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इंजीनियरिंग के जीनियस

देश के लाखों स्टूडेंट्स हर साल आइआइटी या समकक्ष संस्थानों में एडमिशन का सपना संजोए जेइइ में अपीयर होते हैं। कुछ पेरेंट्स के दबाव में ऐसा करते हैं, तो कुछ दोस्तों की देखा-देखी। इंजीनियरिंग-साइंस को लेकर जिनमें जुनून है, उनके लिए तो यह सफर उत्साहजनक होता है

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 26 Nov 2014 02:44 PM (IST)Updated: Wed, 26 Nov 2014 03:13 PM (IST)
इंजीनियरिंग के जीनियस

देश के लाखों स्टूडेंट्स हर साल आइआइटी या समकक्ष संस्थानों में एडमिशन का सपना संजोए जेइइ में अपीयर होते हैं। कुछ पेरेंट्स के दबाव में ऐसा करते हैं, तो कुछ दोस्तों की देखा-देखी। इंजीनियरिंग-साइंस को लेकर जिनमें जुनून है, उनके लिए तो यह सफर उत्साहजनक होता है पर रुचि न रखने वाले स्टूडेंट के लिए यह बोझ बन जाता है। अगर आप भी इंजीनियरिंग की राह पर आगे बढऩा चाहते हैं, तो अपने भीतर के जुनून को जगाएं। ऐसा करके ही आप इसरो से लेकर नासा तक साइंटिस्ट या फिर इंजीनियिरिंग के जीनियस बनने की राह पर आगे बढ़ सकते हैं...

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आइआइटी से बढ़ा फलक

'भारत में 2006-07 में 1511 इंजीनियरिंग कॉलेज थे। 2014-15 में इनकी संख्या बढ़कर 3345 हो गई। अकेले आंध्र प्रदेश में 700 से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज हैं।Ó

शोभित शर्मा असिस्टेंट मैनेजर, एनटीपीसी, झज्जर, हरियाणा

आइआइटी ग्रेजुएट्स के लिए मल्टीनेशनल्स में काम करना बड़ी बात नहीं है, लेकिन पब्लिक सेक्टर में जॉब करना एक चैलेंज है। यह जानते हुए गाजियाबाद के शोभित शर्मा ने आइआइटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल (पावर) इंजीनियरिंग कर, एनटीपीसी में काम करना स्वीकार किया। आज वे हरियाणा के झज्जर स्थित इकाई में बतौर असिस्टेंट मैनेजर काम कर रहे हैं।

11वीं से तैयारी

मैं स्कूल के दिनों में अक्सर लोगों को कहते सुनता था कि इंजीनियर तो कोई भी बन सकता है, लेकिन आइआइटी से इंजीनियरिंग करना अपने आप में विशेष बनाता है। तब मैंने सोचा कि क्या मैं इंजीनियरिंग पढऩे के काबिल हूं? मुझे मैथ्स, फिजिक्स में गहरी दिलचस्पी थी। प्रॉब्लम सॉल्व करना अच्छा लगता था, तो 11वींके साथ-साथ विद्या मंदिर की कोचिंग क्लासेज ज्वाइन कर ली। तैयारी संतोषप्रद हुई और एंट्रेंस क्लियर करने के बाद मेरा आइआइटी में सलेक्शन हो गया।

नई पहचान

आइआइटी में कॉम्पिटिशन का लेवल ऊंचा होता है। देश भर के चुनिंदा स्टूडेंट्स यहां पढऩे आते हैं। उनके साथ इंटरैक्शन करने से मेरा मनोबल काफी बढ़ गया। मुझे अपनी क्षमता पहचानने का अवसर मिला। मैं चीजों को बड़े फलक पर देखने लगा। फाइनल इयर तक पहुंचते-पहुंचते पूरी पर्सनैलिटी ही बदल गई।

