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कैंसर से लड़ने में मददगार हो सकती हैं ऊतकों में अंतर्निहित प्रतिरक्षा कोशिकाएं, अध्ययन में शोधकर्ताओं ने किया यह खुलासा

अध्ययन में शोधकर्ताओं द्वारा पाया गया कि संक्रमण व ट्यूमर से बचाव के लिए सक्रिय होने वाली सीडी8प्लस टी सेल (कोशिका) नुकसानदेह हमालवरों को याद रखने में सक्षम हैं। और इसी सेल के आधार पर वैक्सीन बनाकर रोगजनकों व ट्यूमर के विकास को रोका जा सकता है।

By Mahen KhannaEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2022 03:57 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2022 03:57 PM (IST)
कैंसर से लड़ने में मददगार हो सकती हैं ऊतकों में अंतर्निहित प्रतिरक्षा कोशिकाएं, अध्ययन में शोधकर्ताओं ने किया यह खुलासा
कैंसर के खिलाफ जंग के लिए हुआ नया अध्ययन।

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। नई-नई बीमारियों के सामने आने के साथ ही शोधकर्ताओं की दिलचस्पी यह जानने में बढ़ गई है कि मानव प्रतिरक्षा प्रणाली रोगजनकों व कैंसर के खिलाफ किस प्रकार प्रतिक्रिया देती है। एक हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि संक्रमण व ट्यूमर से बचाव के लिए सक्रिय होने वाली सीडी8प्लस टी सेल (कोशिका) नुकसानदेह हमालवरों को याद रखने में सक्षम हैं। और इसी सेल के आधार पर कैंसर से बचाव का तरीका ढूंढा जा सकता है।

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मेमोरी सेल से हो सकता है फायदा

बता दें कि इन सेल्स को मेमोरी सेल कहा जाता है, जिनमें से कुछ पूरे शरीर में प्रसारित हो जाती हैं, जबकि कुछ प्रवेश क्षेत्र की सुरक्षा के लिए अंग विशेष तक सीमित रह जाती हैं। यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो के जीव विज्ञानियों के नेतृत्व में हुआ हालिया अध्ययन इन विशेषज्ञ कोशिकाओं के बारे में ताजा अंतरदृष्टि प्रदान करता है, जिन्हें सीडी8प्लस टी सेल के रूप में जाना जाता है। अध्ययन का नेतृत्व यूसी सैन डिएगो के स्कूल आफ बायोलाजिकल साइंसेज में प्रोफेसर आनंद गोल्डरैथ की प्रयोगशाला में पोस्टडाक्टरल स्कालर मैक्स हेग व जान क्राल (अब आउटस्पेस बायो में विज्ञानी) ने किया है।

मेमोरी टी सेल के आधार पर बन सकती है वैक्सीन

अध्ययन यह समझने में मदद करता है कि टिश्यू-रेजिडेंट मेमोरी टी सेल अलग वातावरण को कैसे स्वीकार कर लेती हैं। डा. गोल्डरैथ के अनुसार, 'टिश्यू-रेजिडेंट मेमोरी टी सेल के अनोखे नकल करने वाले मार्ग व नियामक की पहचान करके हमने नए लक्ष्यों की खोज की है। इसके आधार पर वैक्सीन बनाकर रोगजनकों व ट्यूमर के विकास को रोका जा सकता है। यह अध्ययन निष्कर्ष नेचर इम्युनोलाजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।


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