Move to Jagran APP

गर्मियों में तन-मन को रखें ठंडा और कूल-कूल, डाइट में जरूरी बदलाव के साथ

लॉकडाउन का दौर और पाबंदियों के बीच मिली छूट में घर का खाना और सेहत का ख्याल कुछ ज्यादा ही खास हो गया है। ऐसे में गर्मियों में तन-मन को ठंडा रखने वाले भोजन को अपनाना चाहिए।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Mon, 25 May 2020 08:28 AM (IST)Updated: Mon, 25 May 2020 08:28 AM (IST)
गर्मियों में तन-मन को रखें ठंडा और कूल-कूल, डाइट में जरूरी बदलाव के साथ
गर्मियों में तन-मन को रखें ठंडा और कूल-कूल, डाइट में जरूरी बदलाव के साथ

पुष्पेश पंत

prime article banner

लॉकडाउन में सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चा में रही लोगों की कुकिंग। ऐसे में यूट्यूब से देखकर खाने को लेकर तरह-तरह के एक्सपेरिमेंट और घर में आसानी से उपलब्ध सामग्री से ही लोग अपने दिन गुजार रहे हैं। फिलहाल मौसम में बढ़ती गर्मी से कहीं न कहीं लॉकडाउन के ये दिन और भी मुश्किल भरे होने लगे हैं। जठराग्नि शिथिल होती जा रही है। एकरसता से निजात पाने के साथ-साथ शरीर को पुष्ट महामारी से निरापद रखने के लिए संतुलित आहार की व्यवस्था हर परिवार की प्राथमिकता सूची में सर्वोपरि है। ऐसे में भारतीय खाद्य परंपरा का वह अध्याय बहुत जरूरी हो जाता है, जहां मौसम के हिसाब से हर क्षेत्र का अपना भोजन गर्मी को मात देने में निभा सकता है अहम भूमिका।

ताप से बचाते विविध पदार्थ

आयुर्वेद के ग्रंथों में यह पारंपरिक ज्ञान संरक्षित है कि गर्मी का कष्टदायक अनुभव शारीरिक ही नहीं होता। विविध प्रकार के तापों की दार्शनिक चर्चा हमारा मकसद नहीं पर बाहरी-शारीरिक नापे जा सकने वाले तापमान और आंतरिक दाह की अनुभूति में अंतर समझना जरूरी है। महाकवि कालिदास ने अपनी कालजयी रचना ऋतुसंहारम् में उन पदार्थो का उल्लेख किया है जिनका स्पर्श अथवा सेवन हर प्रकार की जलन से राहत पहुंचाता है। 

मौसम के साथ बदलती रंगत

देश का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा होगा जहां गर्मियों के क्लेश को हरने वाले व्यंजन लोकप्रिय न रहे हों। जिस तरह जाड़े के मौसम में गरम मसाले की उपयोगिता दोषों को संतुलित करने वाली होती है वैसे ही जानकार लोग ग्रीष्म ऋतु में शीतल मसाला मिश्रण का प्रयोग करते थे। गर्मियों में तन-मन को शीतल करने वाले भोजन की एक और विशेषता नजर आती है। थाली-कटोरी या पत्ते पर परोसी जाने वाली सामग्री का रंग भी सुर्खी से सफेदी का रुख करने लगता है। खासकर उस क्षेत्र/प्रदेश में, जहां सूर्य देव की किरणें अधिक बलवान होती हैं और जहां उमस के साथ इनका सन्निपात अधिक त्रस्त करता है।