पब्लिक सेक्टर जॉब

मैंने रिक्रूटमेंट प्रॉसेस के दौरान ही सोच लिया था कि इंजीनियरिंग की कोर कंपनी से करियर शुरू करूंगा। एनटीपीसी से ऑफर आया। 2010 में मैंने इसे ज्वाइन कर लिया। पब्लिक सेक्टर जॉब में स्टेबिलिटी है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से यह और लुक्रेटिव हो गया है। अवसर भी बढ़ें हैं। जैसे कोर इंजीनियरिंग के अलावा रिसर्च डिपार्टमेंट में काम करने का मौका है।

रियल लाइफ एप्लीकेशन

मैं यूपी के महाराजगंज जिले के एक छोटे से कस्बे धानी बाजार के एक साधारण परिवार से हूं। मेरे पिताजी टीचर हैं। मैंने प्राथमिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हासिल की और गोरखपुर के महात्मा गांधी इंटर कॉलेज से हिंदी माध्यम में इंटरमीडिएट किया। मैं बचपन से ही बहुत मेहनती स्टूडेंट था और हर समय पढ़ाई में लगा रहता था। आठवीं के बाद से ही मैंने आइआइटी एंट्रेंस के लिहाज से गंभीरता से पढ़ाई शुरू कर दी थी।

कोचिंग से राह आसान

मैं आइआइटी में अपने सलेक्शन को लेकर कॉन्फिडेंट था, इसके बावजूद मैंने दिल्ली के एक इंस्टीट्यूट से कोचिंग ली। असल में कोचिंग से आइआइटी की राह थोड़ी आसान हो जाती है, क्योंंकि इसमें आपको तमाम तरह के गाइडेंस मिलते हैं, क्वैश्चन पेपर्स के नियमित अभ्यास कराए जाते हैं और आपकी हर समस्या का समाधान किया जाता है।

आइइएसमें सलेक्शन

वर्ष 2003 में मेरा आइआइटी में चयन हुआ और आइआइटी मद्रास से मैंने इंजीनियरिंग किया। इसके बाद 2007 से 2010 तक मैंने बेंगलुरु की एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम किया। वर्ष 2010 में मेरा चयन आइइएस में हो गया, जिसके बाद मुझे भारतीय रेलवे में नियुक्त किया गया।

सीखने की ललक

इंजीनियरिंग असल में साइंस का रियल लाइफ में एप्लीकेशन ही है। इसलिए अगर किसी को सफल इंजीनियर बनना है, तो उसमें साइंस सीखने के प्रति ललक होनी चाहिए। उसे इस बारे में जिज्ञासु होना चाहिए कि आसपास जो भी चीजें हो रही हैं, वे क्यों और कैसे हो रही हैं? उसकी बारीकियों पर ध्यान देना चाहिए। उसे हमेशा यह सोचना चाहिए कि कोई चीज अलग तरीके से कैसे बनाई जा सकती है? इस तरह का एप्टिट्यूड आपको अच्छा इंजीनियर बनने में मददगार होता है।

भीड़ में न हों शामिल

क्षितिज घुमरिया एरिया मैनेजर, बीपीसीएल, हैदराबाद

आइआइटी और इंजीनियरिंग पर कई सारी फिल्में बन गई हैं। थ्री इडियट्स से मैं काफी प्रभावित हूं। इसमें लोगों को यह बताने की कोशिश की गई है कि जिसमें मन लगे, वही करियर चुनो। फिर भी भेड़चाल में लोग इंजीनियरिंग चुन लेते हैं। मैं ऐसा नहीं था।

क्लियर योर कॉन्सेप्ट

11वीं क्लास में मैं आइआइटी एंट्रेंस के लिए सीरियस हो गया, कोचिंग क्लासेज भी अटेंड की, लेकिन हर वक्त पढऩा मुझसे कभी नहीं हुआ। अगर आपका बेसिक कॉन्सेप्ट क्लियर है, तो चाहे कोई भी सवाल क्यों न पूछ लिया जाए, आपको आंसर देने में दिक्कत नहीं होगी।

