जाता है, और उसमें कोई नुकसान भी नहीं होता।  

मिल रहा है कई संस्थाओं का साथ 

पर्यावरण संरक्षण के लिए Tetra Pak कार्टन की रीसाइक्लिंग करने में मदद करता है और इसके लिए अलग-अलग संस्थाओं की मदद भी लेता है। इनमें से एक है भारतीय सेना। सीमा पर ड्यूटी करते हुए हर दिन सैकड़ों चुनौतियों का सामना करने वाली भारतीय सेना के 14 कॉन्टिजेंट्स जो कि उत्तर और उत्तर पूर्व में तैनात है, खुद के द्वारा इस्तेमाल कार्टन को इकट्ठा करती हैं। बता दें कि भारतीय सेना एक वर्ष में लगभग 5-6 करोड़ लीटर कार्टन दूध का उपभोग करती है। सेना जो कार्टन उपयोग करती है उसे फेंका नहीं जाता, बल्कि उसकी रीसाइक्लिंग की जाती है और इसमें Tetra Pak कंपनी मदद करती है।

इसके लिए Tetra Pak ने कई सेना परिसरों में कॉम्पैक्टिंग मशीन स्थापित कराई है, जहां सशस्त्र बलों द्वारा इस्तेमाल किए गए कार्टन को गांठों में बदलकर निकटतम रीसाइक्लिंग केंद्र भेज दिया जाता है। इस तरह कार्टन कचरे में न जाकर रीसाइक्लिंग के दौरान पेपर बैग, नोटबुक और अन्य चीजों का रूप ले लेता है। 

पिछले कुछ वर्षों में इस तरह के 14 आर्मी रीसाइक्लिंग केंद्र खड़े किये गये हैं। सोच कर देखें कि अगर पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए सेना रीसाइक्लिंग का जिम्मा उठा सकती है, तो आप और हम क्यों नहीं?   

Go Green पहल 

रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए Tetra Pak ने Go Green विद Tetra Pak के नाम से एक पहल की शुरुआत मुंबई में आज से दस साल पहले की। इसका उद्देश्य NGO RUR  ग्रीनलाइफ द्वारा पर्यावरण के महत्व और रीसाइक्लिंग के बारे में उपभोक्ताओं को जागरूक करना था। इसके लिए शहर में 270 से अधिक डिपॉजिट पॉइंट बनाए गए, जिनमें रिटेल स्टोर्स, स्कूल्स, चर्चेस, कॉर्पोरेट ऑफिस, RWA आदि भी शामिल हैं। मुंबई के नागरिक किसी भी डिपॉजिट पॉइंट पर अपने खाली कार्टन दान कर सकते हैं। 

Go Green पहल को लोगों ने पूरा सपोर्ट दिया और करीब 50,00,000 से अधिक इस्तेमाल किए गए Tetra Pak कार्टन को इकट्ठा किया। इसके बाद इसे रीसाइक्लिंग के लिए भेज गया। जहां इससे स्कूल डेस्क, गार्डन बेंच और दूसरी वस्तुएं बनाई गईं। इस प्रोग्राम के तहत 300 से ज्यादा डेस्क जरूरतमंद स्कूलों को दान में दिए गए। वहीं, 170 से भी ज्यादा गार्डन बेंच का मुंबई के लोग लुत्फ उठा रहे हैं। इस साल यानी 2020 में इस प्रोग्राम की 10वीं सालगिरह मनाई जाएगी। 

जान लें कि इस तरह के प्रोग्राम का मकसद प्रलोभन या इनाम नहीं होता। जागरूक मुंबई के नागरिक इस प्रोग्राम के साथ इसलिए जुड़े हैं, ताकि वो पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सकें।

हम सबको यह समझना चाहिए कि जब हम कचरे की रीसाइक्लिंग करते हैं, तब वो कचरा नहीं रह जाता, बल्कि एक संपत्ति हो जाता है। हम सबको कचरे के प्रति अपना नजरिया बदलने की जरूरत है, आदतें अपने आप बदल जाएंगी। कचरे का निस्तारण और रीसाइक्लिंग से न सिर्फ स्वच्छता में मदद मिलती है, बल्कि रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री को भी बढ़ावा मिलेगा। कुल मिलाकर एक छोटी सी रीसाइक्लिंग की आदत से पूरे देश और ग्रह का भविष्य सुरक्षित करने में हम अपनी भूमिका निभा पाएंगे।   

Note - This is Brand Desk content 


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