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सोशल वर्क: जॉब के साथ सटिस्फैक्शन भी

सोशल सेक्टर में ऐसे प्रोफेशनल्स की डिमांड बढ़ रही है, जो डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स हैंडल करने के साथ सोशल ऑडिटिंग में दक्ष हों। आने वाले समय में हेल्थ, एजुकेशन और स्किल डेवलपमेंट में इनकी मांग बढ़ेगी...

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 01 Apr 2015 10:47 AM (IST)Updated: Wed, 01 Apr 2015 10:51 AM (IST)
सोशल वर्क: जॉब के साथ सटिस्फैक्शन भी

सोशल सेक्टर में ऐसे प्रोफेशनल्स की डिमांड बढ़ रही है, जो डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स हैंडल करने के साथ सोशल ऑडिटिंग में दक्ष हों। आने वाले समय में हेल्थ, एजुकेशन और स्किल डेवलपमेंट में इनकी मांग बढ़ेगी...

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करण श्रीपति ने आइआइटी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बैचलर्स और मास्टर्स किया। इसके बाद वॉशिंगटन स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने लगे। वहां दो-तीन साल गुजरने के बाद करण को लगा कि उन्हें भारतीय समाज के लिए कुछ करना है। अपने ज्ञान और कौशल से शिक्षा से वंचित आबादी को साक्षर बनाना है। वे इंडिया लौटे और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय एक स्वयंसेवी संगठन के साथ काम करने लगे। हर दिन एक नए चैलेंज से वास्ता पड़ता, लेकिन उन्होंने अपने कदम टिकाए रखे। आज वे खुद का शैक्षिक संगठन चलाने से लेकर गांव के सरकारी स्कूलों में क्वालिटी एवं मॉडर्न एजुकेशन पर कंसल्टेंसी देते हैं।?सोशल वर्क का मतलब अब सिर्फ गरीब तबके की मदद या अच्छे काम करना ही नहींरह गया है, बल्कि यह एक करियर ऑप्शन के रूप में भी सामने आया है। अगर आप भी समाज के प्रति जवाबदेही महसूस करते हों, तो सोशल सेक्टर को एक्सप्लोर कर सकते हैं।

ऐसे होता है काम

आज जिस तरह से डिसेबिलिटी, ड्रग्स, मानसिक अवसाद, बुढ़ापा, बेरोजगारी आदि की समस्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए समाजसेवा में युवाओं की काफी दरकार है। सोशल सेक्टर में काम करने वाले प्रोफेशनल्स को लोगों की आर्थिक, सामाजिक और मानसिक समस्याओं को जानना, समझना और फिर उसका हल निकालना होता है। इसे काउंसलिंग, कॉन्फ्रेेंस, सेमिनार, अवेयरनेस प्रोग्राम्स के जरिए पूरा किया जाता है। इसके अलावा सोशल वर्कर जरूरतमंदों तक संसाधन भी पहुंचाते हैं।

स्किल्स जो हैं जरूरी

सोशल सेक्टर में काम करने के लिए आपके पास लोगों के साइकोलॉजिकल और इमोशनल पक्षों की समझ होनी चाहिए। आपमें धैर्य और संवेदनशीलता होना बेहद जरूरी है। इसके अलावा, आपमें सकारात्मक बदलाव और सही फैसले लेने की क्षमता भी होनी चाहिए।

डिग्री से बढ़ेगी समझ

वैसे तो समाजसेवा के लिए किसी डिग्री की जरूरत नहींहै। लेकिन सामाजिक, पारिवारिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को तार्किक ढंग से समझने के लिए होम साइंस, साइकोलॉजी, सोशियोलॉजी या सोशल साइंस में ग्रेजुएशन के बाद सोशल वेलफेयर, सोशल साइंस में मास्टर्स करना अच्छा रहेगा। इंडिया में कई इंस्टीट्यूट्स और यूनिवर्सिटीज में इससे संबंधित कोर्स संचालित किए जाते हैं, जहां एंट्रेंस टेस्ट और इंटरव्यू के आधार पर दाखिला मिलता है।

काम करने के अवसर

गांव-शहर की समस्याओं को लेकर बढ़ती जागरूकता, साक्षरता पर जोर एवं स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति गंभीर नजरिया विकसित होने से सोशल सेक्टर में काम करने की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। ग्रामीण विकास विभाग, आशा, आंगनवाड़ी जैसी सरकारी एजेंसियों, एनजीओ के अलावा इंडस्ट्रियल एवं कॉमर्शियल यूनिट्स और कॉरपोरेट हाउसेज में सोशल साइंस प्रोफेशनल्स के लिए अनेक अवसर हैं। यही नहीं, यूनिसेफ, यूनेस्को, रेड क्रॉस, ऑक्सफैम जैसे इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशंस में भी इनकी अच्छी मांग है।

अवसरों की कमी नहीं

सोशल सेक्टर में आप चाइल्ड डेवलपमेंट प्रोग्राम, इंटरनेशनल फंडिंग, इंडस्ट्री सीएसआर प्रोजेक्ट्स, चाइल्ड गाइडेंस क्लीनिक, काउंसलिंग सेंटर, रूरल ऐंड अर्बन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स, एल्डरली केयर फैसिलिटीज में काम कर सकते हैं। चाहें तो अपना एनजीओ शुरू कर सकते हैं या फिर फ्रीलांसर के तौर पर सर्वे, प्रोजेक्ट प्रपोजल, प्रोजेक्ट रिपोट्र्स बनाने में मदद कर सकते हैं।

प्रो. नीला दाबिर, डिप्टी डायरेक्टर, टीआइएसएस

टॉप इंस्टीट्यूट्स

-टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई

222.ह्लद्बह्यह्य.द्गस्रह्व

-दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली

222.स्रह्व.ड्डष्.द्बठ्ठ

-महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी

222.द्वद्दद्म1श्च.ड्डष्.द्बठ्ठ

-जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली

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इंटरैक्शन : अंशु सिंह


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