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Glaucoma Awareness Month: बच्चों को भी प्रभावित कर सकता है ग्लूकोमा, जानें इसके कारण, रोकथाम और बचाव

Glaucoma Awareness Month ग्लूकोमा शिशुओं और बच्चों को भी प्रभावित कर सकता है। शिशुओं और बच्चों में आमतौर पर वयस्कों की तुलना में अलग-अलग संकेत और लक्षण दिखते हैं। तो कैसेे कर सकते हैं इससे बचाव जान लें इसके बारे में।

By Priyanka SinghEdited By: Priyanka SinghPublished: Wed, 25 Jan 2023 02:22 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jan 2023 02:22 PM (IST)
Glaucoma Awareness Month: बच्चों को भी प्रभावित कर सकता है ग्लूकोमा, जानें इसके कारण, रोकथाम और बचाव
Glaucoma Awareness Month: बच्चों में ग्लूकोमा के कारण, लक्षण व बचाव

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Glaucoma Awareness Month: ग्लूकोमा को 'नज़र का ख़ामोश चोर' भी कहा जाता है क्योंकि जब यह बीमारी होती है तो इसका कोई ख़ास लक्षण नहीं नज़र आता है। इस बीमारी से एक बार जब देखने की क्षमता खो जाती है तो पूरी रूप से दिखना बंद हो जाता है। ग्लूकोमा से होने वाले अंधेपन को ठीक नहीं जा सकता है। ग्लूकोमा तब होता है जब तरल पदार्थ आंखों के दबाव में वृद्धि करता है। इस दबाव को इंट्राओकुलर दबाव (IOP) कहा जाता है। हाई IOP ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है जिससे आंखों की रोशनी चली जाती है। इस 'ग्लूकोमा जागरूकता माह' आइए हम ग्लूकोमा के कारणों और रोकथाम के बारे में गहराई से जानें देखने की क्षमता को बेहतर बनाने की कोशिश करें।

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वयस्कों में ग्लूकोमा ज्यादा होता है। लेकिन ग्लूकोमा शिशुओं और बच्चों को भी प्रभावित कर सकता है। जन्मजात ग्लूकोमा जन्म के समय होता है जबकि इनफैंटाइल ग्लूकोमा जीवन के पहले तीन सालों में होता है। ग्लूकोमा के दूसरे रूप को जुवेनाइल ग्लूकोमा कहा जाता है, यह टीनएज बच्चों को प्रभावित कर सकता है। शिशुओं और बच्चों के साथ ग्लूकोमा में आमतौर पर वयस्कों की तुलना में अलग-अलग संकेत और लक्षण दिखते हैं।

पीडियाट्रिक ग्लूकोमा के कई केस में कोई विशिष्ट लक्षण नज़र नहीं आता है। इन्हें प्राथमिक ग्लूकोमा माना जाता है। बचपन के ग्लूकोमा से पीड़ित होने का सबसे आम कारण आंख की अलग-अलग एलर्जी संबंधी बीमारियों के लिए स्टेरायडल आई ड्रॉप का अनजाने में इस्तेमाल करना है। इन आई ड्राप से अंधेपन वाला ग्लूकोमा हो सकता है। इसलिए आंख की छोटी सी भी बीमारी के लिए भी नेत्र विशेषज्ञ से कंसल्ट करना जरूरी है क्योंकि बच्चे की आंखें बहुत सेंसिटिव होती हैं। जब ग्लूकोमा किसी खास स्थिति या बीमारी के कारण होता है, तो इसे सेकेंडरी ग्लूकोमा कहा जाता है। बचपन के ग्लूकोमा से जुड़ी स्थितियों के उदाहरणों में एक्सेनफेल्ड-रीगर सिंड्रोम, एनिरिडिया, स्टर्ज-वेबर सिंड्रोम, न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस, क्रोनिक स्टेरॉयड का उपयोग, ट्रॉमा, या पिछली आंख की सर्जरी जैसे कि चाइल्डहुड ग्लूकोमा रिमूवल शामिल है। इन स्थितियों वाले सभी मरीज ग्लूकोमा विकसित नहीं करते हैं, लेकिन ग्लूकोमा की घटनाएं औसत से काफी ज्यादा हैं और इसलिए आंखों की नियमित रूप से निगरानी की जानी चाहिए।

बच्चों में ग्लूकोमा के लक्षण

ग्लूकोमा के लक्षण व्यक्ति की स्थिति के प्रकार और अवस्था पर निर्भर करते हैं। ग्लूकोमा एक आंख या दोनों आंखों में हो सकता है। जन्मजात/इनफैंटाइल ग्लूकोमा के लक्षणों में आंखों से अत्यधिक पानी आना, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता होना, और बड़ा धुंधला कॉर्निया जिसके कारण आइरिस सुस्त दिखाई देना आदि शामिल हो सकता है। दूसरी ओर जुवेनाइल ग्लूकोमा बिना किसी स्पष्ट लक्षण के होता है, जिस तरह एडल्ट ग्लूकोमा होता है उसी तरह से जुवेनाइल ग्लूकोमा भी होता है। जुवेनाइल ग्लूकोमा वाले मरीजों में अक्सर उनके मां-बाप में किसी को ग्लूकोमा होने पर उन्हें भी ग्लूकोमा हो सकता है। जांच करने पर पता चलता है कि आंखों का दबाव आमतौर पर ज्यादा हो जाता और ऑप्टिक नर्व में कपिंग के संकेत हो सकते हैं। अगर आंखों का दबाव तेजी से बढ़ता है तो दर्द और परेशानी हो सकती है।