हर कोने में लज्जत

तमिलनाडु का झक सफेद 'तायिर सादम' (दही भात) और 'तायिर वड़ा' (दही वड़ा) इसके अच्छे उदाहरण हैं। भात के साथ खाई जाने वाली तरी वैसे भी ज्यादा गाढ़ी रहती है पर गर्मियों में पनीला रूप धारण कर लेती है। तमिलनाडु तथा केरल के अनेक 'कोझांबु' मोरु अर्थात छाछ से तैयार किए जाते हैं। इसी छाछ से रेगिस्तानी राजस्थान में पतला खाटा (कढ़ी का स्थानीय रूप) पेश किया जाता है। कर्नाटक, गोवा तथा महाराष्ट्र में ठंडक पहुंचाने वाले तरीदार सामिष तथा निरामिष व्यंजनों में नारियल का दूध (पानी मिलाकर) इस्तेमाल किया जाता है। तटवर्ती इलाके से दूर रहने वाले लोग सूखे नारियल से हासिल गोले को कद्दूकस कर पानी में भिगोकर यह दूध बना सकते हैं। गुजरात व राजस्थान की बाजरे वाली कढ़ी हो या पंजाब, उत्तर प्रदेश व बिहार की बेसन-दही से बनी कढ़ी, इन्हें गर्मी के लिए बेहतरीन समझा जाता है। तमिलनाडु में ही नहीं उसके पड़ोसी राज्यों में भी चावल को इमली, नींबू, टमाटर, गोंगुरा, करी पत्ता आदि के साथ तरह-तरह से खाया जाता है। बंगाल का झोल भी इन दिनों जाल पर हावी हो जाता है।

ठंडे व्यंजनों का भी जवाब नहीं

कुछ क्षेत्रीय व्यंजन ऐसे हैं जो ठंडे ही स्वादिष्ट लगते हैं। ओडि़सा में बचे बासी भात को रातभर पानी में भिगोकर हल्का खमीर चढ़ाकर सुपाच्य 'पकाल' खाया जाता है। यही बंगाल में 'पांथा भात' और बिहार-झारखंड में 'पानी भात' कहलाता है। ओडि़सा में दही-बैंगन का आनंद व्यंजन के रूप में लिया जाता है। कोंकण वाले भूभाग में फालसे जैसे रंग वाले कसैलापन लिए खटास का पुट देने वाले कोको से 'सोल कढ़ी' तैयार की जाती है जो ठंडी ही परोसी जाती है। 'चित्रान्न' और 'पुलिहोरा' नामक ऐसे व्यंजनों का आनंद भी ठंडा ही लिया जाता है। इन दिनों इन व्यजंनों की खास उपयोगिता है। हमें खाना बचा-खुचा भी बर्बाद करने से बचना चाहिए। थोड़ा भी हो तो उसे छौंककर व नए अवतार में तैयार कर नाश्ते में बखूबी काम लाया जा सकता है। अवध में गर्मियों के मौसम में कैरी वाली अरहर की दाल का चलन रहा है तो बंगाल में चने की दाल में लौकी उसे हल्का बनाती रही है।

सदाबहार सहायक व्यंजन

पूर्वाचल में सत्तू सदाबहार गरीब परवर आहार रहा है। हालांकि डॉक्टर के नुस्खे में शामिल किए जाने के बाद आज शहरी हिंदुस्तानी भी इसे चमत्कारी आहार के रूप में अपनाने लगे हैं! सत्तू का सेवन हल्की मिठास वाले शरबत के रूप में भी किया जा सकता है या नमकीन छाछ की तरह भी। इसके अलावा देश के लगभग सभी हिस्सों में गर्मी का कष्ट मिटाने कम करने के लिए चटनियों का प्रयोग होता है। तरह-तरह के रायते और पचडि़यां, कचुंबर भी प्यारे लगने लगते हैं। सूक्ष्म मात्रा में ही सही ये सहायक व्यंजन उन तत्वों को हमारे शरीर में पहुंचाते हैं जो गर्मी का सामना करने की हमारी क्षमता को बढ़ाते हैं। इनमें उन खट्टे, कसैले और तीखे पदार्थो को जगह मिलती है जिनकी तासीर ठंडी मानी जाती है। खटास तथा मिठास का यही मिश्रण नमक के साथ हमें उस आधुनिक चूर्ण में भी नजर आता है जिसे 'ओआरएस' (ओरल रिहायड्रेशन सॉल्यूशन) कहते हैं। कमोबेश यही भूमिका अचार भी निभाते हैं। जिस तरह एक शरबत रुह अफजा मशहूर हुआ वैसे ही कभी गुजरे जमाने में चटनी 'राहत जान' महिमामंडित थी।

(लेखक प्रख्यात खान-पान विशेषज्ञ हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.