डेवलप क्यूरिऑसिटी

आइआइटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया। वहां डिफरेंट टाइप के इंटेलिजेंट स्टूडेंट्स से जब आप इंटरैक्शन करते हैं, तो आपके डाउट्स क्लियर होते जाते हैं और उनके बाद फिर कई सारे नए क्वैश्चंस जन्म लेने लगते हैं, जिनके आंसर की तलाश में आप लगे रहते हैं। यह लगातार चलते रहना चाहिए।

एनहैंस अपॉच्र्युनिटी

बीटेक के बाद मुझे इंडिया से बाहर जाने का मौका मिला। दुबई, अमेरिका, यूरोप कई देशों की यात्रा की। फ्लोरिडा में मासटेक एडवांस्ड टेक्नोलॉजीज ज्वाइन किया। यहीं नहीं, वहां मैंने कुछ दिनों के लिए नासा में इंटर्नशिप भी की। यह सब?इतना इंस्पायरिंग था, जिसने मुझे हर पल कुछ नया करते रहने को और आगे बढ़ते जाने को प्रेरित किया।

'जेइइ मेन्स 2013 में 14.62 लाख स्टूडेंट्स अपीयर हुए थे, जबकि 2014 में 13.56 लाख। इस तरह रजिस्ट्रेशन कराने वालों की संख्या घट रही है।Ó

हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन

रोहित सिंगला

टीम लीड, सेंटियो, दिल्ली

इंजीनियरिंग में सक्सेस की पहली सीढ़ी मानी जाती है आइआइटी और यहां पहुंचने का प्रवेश द्वार होता है जेइइ, जिसे क्रैक करने का हौसला दिखाया पंजाब के संगरूर जिले के रोहित सिंगला ने। रोहित ने 2012 में आइआइटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया और आज यूएस की दिल्ली बेस्ड स्टार्ट-अप कंपनी सेंटियो में कंसल्टेंट के रूप में टीम को लीड कर रहे हैं।

ट्यूशन लेकर की तैयारी

मेरा कभी कोई क्लियर गोल नहीं था। जब 11वींमें पहुंचा, तो टीचर्स ने आइआइटी की तैयारी के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने उनकी बात मानकर लोकल ट्यूशन लेना शुरू किया। इसके अलावा, ब्रिलिएंट ट्यूटोरियल्स के टेस्ट देने चंडीगढ़ जाता। एक साल की तैयारी के बाद 2008 में मेरा जेइइ में सलेक्शन हो गया।

पहला इंग्लिश लेक्चर

आइआइटी में मैंने पहली बार इंग्लिश में लेक्चर सुना। शुरू में परेशानी हुई, लेकिन क्लासमेट्स ने काफी मदद की। वहां मैंने सीखा कि दुनिया में हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन है। खुद पर भरोसा होना चाहिए। ग्रेजुएशन के बाद दोस्त के साथ मिलकर, दो महीने में एक वेब प्लेटफॉर्म क्रिएट किया, जिससे कॉन्फिडेंस आया कि मैं भी आइटी इंडस्ट्री के लिए कुछ डेवलप कर सकता हूं। सेंटियो में 24 लोगों की टीम के साथ काम करते हुए मेरा कॉन्फिडेंस और बढ़ा। पहले फ्यूचर को लेकर कोई लॉन्ग टर्म विजन नहीं था, लेकिन अब अपना स्टार्ट-अप लॉन्च करने का इरादा है।

एफिशिएंसी बढ़ाते आइआइटी

आयूष अग्रवाल

सीनियर सिविल इंजीनियर, मुंबई

देहरादून के आयूष अग्रवाल ने बचपन से ही आइआइटी में पढऩे और इंजीनियर बनने का ख्वाब देख रखा था। उनके सामने कई चुनौतियां आईं, लेकिन वह हिम्मत से आगे बढ़ते रहे और लक्ष्य को हासिल कर दिखाया। आइआइटी दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद आज वे मुंबई में मल्टीनेशनल कंपनी में बतौर सीनियर सिविल इंजीनियर काम कर रहे हैं।

