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आंखों की रोशनी चुराने वाली बीमारी का मिनटों में पता लगाएगी AI तकनीक, आसान हो जाएगा इलाज

सिंगापुर की नानयांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने टैन टॉक सेंग अस्पताल (TTSH) के साथ मिल कर खास तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के जरिए सिर्फ आपकी आंखों की फोटो खींच कर ग्लूकोमा का पता लगाया जा सकता है। ये तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर काम करती है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 08:34 AM (IST)Updated: Tue, 21 Sep 2021 04:03 PM (IST)
आंखों की रोशनी चुराने वाली बीमारी का मिनटों में पता लगाएगी AI तकनीक, आसान हो जाएगा इलाज
इस तकनीक में बाएं और दाहिनी ओर से आंख की 2डी फोटो ली जाती है। इससे फिर 3डी बनती है।

नई दिल्ली, विवेक तिवारी। आंखों की खतरनाक बीमारी ग्लूकोमा की जांच के लिए अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। सिंगापुर की नानयांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने टैन टॉक सेंग अस्पताल (TTSH) के साथ मिल कर खास तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के जरिए सिर्फ आपकी आंखों की फोटो खींच कर ग्लूकोमा का पता लगाया जा सकता है। ये तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर काम करती है। इसके तहत दो अलग-अलग कैमरों की मदद से आंख की तस्वीरें ली जाती हैं।

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इस तकनीक के तहत बाएं और दाहिनी ओर से आंख की 2डी फोटो ली जाती है। इनके जरिए वैज्ञानिकों ने 3डी पिक्चर विकसित की। वैज्ञानिकों की ओर से तय किए गए एक निश्चित एल्गोरिदम के जरिए इस तस्वीर के जरिए ग्लूकोमा का पता लगाया जा सका। ग्लूकोमा आंखों की खतरनाक बीमारी है। समय पर इलाज न होने पर आंखों की रोशनी भी चली जाती है। इस तकनीक के जरिए आंखों की ऑप्टिकल नर्व में ग्लूकोमा का पता लगाया जाता है। इस तकनीक के जरिए वैज्ञानिकों को ग्लूकोमा के मरीजों की जांच में 97 फीसदी मामलों में एकदम सही परिणाम मिले हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 2020 में लगभग 76 मिलियन ग्लूकोमा के मरीज थे। इनकी संख्या 2040 में 111.8 मिलियन तक पहुंच सकती है।

पीजीआई चंडीगढ़ के डॉक्टर सुरेंद्र पांडव कहते हैं कि ग्लूकोमा आंखों की एक ऐसी बीमारी है जिसका पता समय से पता लगा पाना बहुत मुश्किल होता है। इसके ऐसे लक्षण नहीं होते जिसे देख कर तुरंत इसकी पहचान की जा सके। वहीं इस बीमारी की पहचान के लिए विशेषज्ञों की जरूरत भी होती है। ऐसे में ग्लूकोमा के बहुत से मरीजों का इलाज तब शुरू हो पाता है कि जब बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। ऐसे में इस बीमारी का पता लगाने में आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस तकनीक काफी कारगर साबित हो सकती है।

Nanyang Technological University के वैज्ञानिकों के मुताबिक इस तकनीक का फायदा ऐसे इलाकों को बड़े पैमाने पर मिल सकता है जहां नेत्र रोग विशेषज्ञ की सुविधा उपलब्ध न हो। इस रिसर्च के को ऑर्थर डॉ लियोनार्ड यिपो के मुताबिक भारत जैसे विकासशील देशों में ग्लूकोमा के 90 फीसदी तक मरीजों की समय पर जांच ही नहीं हो पाती है और समय पर इलाज ही नहीं मिल पाता है। वहीं ग्लूकोमा की जांच करने की मशीनें काफी महंगी है। ऐसे में छोटी जगहों पर मरीजों की बड़े पैमाने पर जांच करना आसान नहीं है। वहीं एक व्यक्ति की रेटीना की जांच में काफी समय खर्च होता है। ऐसे में ये एआई तकनीक मरीजों को काफी फायदा पहुंचा सकती है।

