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लॉकडाउन में डिप्रेशन के शिकार लोगों में हुआ इजाफा, बचने के ये हैं उपाय

Depression cases increase in lockdown- लंबे लॉकडाउन ने लोगों को घर में कैद कर दिया सोशल डिस्टेंसिंग ने लोगों को दिमागी बीमार बना दिया।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Fri, 24 Apr 2020 06:16 PM (IST)Updated: Fri, 24 Apr 2020 06:16 PM (IST)
लॉकडाउन में डिप्रेशन के शिकार लोगों में हुआ इजाफा, बचने के ये हैं उपाय
लॉकडाउन में डिप्रेशन के शिकार लोगों में हुआ इजाफा, बचने के ये हैं उपाय

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। देश और दुनिया के पास कोरोना के कहर से बचने का सिर्फ एकमात्र रास्ता था लॉकडाउन, जिसे तमाम देशों ने अमल में लाया। कोरोना ने दुनिया में जितनी ज्यादा तबाही मचाई है, उसकी भरपाई सालों में करना मुश्किल है। इस बीमारी ने बच्चे से लेकर बूढ़़े सब पर अपना कहर बरपाया है।

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लॉकडाउन ने बेशक हमें घरों में महफूज रखा है, लेकिन इसने हमारी मनोस्थिति को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। इसने लोगों में निराशा, भय और गुस्सा पैदा कर दिया है। कई तंदुरुस्त दिमाग घर में कैद होकर डिप्रेशन का शिकार बन गए हैं। घर में लोगों पर कई तरह का खौफ सवार है। किसी को कोरोना से पीड़ित होने का डर है तो किसी को अपने करीबी को खो देने की चिंता, बाहर न निकल पाने की बेचैनी, आने वाले दिनों में मंदी की मार जैसी बातें परेशानी की वजह बन गई है। लॉकडाउन ने गरीब से लेकर अमीर सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों ने इसी के मद्देनजर डिप्रेशन के शिकार मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा होने की आशंका जताई है। जामा साइकियाटरी’ में छपे शोधपत्र में उसने मूड नियंत्रित करने की सामान्य प्रक्रिया को बहाल करने के उपाय तलाशने की नसीहत दी है।

अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने अमीर-गरीब और विकासशील देशों के 58,238 प्रतिभागियों के मूड का विश्लेषण किया। इनमें डिप्रेशन के पीड़ितों से लेकर अक्सर तनावग्रस्त और हमेशा खुशनुमा महसूस करने वाले लोग शामिल थे। कई चरणों में हुए इस अध्ययन में उन्होंने पाया कि ज्यादातर लोग रोजमर्रा की पसंदीदा गतिविधियों के जरिये नकारात्मक ख्यालों को दूर करने की कोशिश करते हैं।

पसंदीदा गतिविधियों के जरिये मूड नियंत्रित करने की यह प्रक्रिया ‘मूड होमियोस्टैसिस’ कहलाती है। मुख्य शोधकर्ता प्रोफेसर गाय गुडविन के मुताबिक ज्यादातर समय तनाव से घिरे रहने वाले लोगों में ‘मूड होमियोस्टैसिस’ की प्रक्रिया बेहद धीमी होती है। वहीं, डिप्रेशन के रोगियों में तो यह पूरी तरह से नदारद मिला। उन्होंने कहा कि जब हम उदास होते हैं तो कुछ ऐसा करते हैं, जिससे हमारे चेहरे पर मुस्कराहट आए। इसी तरह खुशी का एहसास बढ़ने पर हम जाने-अनजाने में ऐसी गतिविधियों को अंजाम दे देते हैं, जो मूड बिगाड़ सकती हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि देश और दुनिया में लॉकडाउन के बाद अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने योग, अध्यात्म और श्वास क्रियाओं को तनाव, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी, अकेलेपन की भावना से निजात पाने का सबसे कारगर जरिया बताया है। उन्होंने बताया हैं कि योग रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। आपको बता दें कि बेचैनी और अवसाद से कीटाणुओं व जीवाणुओं से लड़ने की मानव शरीर की क्षमता कमजोर पड़ती चली जाती है। 

               Written By Shahina Noor


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