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क्या आज भी बरकरार है आइएएस का क्रेज?

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा हर साल आयोजित की जाने वाली देश की सबसे प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा-2013 के फाइनल रिजल्ट के मुताबिक कुल 1122 कैंडिड्टेस प्लानिंग और स्ट्रेटेजी के साथ सही दिशा में फोकस करके सफल हुए हैं। इस बार टॉप 25 स्थानों में से 15 पर लड़के और 10 पर लड़कियों न्

By Edited By: Published: Wed, 18 Jun 2014 01:42 PM (IST)Updated: Wed, 18 Jun 2014 01:42 PM (IST)
क्या आज भी बरकरार है आइएएस का क्रेज?

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा हर साल आयोजित की जाने वाली देश की सबसे प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा-2013 के फाइनल रिजल्ट के मुताबिक कुल 1122 कैंडिड्टेस प्लानिंग और स्ट्रेटेजी के साथ सही दिशा में फोकस करके सफल हुए हैं। इस बार टॉप 25 स्थानों में से 15 पर लड़के और 10 पर लड़कियों ने बाजी मारी है। इनमें कोई इन्वेस्टमेंट बैंकर की जॉब छोड़कर, कोई डॉक्टर बनने के बाद, तो कोई पूरी तरह से सिविल सर्विसेज पर फोकस्ड रहकर एग्जाम की तैयारी में जुटा था। हालांकि सबका लक्ष्य एक था। इस बार जोश के माध्यम से हम टॉप के तीन स्थानों पर रहे कामयाब कैंडिडेट्स से रूबरू करा रहे हैं। इनमें पहला स्थान पाने वाले गौरव अग्रवाल, दूसरा स्थान हासिल करने वाले मुनीश शर्मा और तीसरे स्थान पर आए रचित राज से जानते हैं उनकी कामयाबी की सच्ची दास्तान..

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प्रेशर में भी कर सकें बेस्ट..

बचपन में ही पिता के गुजर जाने के बाद दिल्ली के मुनीश शर्मा को उनकी टीचर मां ने न केवल जतन से संभाला, बल्कि कुछ इस तरह तराशा कि उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में ही दूसरा स्थान हासिल कर अपने जज्बे को दिखा दिया। पेश है उनसे बातचीत के खास अंश..

-अपनी रैंक को लेकर कॉन्फिडेंट थे?

पिछली बार मैंने बहुत अच्छी तैयारी की थी। मुझे पूरी उम्मीद थी कि सलेक्शन जरूर होगा। मैंने नेट पर रिजल्ट देखा, तो शुरू के टॉप रैंक में ही अपना नाम खोज रहा था, लेकिन नहीं मिला। मुझे लगा शायद टॉप में सलेक्शन नहीं हुआ। इसके बाद मैंने पूरा नाम लिखकर सर्च किया, लेकिन फिर भी नहीं आया। इस बार रैंक को लेकर कॉन्फिडेंट नहीं था। तैयारी भी पिछली बार की तुलना में कम ही की थी, लेकिन जब यह पता चला कि मेरी ओवरऑल दूसरी रैंक आई है, तो ताज्जाुब हुआ, पर खुशी भी हुई।

-आपको लगता है कि सिविल सर्विसेज को लेकर युवाओं में अभी भी क्रेज है?

सिविल सर्विसेज को लेकर युवाओं में आज भी बहुत क्रेज है, लेकिन बहुत से लोग इस एग्जाम को टफ मानकर इसकी तैयारी नहीं करते। कुछ आइआइटी-आइआइएम में चले जाते हैं, लेकिन वहां से भी अक्सर उनका लक्ष्य बदल जाता है, लेकिन जिन्हें अपने ऊपर पूरा विश्वास होता है वे यह एग्जाम जरूर क्वालिफाई कर लेते हैं।

-तैयारी में पैरेंट्स की क्या भूमिका रही है?