टर्निंग प्वाइंट

मुझे दो साल के लिए कोटा भेजा गया था, ताकि एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी कर सकूं। मैंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन एग्जाम के ठीक पहले मुझे चिकनपॉक्स हो गया। बावजूद इसके मैंने परीक्षा दी और उसमें कंपीट किया। हालांकि रैंक कम आने से 2008 में फिर से जेइइ का एग्जाम दिया, जिसमें मेरा रैंक 1518 आया।

बढ़ा कॉन्फिडेंस

आइआइटी में मुझे आइडिया की ताकत का पता चला। वहां मैंने शेयरिंग, आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग, टाइम मैनेजमेंट और खुद को एफिशिएंट बनाने के गुर सीखे। आइआइटी में आपको हमेशा हर चैलेंज, हर एग्जाम के लिए तैयार रहना सिखाया जाता है। बहुत स्ट्रेसफुल होती है पढ़ाई। लेकिन बेसिक माइंडसेट और टेंपरामेंट डेवलप होने में देर नहीं लगती।

प्रैक्टिकल अनुभव

आइआइटी में मुझे इंटरनेशनल स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत मिशिगन यूनिवर्सिटी में एक सेमेस्टर की पढ़ाई का गोल्डेन चांस मिला। लेकिन प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस जॉब में हासिल ही हुआ। कंपनी के ड्रिलिंग डिपार्टमेंट में काम करते हुए मैंने यूएस, मलेशिया, साइबेरिया में चैलेंजिंग प्रोजेक्ट्स हैंडल किए हैं, जिससे अपने भीतर की क्षमता को पहचानने का मौका मिला।

स्पार्क से बनते इंजीनियर

पार्थ अग्रवाल प्रोग्राम मैनेजर, नवअर्पण लोक शिक्षण

संस्थान, भोपाल

इंजीनियरिंग के लिए एप्टीट्यूड और स्पार्क होना चाहिए। तभी आप अच्छे इंजीनियर बन सकते हैं। यह मानना है आइआइटी बीएचयू से बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में बीटेक और एमटेक करने वाले जबलपुर के पार्थ अग्रवाल का। पार्थ इस समय भोपाल स्थित नवअर्पण लोक शिक्षण संस्थान में काम कर रहे हैं।

आइआइटी का सपना

मैंने 12वीं के बाद मध्य प्रदेश प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट की परीक्षा दी थी। लेकिन पिता जी चाहते थे कि मैं आइआइटी से पढ़ाई करूं। इसलिए रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन नहीं लिया और एक साल की तैयारी के लिए कोटा रवाना हो गया। वहां मन में कई तरह के संशय थे कि आखिर कोचिंग से जेइइ क्रैक करने की क्या गारंटी है? लेकिन मैंने यह पाया कि कोचिंग से कॉम्पिटिशन की भावना आती है। खुद का रिएलिटी चेक होता है। इसके बाद ही 2009 में मैंने जेइइ क्लियर कर लिया।

इनोवेशन पर फोकस

बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में मेरी रुचि नहींथी। लेकिन रैंक की वजह से दूसरा विकल्प नहीं था। मुझे चौथे साल में कहींजाकर अपने ब्रांच से लगाव हुआ। इसके बाद विजिटिंग स्कॉलर के रूप में स्पेन जाना हुआ। साथ ही, जूनियर रिसर्चर के तौर पर बेल्जियम स्थित आइएमइसी में काम कर मेरा विजन और व्यापक हुआ।

फिलहाल पारिवारिक कारणों से एक एनजीओ के साथ रूरल हेल्थ केयर सेक्टर में काम कर रहा हूं। लेकिन 2015 में बायोमेडिकल इनोवेशन ऐंड डेवलपमेंट में एक साल का मास्टर्स कोर्स करने जॉर्जिया टेक यूनिवर्सिटी जाऊंगा। दरअसल, आइआइटी के मास्टर्स प्रोजेक्ट में मैंने वायरलेस हेल्थ डिवाइस बनाई थी, जिसे काफी सराहा गया। मेरा मानना है कि अगला हेल्थ रिवॉल्यूशन वायरलेस मेडिकल डिवाइस से होगा। ऐसे में मैं खुद को उसके लिए तैयार करना चाहता हूं।

