Coronavirus Antibody: क्या शरीर में एंटीबॉडी बनने का मतलब यह तो नहीं है कि अब कोरोना नहीं होगा?
Coronavirus Antibody शरीर में एंटीबॉडी पाए जाने का मतलब यह हुआ कि इन लोगों को कोरोना संक्रमण हो चुका है और उनके शरीर ने उसके ख़िलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Coronavirus Antibody: दुनियाभर के देशों में कोरोना वायरस संक्रमण के लिहाज़ से अमेरिका के बाद भारत दूसरा सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है। अभी भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 51 लाख के पार पहुंच चुकी है। एक तरफ देश में कोरोना के मरीज़ों की संख्या लगातार ज़रूर बढ़ रही है, लेकिन यहां इलाज के बाद लोग तेज़ी से ठीक भी हो रहे हैं।
जब से कोरोना वायरस महामारी फैलनी शुरू हुई है, तब से एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिक इसके बारे में नए-नए शोध करने में लगे हैं। हाल ही में दिल्ली सीरो सर्वे किया गया था, जिसकी रिपोर्ट दिल्ली सरकार ने जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 33 प्रतिशत दिल्लीवासियों के शरीर में कोरोना वायरस के एंटीबॉडी पाई गई है। शरीर में एंटीबॉडी पाए जाने का मतलब यह हुआ कि इन लोगों को कोरोना संक्रमण हो चुका है और उनके शरीर ने उसके ख़िलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली है।
यह तीसरे सीरो सर्वे की रिपोर्ट है। इससे पहले दूसरी रिपोर्ट अगस्त जारी की गई थी, जिसके मुताबिक दिल्ली के 29 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गई थी। वहीं, पहला सीरो सर्वे जुलाई में किया गया था, जिसमें पाया गया था कि एक-चौथाई से ज़्यादा दिल्लीवासी संक्रमित हो चुके हैं। पहले सर्वे के लिए 21,387 सैंपल लिए गए थे, जिसमें 23.48 फ़ीसदी लोगों में विकसित एंटीबॉडी पाई गई थी। वहीं, दूसरी बार सैंपल 15 हज़ार लोगों तक ही सीमित था। दूसरे सर्वे में 32.2 फ़ीसदी महिलाओं में और 28 फ़ीसदी पुरुषों में विकसित एंटीबॉडी मिली। जबकि इस बार 17000 सैम्पल शामिल किए गए।
इस रिपोर्ट का एक सीधा मतलब ये है कि दो करोड़ की आबादी वाली राजधानी में करीब 66 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, जिनके शरीर ने इस संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली है और अब वे ठीक हो चुके हैं।
क्या एंटीबॉडी विकसित हो जाने का मतलब अब दोबारा संक्रमण नहीं होगा?
ICMR के डॉक्टर्स की मानें तो, इस बात के अभी बहुत ज़्यादा प्रमाण नहीं मिले हैं कि एक व्यक्ति कोरोना से दोबारा संक्रमित हो सकते हैं या नहीं। हालांकि, एक बात जो साफ है, वह यह कि जो लोग एक बार संक्रमित हो चुके हैं और उन्होंने इसके खिलाफ एक इम्यून ज़रूर विकसित कर लिया है।
इम्यून विकसित करने का मतलब ये है कि आने वाले कुछ समय तक तो उम्मीद है कि वे सुरक्षित रहेंगे, लेकिन दोबारा कोरोना से संक्रमित नहीं होंगे या नहीं, इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। सीरो सर्वे के नतीजों से सिर्फ ये पता चलता है कि लोग संक्रमित हुए थे और अभी ठीक हो चुके हैं। इससे ज़्यादा इस वक्त और कुछ कहा नहीं जा सकता।
सबसे पहले संक्रमण को समझना है ज़रूरी
संक्रमण का मतलब है कि शरीर के भीतर किसी ऐसे रोगवाहक या बाहरी तत्व का प्रवेश करना, जो शरीर के अंगों को नुक़सान पहुंचा सकता है। ऐसे में जब आपने उसका प्रोटेक्शन मैकेनिज़्म विकसित कर लिया है, तो वो शरीर को नुकसान नहीं करेगा। यानी जिन लोगों के शरीर में एंटीबॉडी बन चुकी हैं, उन्हें संक्रमण होने की उम्मीद काफी कम है, क्योंकि उनके शरीर में पहले से एंटीबॉडी बनी हुई है और ऐसे में वायरस के हमले से फौरन प्रोटेक्टिव मेकेनिज़्म एक्टिवेट हो जाएगा और वह तुरंत उसके प्रवेश को रोक देगा।
अगर कोरोना म्यूटेट हो जाए, क्या तब भी एंटीबॉडी रक्षा कर सकेंगी?
कोरोना के अभी तक मिले हज़ारों-लाखों नमूनों से ये पता चलता है कि कोरोना तेज़ी से म्यूटेट यानी स्वरूप बदल रहा है। ऐसे में ये सवाल उठना वाजिब है कि क्या एंटीबॉडी शरीर की रक्षा कर सकेगी। इस बारे में डॉक्टर्स का कहना है कि कोरोना वायरस एक नया वायरस है, जिसके बारे में अब भी पूरी तरह से जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसलिए कुछ कहना मुश्किल है।
अभी इस पर शोध चल रहा है कि यह वायरस किस दर से म्यूटेट हो रहा है। हालांकि, म्यूटेशन का ख़तरा हमेशा से रहा है। जैसे, इंफ़्लुएंज़ा यानी आम फ्लू वायरस की स्ट्रेन हर साल बदलती है और नई स्ट्रेन लोगों को संक्रमित करती है। ऐसे में इसकी वैक्सीन सिर्फ एक साल के लिए काम करती है। इसलिए कोरोना की स्ट्रेन और म्यूटेशन को समझना पड़ेगा।