कुछ लोगों में ग्लूकोमा के लक्षण बहुत विशेष नहीं हो सकते हैं। जैसे कि उनमें सिरदर्द, आंखों में पानी आना या रंगीन प्रभामंडल देखना,ये लक्षण आंखों की अन्य समस्याओं या बीमारियों से मिलते जुलते हैं। माता-पिता और देखभाल करने वालों को इन लक्षणों पर नज़र रखनी चाहिए और इन लक्षणों के महसूस होने पर नेत्र रोग विशेषज्ञ से शीघ्र कंसल्ट करना चाहिए।

ग्लूकोमा होने का खतरा और रोकथाम

ग्लूकोमा से दृष्टि हानि और अंधेपन को रोकने के निम्न तरीके हैं:

- ग्लूकोमा से अपनी नज़र को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है नियमित रूप से नेत्र की जांच करवाते रहें। ग्लूकोमा के कई रूपों में कोई चेतावनी के संकेत नहीं होते हैं। अगर किसी बच्चे को ग्लूकोमा होने का खतरा है, तो हर साल नियमित रूप से उसकी आंखों की जांच करवाना महत्वपूर्ण है। इन जांच में इंट्राओकुलर दबाव को मापा जाना चाहिए। इससे ग्लूकोमा के शुरुआती पहचान में मदद मिलेगी। अगर ग्लूकोमा का पता चलता है तो डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाओ का सेवन करना भी बहुत जरूरी होता है।

- स्वस्थ खानपान कई क्रोनिक बीमारियों को दूर करने में मुख्य भूमिका निभाता है, और ग्लूकोमा भी स्वस्थ खानपान से ठीक हो सकता है।

- आंखों में चोट लगने से ग्लूकोमा हो सकता है। खेलों में भाग लेने के दौरान या आवश्यकता पड़ने पर सुरक्षात्मक आईवियर पहनें।

- ज्यादा मेहनत वाली एक्सरसाइज करने से हृदय की गति बढ़ती है और नेत्र संबंधी दबाव भी बढ़ता है। लेकिन नियमित रूप से चलने और मध्यम गति वाली एक्सरसाइज से आंखों का दबाव कम हो सकता है और समग्र स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।

अगर आपको ग्लूकोमा है या आपको यह बीमारी होने का ज्यादा खतरा है, तो अपने सिर को अपने दिल के नीचे लंबे समय तक न रखें। हेड-डाउन पोजीशन ओकुलर प्रेशर को काफी बढ़ा सकती है। सही पोजीशन में सोना भी जरूरी है। अपनी आंख को तकिए के पास या अपनी बांह पर रखकर सोने से बचें।

ग्लूकोमा का इलाज

ग्लूकोमा का इलाज दवा और सर्जरी दोनों से हो सकता है। शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए लम्बे समय तक देखने से सम्बंधित समस्याओं से बचने के लिए सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है। सर्जरी का लक्ष्य जलनिकासी की समस्या को ठीक करना होता है ताकि आंखों से तरल पदार्थ सामान्य रूप से निकल सके। ग्लूकोमा के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के सर्जिकल इलाज उपलब्ध हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ बीमारी की प्रकृति को जांच करके और अन्य कारकों के आधार पर मरीज के लिए सबसे अच्छी सर्जरी का विकल्प सुझाते हैं। ट्रैबेकुलेटोमी और गोनोटॉमी जैसी सर्जरी की सफलता दर बहुत अच्छी है। इसके अलावा भी कई सर्जिकल विकल्प आजकल उपलब्ध हैं। अन्य प्रक्रियाएं ट्रैबेकुलेटोमी, संयुक्त ट्रैबेकुलेटोमी, और ट्रैबेक्युलेटोमी और ग्लूकोमा जल निकासी उपकरण हैं। बीमारी के शुरुआत में की गयी सर्जरी बेहतर परिणाम देती है।

साइक्लोफोटोकोगुलेशन तब किया जाता है जब अन्य कोई इलाज काम नहीं करता है। इस प्रकार की सर्जरी चाइल्डहुड ग्लूकोमा के गंभीर केसों में की जाती है।

ग्लूकोमा के लिए विशिष्ट इलाज बच्चे की उम्र, उसके स्वास्थ्य, उसकी मेडिकल हिस्ट्री, बीमारी के चरण, दवाओं, प्रक्रियाओं, या इलाजों और अन्य कारकों के लिए सहनशीलता के आधार पर नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा निर्धारित किया जाता है। पीडियाट्रिक ग्लूकोमा से पीड़ित बच्चों में उम्र बढ़ने के साथ आंखों की अन्य समस्याएं होने का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए प्रारंभिक डायग्नोसिस और इलाज, सावधानीपूर्वक निगरानी आंखों के स्वास्थ्य को लम्बे समय बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण होता हैं। अच्छी खबर यह है कि जल्दी पता लगने से आंखों को गंभीर रूप से डैमेज होने से रोका जा सकता है और आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है।

(देसाई आई हॉस्पिटल (ऑर्बिस पार्टनर हॉस्पिटल) के ग्लूकोमा डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ विद्या चेलेरकर और डॉ श्रॉफ चैरिटी आई हॉस्पिटल के ग्लूकोमा सर्विस के प्रमुख डॉ सुनीता दुबे द्वारा से बातचीत पर आधारित)


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