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कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है लोगों में, अध्ययन का खुलासा

शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि एक-तिहाई आबादी में सार्स-कोव-2 वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 03:20 PM (IST)Updated: Thu, 02 Jul 2020 03:20 PM (IST)
कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है लोगों में, अध्ययन का खुलासा
कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो रही है लोगों में, अध्ययन का खुलासा

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। कोरोनावायरस का कहर सारी दुनिया में देखने को मिल रहा है। हालांकि, अन्य देशों के मुकाबले भारत की स्थिति बेहतर है। यहां जितनी तेजी से कोरोना फैल रहा है, उसी तेजी से ठीक भी हो रहा है। कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ते खतरे के बीच ये राहत की खबर है। स्वीडन स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने अपने हालिया अध्ययन के आधार पर दावा किया है कि एक-तिहाई आबादी में सार्स-कोव-2 वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। यह आंकड़ा पूर्व में अनुमानित संख्या से लगभग दोगुना है।

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अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने स्वस्थ रक्तदाताओं के खून के नमूनों का विश्लेषण कर यह जांचने की कोशिश की कि मानव शरीर कोविड-19 से कैसे लड़ता है। उन्होंने प्रतिभागियों के शरीर में कोरोनारोधी एंटीबॉडी के साथ ही 'टी कोशिकाओं' का स्तर आंका। 'टी कोशिकाएं' एक किस्म की श्वेत रक्त कोशिकाएं हैं, जो प्रतिरोधक तंत्र को विषाणुओं से लड़ने की क्षमता प्रदान करती हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि पूर्वानुमान से दोगुनी आबादी में कोरोना से लड़ने की ताकत पैदा हो गई है। यानी 30 फीसदी से ज्यादा लोग सार्स-कोव-2 वायरस को मात देने में सक्षम बन गए हैं। हालांकि, यह प्रतिरक्षा सिर्फ एंटीबॉडी की देन नहीं है। 'टी कोशिकाएं' वायरस के वार से बचाने में ज्यादा अहम भूमिका निभा रही हैं। एंटीबॉडी के मुकाबले ‘टी-कोशिका’ रूपी सुरक्षा कवच दोगुना लोगों में विकसित हो गया है।

मुख्य शोधकर्ता मार्कस बगर्ट के मुताबिक, 'टी कोशिकाएं' कोरोना के खिलाफ कितनी लंबी प्रतिरक्षा क्षमता मुहैया कराती हैं, इसे आंकने की कवायद जारी है। हालांकि, एंटीबॉडी की बात करें तो इनकी मदद से वायरस के हमले से महज तीन से छह हफ्ते तक ही बचा जा सकता है।

बगर्ट ने ब्रिटेन में हुई एंटीबॉडी जांच का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि देशभर में सात प्रतिशत लोगों में कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी बनी है। लंदन की बात करें तो यह आंकड़ा 17 फीसदी के करीब है। राष्ट्रीय औसत से इतने बड़े अंतर के लिए 'टी कोशिकाओं' को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। 

                    Written By Shahina Noor


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