फैमिली सपोर्ट बहुत मिला। बचपन में दादा हरिचंद्र शर्मा ने हमेशा प्रोत्साहित किया। एक बार स्कूल में इंडिया का मैप तैयार करना था, मुझसे बन नहीं पा रहा था। फिर दादाजी ने कहा कोशिश करो हो जाएगा। बाद में मेरे द्वारा तैयार किया गया मैप क्लासरूम में लगाया गया। वहां से मुझमें एक कॉन्फिडेंस आया। इसके अलावा, मां ने बहुत मेहनत की। मैं दिल्ली में हरिनगर के उसी सरस्वती बाल मंदिर में पढ़ा, जहां मेरी मां पढ़ाती थीं। स्कूल में अध्यापन के साथ उन्होंने परिवार को भी पूरी तरह संभाला। आज जो कुछ भी हूं मां की वजह से हूं।

-प्रिलिम्स, मेन्स और इंटरव्यू के लिए किस तरह की स्ट्रेटेजी बनाई?

मैं स्कूल टाइम से ही पढ़ाई में ठीक था। कोर्स के अलावा दूसरी चीजें पढ़ने का शौक बचपन से था। सिविल सर्विसेज के प्रिलिम्स एग्जाम में किसी खास तरह की स्ट्रेटेजी नहीं बनाई। कैट की तैयारी की थी और रेगुलर न्यूजपेपर पढ़ता था। इसलिए कोई खास दिक्कत नहीं आई। मेन्स के लिए जरूर मेहनत की थी। इंटरव्यू के लिए कुछ खास नहीं किया। इंटरव्यू में आप जो हैं बस वही शो करें, क्योंकि अगर आप कुछ छिपाने की कोशिश करेंगे, तो एक्सप‌र्ट्स आपको पकड़ लेते हैं।

-सिलेबस चेंज का कितना फर्क पड़ा?

सिलिबस में जो चेंज हुआ है, मेरे ख्याल से वह सही है। ऑप्शनल सब्जेक्ट कम हो गए हैं। यह मेरे लिए फायदेमंद रहा। इससे सबको बराबर का चांस मिलता है। मेरा मेन सब्जेक्ट लॉ था। एमबीए के दौरान लॉ की पढ़ाई की थी, वही मेन्स एग्जाम में भी काम आई।

-एक सिविल सवर्ेंट के रूप में किस तरह की स्किल्स जरूरी हैं?

हर परिस्थिति में काम करने की आदत होनी चाहिए। दूसरों को समझने की कला बहुत जरूरी है। इसके अलावा किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले पूरी खोजबीन जरूर करें।

-तैयारी के लिए कितना समय देते थे?

जॉब में होने की वजह से ज्यादा टाइम तैयारी के लिए नहीं दे पाता था। रोज एक-दो घंटे ही पढ़ पाता था, लेकिन शनिवार और रविवार को सात-आठ घंटे स्टडी करता था। इसके अलावा, न्यूज पेपर बहुत पढ़ता था।

-एक सिविल सवर्ेंट सोसायटी और कंट्री को किस तरह से अपना योगदान दे सकता है,जबकि राजनीतिक दखलंदाजी बहुत है।

कहि रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।

रहीम के इस दोहे को मैंने अपने जीवन में उतार लिया है। जब हमने देश सेवा की ठान ली है, तो विपरीत परिस्थितियों से क्या घबराना। हमेशा अच्छाई के रास्ते पर चलेंगे, तो बुराई कभी करीब नहीं आएगी।

-पहले जो जॉब कर रहे थे, उसके बारे में बताएं?

तैयारी के दौरान टीम कंप्यूटर्स नाम की कंपनी में काम कर रहा था। इसके पहले केपीएमजी में काम किया। शुरुआत द स्मार्ट क्यूब नाम की कंपनी से थी। यहां मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। दूसरों से डीलिंग का खास अनुभव मैंने जॉब के दौरान ही हासिल किया है।

इंटरैक्शन : मो. रजा


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