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टार्गेट रखें क्लियर

आइआइटी-जेइइ एंट्रेंस में 7वीं रैंक और ग‌र्ल्स में टॉपर अदिति प्रताप ने अपनी सक्सेस से साबित कर दिया कि अगर कुछ करने का इरादा हो और मंजिल स्पष्ट हो, तो राह आसान हो जाती है.. आइआइटी-जेइइ एंट्रेंस में अपनी कामयाबी को लेकर मैं शुरू से ही कॉन्फिडेंट थी। बस रैंक को लेकर मन में कुछ सवाल थे। लेकिन क्वालिफाइ करने के बारे

By Edited By: Published: Tue, 08 Jul 2014 03:46 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jul 2014 03:46 PM (IST)
टार्गेट रखें क्लियर

आइआइटी-जेइइ एंट्रेंस में 7वीं रैंक और ग‌र्ल्स में टॉपर अदिति प्रताप ने अपनी सक्सेस से साबित कर दिया कि अगर कुछ करने का इरादा हो और मंजिल स्पष्ट हो, तो राह आसान हो जाती है..

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आइआइटी-जेइइ एंट्रेंस में अपनी कामयाबी को लेकर मैं शुरू से ही कॉन्फिडेंट थी। बस रैंक को लेकर मन में कुछ सवाल थे। लेकिन क्वालिफाइ करने के बारे में किसी तरह काकंफ्यूजन नहीं था। दरअसल, देखा जाए, तो मैंने आइआइटी-जेइइ की तैयारी दसवीं क्लास से ही शुरू कर दी थी। दो-तीन साल तैयारी का मुझे बहुत फायदा मिला।

आइआइटी फ‌र्स्ट च्वाइस

मेरा फोकस हमेशा से आइआइटी पर था। मैंने किसी और फील्ड में न तो कोशिश की और न मुझ पर किसी ने फील्ड चेंज करने का दबाव बनाया। मैंने आइआइटी-जेइइ एंट्रेंस की अपनी तैयारी को और धार देने के लिए विद्या मंदिर क्लासेज भी च्वाइन की थी। इसके अंतर्गत मैंने जालंधर में रहकर ही ऑनलाइन क्लासेज कीं।

सिलेबस पर किया फोकस

मैंने आइआइटी-जेइइ की तैयारी सिलेबस पर फोकस करके की। यह पूरा सिलेबस वेबसाइट पर मौजूद है। मैंने उसी को फॉलो किया। इसमें विद्या मंदिर क्लासेज के टीचर्स ने मेरी बहुत मदद की। खासतौर पर मेरे टीचर प्रो.संजीव वर्मा ने तैयारी के दौरान मुझे हर तरह से गाइड किया, इसलिए मुझे किसी तरह की दिक्कत नहीं आई। मुझे ऐसा लगता है कि आमतौर पर स्टूडेंट्स आइआइटी-जेइइ एंट्रेंस में सिलेबस को लेकर ही सबसे ज्यादा कंफ्यूज होते हैं, इसलिए मैं अपने जूनियर्स को यही सलाह दूंगी कि वे सबसे पहले सिलेबस को देखें और उसे अच्छी तरह से समझ कर ही अपनी तैयारी को आगे बढ़ाएं।

फैमिली से मिला सपोर्ट

मेरे पापा एनआइटी जालंधर में सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में प्रोफेसर हैं और मां भी एनआइटी जालंधर में ही मैथमेटिक्स डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ऐसे में परिवार में शुरू से ही पढ़ाई का माहौल रहा। जहां कहीं भी प्रॉब्लम होती थी, तो पेरेंट्स के गाइडेंस से वह सॉल्व हो जाती थी। मैं खुद भी हमेशा से पढ़ाई को लेकर सीरियस थी। स्कूल में हमेशा अच्छे मा‌र्क्स आते थे। पेरेंट्स यह बात अच्छी तरह से जानते थे। उन्होंने पढ़ाई के लिए कभी प्रेशर नहीं बनाया। मुझे पूरी छूट थी अपना फील्ड चुनने की। फैमिली ने हर मोड़ पर मेरा सपोर्ट किया। बड़े भाई अर्पित प्रताप एनआइटी जालंधर से ही मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक हैं। उनका मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा है। फैमिली के इस भरोसे का ही नतीजा है कि आज मैं आइआइटी-जेइइ एंट्रेंस एग्जाम में बेहतर कर सकी।

इंडिया में रहकर करूंगी काम

आइआइटी दिल्ली में एडमिशन और कंप्यूटर साइंस मेरी पहली च्वाइस है। इसके बाद सिविल में ट्राई करूंगी। अब्राड जाने का मुझे कोई क्रेज नहीं है, इसलिए डिग्री कंप्लीट करने के बाद इंडिया में ही रहकर कुछ करना चाहूंगी। आइआइटी से पासआउट होने के बाद बहुत से स्टूडेंट्स को फॉरेन बेस्ड कंपनीज से अच्छा ऑफर मिलने पर वे बाहर चले जाते हैं, लेकिन मेरी पहली च्वाइस इंडिया ही है। मैं यहीं रहकर अपनी कंट्री के लिए कुछ करना चाहती हूं।

इंट्रेस्ट का फील्ड चुनें, एंजॉय करें

जिस फील्ड में इंट्रेस्ट हो, उस फील्ड में करियर बनाना ज्यादा आसान होता है। अक्सर स्टूडेंट्स अपनी च्वाइस से समझौता कर लेते हैं। मेरा शुरू से साइंस सब्जेक्ट्स में इंट्रेस्ट था। मैथमेटिक्स मेरा फेवरेट सब्जेक्ट है। इसलिए तैयारी करना कभी बोरिंग नहींलगा। मैंने अपनी पढ़ाई को एंजॉय किया है।

लक्ष्य से न भटकें

अदिति का मानना है कि अगर कुछ करना है, तो लक्ष्य क्लियर होना चाहिए। टार्गेट तक पहुंचने में मुश्किल आ सकती है, लेकिन खुद पर भरोसा है, तो कभी अपना लक्ष्य न बदलें। अगर मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही, तो ध्यान से अपनी तैयारी को एनालाइज करें कि प्रॉब्लम कहां है? जब आप अपनी वीकनेस को समझ जाएंगे और उसे समय रहते दूर कर लेंगे, तो सक्सेस जरूर मिलेगी।

अदिति प्रताप (जालंधर)

आइआइटी-जेइइ टॉपर, रैंक-7

ग‌र्ल्स में टॉपर

Profile @?Glance

-12वीं : स्वामी संत दास पब्लिक स्कूल, जालंधर से

-फादर : डॉ. प्रताप सिंह

प्रोफेसर, सि. इंजी., एनआइटी जालंधर

-मदर : डॉ. गीता प्रताप

एसो. प्रोफेसर, मैथ,

एनआइटी- जालंधर

-ब्रदर : अर्पित प्रताप, मैकेनिकल इंजीनियर

-तैयारी : विद्या मंदिर क्लासेज, जालंधर के वीसैट प्रोग्राम

में स्टडी

कोमल मित्तल (सोनीपत)

इंटरैक्शन : मो. रजा


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