ये तो बस शुरुआत है

अंकित प्रसाद फाउंडर ऐंड सीइओ, टचटैलेंट (आइआइटी दिल्ली)

मैं झारखंड के चाइबासा का रहने वाला हूं। मिडिल क्लास फैमिली से हूं। पिताजी प्रोफेसर हैं। छठी क्लास तक हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ा, उसके बाद डीएवी पब्लिक स्कूल, जमशेदपुर चला गया। अपने स्कूल के स्टूडेंट्स को आइआइटी में सलेक्ट होते देखता था, तो मुझे भी वहीं एडमिशन लेने का मन होता था। 10+2 में मुझे 90 परसेंट माक्र्स मिले। उसी दौरान मैंने एक कोचिंग में भी एडमिशन ले लिया। नतीजा काफी पॉजिटिव रहा। एंट्रेंस में मेरी रैंक 625 थी। मॉक टेस्ट में मैं अंडर 100 रहता था, लेकिन फाइनल एग्जाम मैं वैसा नहीं कर पाया। मुझे लगता है कोचिंग से हमें तैयारी के लिए एक दिशा मिल जाती है, वरना बिना गाइडेंस के आपका काफी समय नष्ट हो सकता है।

इंटेलेक्चुअल हब

आइआइटी कैंपस में देश भर के स्टूडेंट्स से डिस्कशन का मौका मिलता है, जो आपके इनोवेटिव और क्रिएटिव टैलेंट को निखार कर सामने लाता है। कई सारी क्रिएटिव एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करने और इंटेलेक्चुअल्स के साथ मिलने-जुलने से पर्सनैलिटी काफी डेवलप हुई। दरअसल, आइआइटी केवल इंजीनियर्स ही नहीं पैदा करता, यहां के माहौल में कुछ ऐसा है, जो आपको आगे बढऩे का रास्ता दिखा देता है।

अपनी खुशी तलाशें

चार साल इंजीनयरिंग करने के बाद मुझे यही रियलाइज हुआ कि मुझे कुछ अलग करना है। मैं किसी भी जॉब के इंटरव्यू में अपीयर नहीं हुआ। मुझे लगा, मैं जॉब करके खुश नहीं रह पाऊंगा। मैंने अपना एंटरप्राइज शुरू किया। आप सबसे भी यहीं कहूंगा कि वहीं करें, जिसमें खुशी मिले, सैटिस्फैक्शन मिले। आइआइटी में ही दुनिया खत्म नहीं होती। यह तो बस शुरुआत है।

थिंक लॉन्ग टर्म करियर

तुषार श्रीवास्तव सीइओ, नर्चरी

(आइआइटी दिल्ली)

मैं हरिद्वार की एक टिपिकल मिडिल क्लास फैमिली से हूं। मेरे पिताजी भेल में इंजीनियर थे। मेरी स्कूलिंग भेल कैंपस के केंद्रीय विद्यालय से हुई। वहां शुरुआत से ही इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए प्रेशर था। आस-पास ज्यादातर चिर-परिचित इंजीनियर ही थे। इसलिए आठवीं क्लास से ही शायद माहौल का इतना असर पड़ा कि इसके अलावा मुझे कोई ऑप्शन नजर भी नहीं आता था।

सेल्फ स्टडी का दम

11वीं क्लास से तैयारी शुरू कर दी। 12वीं में मैंने 85 परसेंट माक्र्स गेन किया। जेइइ में फस्र्ट अटेंप्ट में ही मैं क्वालिफाई हो गया। हरिद्वार में कोचिंग इंस्टीट्यूट्स नहीं थे। इसलिए मैंने ब्रिलिएंट ट्यूटोरियल्स का कॉरेस्पॉन्डेंस कोर्स ज्वाइन किया, लेकिन ज्यादातर सेल्फ स्टडी ही की।

