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पेड़ और पानी बचाने के लिए कब चेतेंगे?

देश के अधिकतर हिस्सों में फरवरी के आखिर और मार्च में होली के तुरंत बाद मौसम के बुरी तरह से खराब होने और मूसलाधार बारिश ने हर किसी को हैरान कर दिया। मौसम विभाग भले ही इसका तकनीकी कारण वेस्टर्न डिस्टर्बेंस को बताए, लेकिन गहराई से गौर करने पर यही

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 16 Mar 2015 03:16 PM (IST)Updated: Wed, 18 Mar 2015 10:23 AM (IST)
पेड़ और पानी बचाने के लिए कब चेतेंगे?

देश के अधिकतर हिस्सों में फरवरी के आखिर और मार्च में होली के तुरंत बाद मौसम के बुरी तरह से खराब होने और मूसलाधार बारिश ने हर किसी को हैरान कर दिया। मौसम विभाग भले ही इसका तकनीकी कारण वेस्टर्न डिस्टर्बेंस को बताए, लेकिन गहराई से गौर करने पर यही लगता है कि मौसम की इस उलटबांसी के लिए हम इंसान कहीं ज्यादा जिम्मेदार हैं। दुनियाभर में और उससे कहीं ज्यादा भारत में हम अपनी सुविधापरस्ती के लिए प्रकृति से लगातार खिलवाड़ करते रहे हैं। संयुक्त राष्टï्र और दुनिया के बड़े-बड़े मंचों से पर्यावरण संरक्षण को लेकर नियमित रूप से जोरदार चिंता जताई जाती रही है, लेकिन ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने और उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करने को लेकर सरकार और संस्थाएं उतनी सतर्क-सावधान कतई नहीं रही हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि जिस पौधे को धूमधाम से लगाया जाता है, कुछ दिन बाद उसकी सुध भी किसी को नहीं रहती और वह असमय ही मुरझा जाता है। सरकार और संस्थाओं के स्तर पर होने वाले अधिकतर वृक्षारोपण अभियानों का ऐसा हश्र आपको कहीं भी दिख जाएगा। स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता हम सभी शिद्दत से महसूस करते हैं, लेकिन तेजी से कटते जा रहे पेड़ों और सिमटते जंगलों को बचाने के लिए एकजुटता दिखाने में हम पीछे रह जाते हैं। हम यह मान लेते हैं कि पर्यावरण को बचाने का काम तो सरकार का है या फिर इसके लिए अभियान-आंदोलन चलाने के लिए जुनूनी पर्यावरणविद और संस्थाएं तो हैं ही। लेकिन नहीं। खुली हवा में सांस लेने के लिए हम सभी को सक्रिय पहल करनी होगी।

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पर्यावरण की तरह शुद्ध जल भी हमारे लिए बेहद जरूरी है। दुनिया के सत्तर प्रतिशत हिस्से में जल यानी समुद्र होने के बावजूद अतिशय खारा होने के कारण उसका पानी पीने के काम में नहीं लाया जा सकता। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछले कुछ सालों से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्रों का जल स्तर बढ़ा रहे हैं। इसकी वजह से अगले कुछ वर्षों में कुछ छोटे तटवर्ती देशों-इलाकों के पूरी तरह जलमग्न होने का खतरा पैदा हो गया है। यह ठीक है कि तकनीक हमारे जीवन को लगातार सुविधाजनक बना रही है, पर तकनीक को बढ़ावा देते समय हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि इससे पर्यावरण को नुकसान न हो। क्योंकि अगर पर्यावरण को क्षति पहुंचती है, तो उसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है। हमें स्वस्थ, सुखी रहना है, तो प्रकृति को समझना और उसके साथ संतुलन बनाकर चलने पर अमल करना होगा। सिर्फ चिंतन और चिंता करने से काम नहीं चलने वाला, बल्कि हमें अपनी धरती और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने, उनकी समुचित देखभाल करने और जल संरक्षण की दिशा में कारगर कदम उठाने की पहल करनी होगी। सरकार के भरोसे रहने की बजाय खुद आगे बढऩा होगा। ... धरती पर पर्याप्त पेड़ और पानी होगा, तभी हमारा जीवन भी खुशहाल होगा।

संपादक

दिलीप अवस्थी


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