एनटीयू स्कूल ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर और इस स्टडी के लीड ऑर्थर वांग  लिपो के मुताबिक मशीन लर्निंग तकनीक के जरिए हमारी टीम ने खास स्क्रीनिंग मॉडल डेवलप किया है। इस तकनीक के जरिए सिर्फ आंखों की तस्वीर से बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इस तकनीक के इस्तेमाल पर  ophthalmologists की जरूरत पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। अब तक  ophthalmologists आंखों का प्रेशर कई तरह से नाप कर इस बीमारी का पता लगाते थे।

वैज्ञानिकों ने इस बीमारी का पता लगाने के लिए एआई तकनीक के तहत जिस algorithm का इस्तेमाल किया है उसके जरिए मरीज की आंखों की तस्वीर लेने पर तस्वीर का रेजोल्यूशन 70 आता है जबकि स्वस्थ व्यक्ति की आंखों की तस्वीर लेने पर तस्वीर का रेजोल्यूशन 212 आता है।

लीड ऑर्थर वांग लिपो के मुताबिक इस  एआई तकनीक के जरिए मिले परिणाम जबरदस्त थे। हालांकि हम और ज्यादा मरीजों पर इस तकनीक का इस्तेमाल कर  algorithm को और बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे इस मॉडल ने साबित कर दिया है AI तकनीक का अलग अलग बीमारियों की पहचान और उनकी जांच में बेहतर इस्तेमाल हो सकता है। ये काफी सस्ता भी होगा। ऐसे में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में इस तकनीक का बहुत फायदा मिल सकता है।

इस बीमारी में होती है ये समस्या

आंख के अंदर तरल पदार्थ रहता है। यह आंख के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह अपने आप बनता है और अति सूक्ष्म छेद से बाहर निकलता है। कई बार तरल पदार्थ निकलना बंद हो जाते हैं, जिससे दिमाग को संदेश भेजने वाली ऑप्टिक नर्व पर दबाव बढ़ता ही चला जाता है। कई बार नर्व ही क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिससे देखने की क्षमता प्रभावित होता है।

आसानी से पकड़ नहीं आती ये बीमारी

नेत्र रोग विशेषज्ञों के मुताबिक ग्लूकोमा में किसी तरह का कोई दर्द नहीं होता है। धीरे धीरे रोशनी ही खराब हो जाती है। विजुअल फील्ड के माध्यम से आंखों की जांच होती है। इसके शुरुआती लक्षण में आंख से सामने तो सही दिखाई देता है, लेकिन दाहिने और बायें हिस्सा प्रभावित होना शुरू हो जाता है।

क्या हैं लक्षण

- कई बार आंखें बहुत लाल हो जाती हैं

- सिर में कभी कभी तेज दर्द होता है

- रोगी को किसी भी वस्तु पर नजर केंद्रित करने में कठिनाई होती है।

- चश्मे का नंबर बार बार बदलता है।

महत्वपूर्ण आंकड़े

4.5 मिलियन लोग दुनिया भर में में ग्लूकोमा के चलते अपनी आंख की रोशनी गवां चुके हैं डब्लूएचओ के मुताबिक

1.2 मिलियन लोग ग्लूकोमा के चलते अपनी आँखों की रौशनी गवां चुके हैं भारत में

90 फीसदी से ज्यादा मामलों में ग्लूकोमा की बीमारी का पता समय से नहीं लग पाता है

60 साल से ज्यादा की उम्र में इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता है।

2050 तक दुनिया में लगभग 1.5 बिलियन लोग जो की दुनिया की संख्या का 15.3% फीसदी होंगे उनमें ग्लूकोमा पाया जा सकता है 


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