स्टेप टु आइआइटी

आइआइटी पहुंचा, तो बेहद नर्वस था। होम सिकनेस का भी शिकार था। रैगिंग का भी डर लग रहा था, लेकिन भीतर से प्राउड फील हो रहा था। यहां देश भर से इंटेलिजेंट स्टूडेंट्स आते हैं। इसलिए ऐसा माहौल बन जाता है कि आप ज्यादा मेहनत न करें, तो भी आप आगे बढ़ते ही जाते हैं।

वर्क सैटिस्फैक्शन

2001 में मैंने सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में इंफोसिस ज्वाइन कर लिया। कई साल तक कॉरपोरेट, फाइनेंस, मैनेजमेंट कंसल्टेटिंग और टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम किया, लेकिन कहीं भी मुझे वर्क सैटिस्फैक्शन नहीं मिला। मुझे लगा कि कुछ ऐसा बनना चाहता हूं, जो लोगों की जिंदगी पर असर डाल सके। इसीलिए मैंने जॉब छोड़कर एंटरप्रेन्योरशिप में जाने का फैसला किया। मैं सबसे यहीं कहना चाहूंगा कि लॉन्ग टर्म करियर के बारे में सोचें। आइआइटी आपके लक्ष्य को हासिल करने का एक जरिया है। कड़ी मेहनत करें और हमेशा पॉजिटिव अप्रोच रखें।

इनोवेटिव हो अप्रोच

गौरव गोयल फाउंडर ऐंड सीइओ,

थिंक लैब्स (आइआइटी बांबे)

बचपन से ही मुझे मैथ्स, फिजिक्स और रोबोट्स से काफी लगाव था। मैं इंजीनियरिंग ही करना चाहता था। इसके पीछे किसी माहौल के असर से ज्यादा मेरी खुद की स्पिरिट ज्यादा मोटिवेटिंग थी। दिन-रात यही उधेड़-बुन लगी रहती थी। आइआइटी क्लियर करने के लिए काफी पढ़ाई जरूरी थी, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी थी एनालिटिकल, इनोवेटिव अप्रोच। इंजीनियरिंग करने जा रहे हैं, तो इसका मतलब आपको इंजीनियर की तरह सोचना होगा।

एंटरप्रेन्योरशिप का बीज

आइआइटी बॉम्बे से मैकेनिकल इंजीनियरिंग के दौरान मेरी एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी थी रोबोटिक्स। एकेडमिक की मैं उतनी परवाह नहीं करता था। नतीजा यह था कि मैं थ्योरी के मुकाबले प्रैक्टिकल में ज्यादा स्ट्रांग था। ऐसे में कह सकते हैं, कहीं न कहीं आइआइटी कैंपस ने ही मुझमें एंटरप्रेन्योरशिप के बीज बो दिए।

पैशन को प्रिऑरिटी

आइआइटी बॉम्बे से बीटेक करने के बाद मैंने एचपीसीएल में नौकरी ज्वाइन की थी। एक साल बाद ही मुझे लगने लगा कि रोबोटिक्स मेरा पैशन है और मुझे पूरी तरह इसी में लग जाना चाहिए। फिर मैंने जॉब छोड़ दी। अपनी सेविंग्स से डेढ़ लाख रुपये निकाले और बिजनेस में लगा दिया। इसके लिए मैंने अपने कुछ जूनियर्स को भी शामिल कर लिया। फरवरी में हमने काम शुरू किया और अक्टूबर तक हमने थिंकलैब्स के नाम से कंपनी भी लॉन्च कर दी। आज हम दुनिया भर में रोबोट्स पर रिसर्च कर रहे हैं।

इनोवेटर क्रिएटर इंजीनियर

इंजीनियरिंग फील्ड हमेशा से यूथ की फस्र्ट च्वाइस रही है। सिविल, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल इंजीनियरिंग तो काफी पहले से चार्र्मिंग रहे हैं, लेकिन बदलते वक्त के साथ कई नए और ब्राइट स्ट्रीम्स भी सामने आ गए हैं...

