ये है अपना नेविगेशन उपग्रह
दोस्तो, पहली बार भारत ने स्वदेशी नेविगेशन उपग्रह को सफलतापूर्वक लांच कर खुद को अमेरिका, रूस और चीन जैसे चुनिंदा देशों में शुमार कर लिया है। आईआरएनएसएस-1ए नेविगेशन उपग्रह से सेना का निगरानी तंत्र तो मजबूत होगा ही, आपदाओं के समय भी इससे मदद मिलेगी..। - आईआरएनएसएस
दोस्तों, पहली बार भारत ने स्वदेशी नेविगेशन उपग्रह को सफलतापूर्वक लांच कर खुद को अमेरिका, रूस और चीन जैसे चुनिंदा देशों में शुमार कर लिया है। आईआरएनएसएस-1ए नेविगेशन उपग्रह से सेना का निगरानी तंत्र तो मजबूत होगा ही, आपदाओं के समय भी इससे मदद मिलेगी..।
- आईआरएनएसएस-1ए की सफलतापूर्वक लांचिंग के साथ ही भारत नागरिक और रक्षा हितों की ऐसी क्षमता रखने वाले चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हो गया है, जिसमें अमेरिका, चीन, रूस और कुछ यूरोपीय देश शामिल हैं।
- चेन्नई से 120 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 1 जुलाई 2013 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने किया।
-यह भारत का अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक कदम है।
-इस उपग्रह को 44 मीटर लंबे धुव्रीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-पीएसएलवी सी-22 (पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल) के द्वारा अंतरिक्ष में छोड़ा गया। 20 मिनट 42 सेकेंड बाद ही उपग्रह कक्षा में स्थापित हो गया।
-यह इसरो के पीएसएलवी का 24वां मिशन है। इन मिशनों में से यह चौथा मौका है, जब प्रक्षेपण के लिए 'एक्सएल' प्रारूप का इस्तेमाल किया गया। इसरो ने चंद्रयान 1 (पीएसएलवी-सी 11), जीसैट-12 (पीएसएलवी-सी 17) तथा आरआईसैट-1 (पीएसएलवी-सी 19) के प्रक्षेपण में इसका इस्तेमाल किया था।
-इस उपग्रह से जमीन, आकाश और समुद्र में निगरानी की जा सकेगी। यह उपग्रह आपदा प्रबंधन में आंकड़े उपलब्ध करायेगा। साथ ही इससे समुद्री यात्रियों और गोताखोरों को भी मदद मिलेगी।
-यह उपग्रह लगभग1500 किलोमीटर के दायरे तक देश के भीतर और बाहर की गतिविधियों की सूचना उपलब्ध कराने में मदद करेगा।
-इस उपग्रह का वजन करीब1425 किलोग्राम है।
-यह पूरी तरह स्वदेशी है यानी इसका विकास देश में ही किया गया है। इस पर करीब 125 करोड़ रुपये की लागत आई है।
-यह उपग्रह 10 साल तक काम करेगा।
- इसरो ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में पहली बार रात में (11 बजकर 41 मिनट) किसी उपग्रह का प्रक्षेपण किया है।
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