Cervical Cancer Awareness: स्क्रीनिंग में देरी होने से बढ़ सकता है खतरा, समय पर उपचार से बच सकती है कई जानें
Cervical Cancer Awareness सर्वाइकल कैंसर भारत में महिलाओं में होने वाले दूसरा सबसे ज्यादा कैंसर का प्रकार है। रिसर्च के अनुसार भारत में 10 में से लगभग 8 महिलाओं को HPV (ह्यूमन पेपिलोमावायरस) होता है। इसी संक्रमण से सर्वाइकल कैंसर होता है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Cervical Cancer Awareness: सर्वाइकल कैंसर भारतीय महिलाओं में होने वाले सबसे ज्यादा कैंसर में से एक है। भारत में महिलाओं में दूसरा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर ब्रेस्ट कैंसर है। सर्वाइकल कैंसर एक ऐसा कैंसर होता है जो गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकाओं में होता है। गर्भाशय का निचला हिस्सा जो योनि से जुड़ता है वहां पर यह कैंसर ज्यादातर ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) के कारण होता है। इस बीमारी पर हाल ही में लैंसेट ने एक स्टडी की। इस स्टडी के अनुसार भारत में सर्वाइकल कैंसर के केसों की संख्या सबसे ज्यादा है, इसके बाद चीन का नम्बर आता है। रिसर्च से पता चला कि सर्वाइकल कैंसर से होने वाली कुल मौतों में से 40% में से 23% भारत में और 17% चीन में हुईं।
2020 में वैश्विक स्तर पर सर्वाइकल कैंसर के लगभग 6,04,127 नए केस और 3,41,831 मौतें हुईं। आंकड़े बताते हैं कि सर्वाइकल कैंसर भारत में महिलाओं को खतरनाक दर से प्रभावित कर रहा है। यह बीमारी भारत में महिलाओं में होने वाले दूसरा सबसे ज्यादा कैंसर का प्रकार है। रिसर्च के अनुसार भारत में 10 में से लगभग 8 महिलाओं को HPV (ह्यूमन पेपिलोमावायरस) होता है। यह एक सबसे ज्यादा होने वाला यौन क्रिया से फैलने वाला संक्रमण है। इसी संक्रमण से सर्वाइकल कैंसर होता है।
ग्रामीण भारत में सर्वाइकल कैंसर की स्थिति चिंताजनक
भारत में इस बीमारी से बहुत ज्यादा मौतें होती है। इसके बावजूद उचित और स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की यहां भारी कमी है। इसके अलावा सर्वाइकल कैंसर के लिए वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में लोग जागरूक नहीं है। ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक है। यहां पर ज्यादातर महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं है। वे सर्वाइकल कैंसर के खतरों से अनजान रहती हैं। इसके अलावा क्वालिटी वाली स्क्रीनिंग और डायग्नोसिस नहीं होने से भी स्थिति भयावह रूप धारण कर चुकी है। इसके अलावा जांच में जो खर्च आता है वह भी सर्वाइकल कैंसर को खतरनाक स्तर पर पहुंचाने का बहुत बड़ा कारण है। इसके अलावा इस बीमारी से जुड़े कई मिथक और भ्रांतियां भी मौजूद हैं जिसकी वजह से महिलाएं खुलकर इस मुद्दे पर कभी बात नहीं कर पाती हैं।
ग्रामीण भारत में, जागरूकता की कमी और प्रक्रिया से गुजरने के डर के कारण सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग को महिलाएं या उनके परिवार वाले तवज्जो नहीं देते हैं। इसके अलावा इन सुविधाओं की उपलब्धता और खर्च के अलावा HPV टीकों के बारे में संकोच, अज्ञानता और भय भी महिलाओं में है।
HPV और वैक्सीनेशन (टीकाकरण) की भूमिका
HPV टीकाकरण के बारे में भारत में जागरूकता की कमी और स्वीकृति की कमी है। एक साधारण HPV वायरस खतरनाक कैंसर को जन्म दे सकता है। 1980 के दशक की शुरुआत में HPV संक्रमण और सर्वाइकल कैंसर के बीच सम्बन्ध का पता चला था। अब यह साबित हो गया है कि HPV संक्रमण सर्वाइकल कैंसर को जन्म देता है। HPV वायरस कई प्रकार के होते हैं। उनमें से एचपीवी टाइप 16 और 18 दुनिया भर में 70% सर्वाइकल कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए इन्हें ज्यादा ख़तरे वाले एचपीवी वायरस के रूप में चिन्हित किया गया है। उन्हें कार्सिनोजेनिक कहा जाता है, क्योंकि इन्हें कैंसर पैदा करने वाला वायरस कहा जाता है।
डॉक्टरों के अनुसार, HPV संक्रमण से बचाने वाला टीका लगवाकर आप सर्वाइकल कैंसर को होने से रोकने के ख़तरे को कम कर सकते हैं।
अच्छी खबर यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में कहा था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में सर्वाइकल कैंसर को खत्म करने के लिए भारत जल्द ही HPV टीकाकरण करने जा रहा है। इस बीच भारत के पहले स्वदेशी सर्वाइकल कैंसर के टीके की कीमत 200-400 रुपये ज्यादा सस्ती होने की संभावना है, जिससे यह भारत में जनता के लिए बहुत सस्ती हो जायेगी और इसे वे लगवा सकेंगे।
स्क्रीनिंग कराने में देरी सबसे बड़ी समस्या
अगर समय पर डायग्नोसिस किया जाए तो जिंदगी बचाई जा सकती है। सर्वाइकल कैंसर की जांच में देरी काफी हद तक भारतीय महिलाओं को मौत के करीब ले जाती है। फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसाइटीज ऑफ इंडिया (FOGSI) सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग के लिए सबसे अच्छे तरीके के रूप में हर 5 साल में संयुक्त साइटोलॉजी और HPV टेस्टिंग के साथ को-टेस्टिंग के उपयोग की सलाह दी जाती है। इसके अलावा को-टेस्टिंग से CIN3 और कैंसर का पहले से ही डायग्नोसिस हो जाता है। सर्वाइकल इंट्रापीथेलियल नियोप्लासिया 3 (CIN3), ह्युमन पेपिलोमावायरस (एचपीवी) संक्रमण से जुड़ा हुआ है, सर्वाइकल कैंसर शुरूआती स्टेज में भी एक खतरनाक स्थिति होती है।
एक्सपर्ट ने यह भी नोट किया है कि साइटोलॉजी के साथ HPV को शामिल करने से अकेले साइटोलॉजी की तुलना में ज्यादा AIS (एडेनोकार्सिनोमा इन सीटू) खोजने में मदद मिलती है और नकारात्मक को-टेस्टिंग हर पांच साल में स्क्रीनिंग की सहूलियत देता है। सर्वाइकल कैंसर के AIS सर्वाइकल एडेनोकार्सिनोमा के लिए एक प्रमुख अग्रगामी है।
AIS क्लीनिकली सर्वाइकल कैंसर का पता लगाता है और इसमें शुरुआती आक्रमण के बीच सामान्य अंतराल कम से कम पांच साल का प्रतीत होता है, इस दौरान स्क्रीनिंग और इलाज कराने का पर्याप्त समय होता है। वास्तव में को-टेस्टिंग को संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है और वहां के हाल के आंकड़े सर्वाइकल कैंसर की दरों में निरंतर गिरावट दिखाते हैं।
(डॉ सुनीता कपूर द्वारा, सिटी एक्सरे & स्कैन क्लीनिक प्रा लि की कंसल्टेंट पैथोलॉजिस्ट से बातीचीत पर आधारित)
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