इंजीनियरिंग के मायने बदलते वक्त के साथ बदलने लगे हैं। अब थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल इम्पॉर्र्टेंट हो चुका है। उसमें भी अब मार्केट की जरूरत के मुताबिक नई-नई स्ट्रीम्स और कोर्सेज शुरू हो रहे हैं। जेइइ (मेन्स और एडवांस) में स्कोर के आधार पर आप इंजीनियरिंग के इन ऑप्शंस के बारे में सोच सकते हैं।

नैनो टेक्नोलॉजी

नैनो टेक्नोलॉजी का मतलब है, साइंस ऑफ मिनिएचर यानी छोटी चीजों का विज्ञान। जब कोई चीज नैनो डाइमेंशन में बदल जाती है, तो उसकी फिजिकल, केमिकल, मैग्नेटिक, ऑप्टिकल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल क्वालिटी में भी काफी चेंज आ जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल आजकल तेजी से बढ़ रहा है। इस फील्ड में करियर बनाने के लिए धैर्य होना बहुत जरूरी है। अगर आप नैनो टेक्नोलॉजी में बीटेक करते हैं, तो शुरुआती दौर में कम से कम 20 से 25 हजार रुपये आसानी से कमा सकते हैं। अगर एमटेक कर लिया, तो वेतन 30 से 35 हजार रुपये प्रतिमाह तक जा सकता है।

फैब्रिक इंजीनियरिंग

फैशन और गारमेंट इंडस्ट्री भी दिनों-दिन विकसित हो रही है। ऐसे में टेक्सटाइल इंजीनियरिंग एक पॉपुलर करियर ऑप्शन के रूप में उभरा है।

एक टेक्सटाइल टेक्नोलॉजिस्ट का काम अपैरल, स्पोट्र्स, शिपिंग, डिफेंस, मैन्युफैक्चरिंग, ऑटोमोटिव, मेडिकल, पेपर-मेकिंग, फूड, फर्नीचर, एयरोस्पेस, हॉर्टीकल्चर, आर्किटेक्चर, कंस्ट्रक्शन, एग्रीकल्चर, माइनिंग जैसे सेक्टर्स में इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट्स को तैयार करना होता है।

सेरामिक इंजीनियरिंग

सेरामिक इंजीनियर मिट्टी, बालू, क्ले और चीनी मिट्टी जैसे कई पदार्थों के उपयोग से बर्तन, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स पदार्थों का निर्माण करते हैं। सेरामिक पदार्थ बिजली के कुचालक होते हैं, इसलिए इनका उपयोग इन सब चीजों के निर्माण में किया जाता है।

सेरामिक इंजीनियरिंग कोर्स करने के बाद इलेक्ट्रिकल, इंजीनियरिंग और सेरामिक पदार्थों का उत्पादन करने वाली कंपनियों में जॉब मिल सकती है।

रोबोटिक्स इंजीनियरिंग

भारत में रोबोट का इस्तेमाल मैन्युफैक्चरिंग के साथ-साथ न्यूक्लियर साइंस, सी-एक्सप्लोरेशन, हार्ट सर्जरी, कार असेम्बलिंग, लैंडमाइंस, बायोमेडिकल आदि क्षेत्र में खूब हो रहा है। रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट, ग्लास, मेडिकल, एयरोस्पेस, शीट टेस्टिंग, ऑटोमोटिव इंडस्ट्री, स्टील इंडस्ट्री के अलावा भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, रिलायंस, एलऐंडटी जैसी कंपनीज भी रोबोट का इस्तेमाल कर रही हैं। रोबोटिक साइंस एक तरह से लॉन्ग टर्म रिसर्च ओरिएंटेड कोर्स है। इस क्षेत्र से जुड़े कुछ स्पेशलाइज्ड कोर्स भी कर सकते हैं, जैसे-आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, एडवांस रोबोटिक्स सिस्टम आदि। इस तरह के कोर्स आइआइटीज के अलावा कई इंजीनियरिंग कॉलेज भी ऑफर कर रहे हैं। स्पेशलाइजेशन के लिए पोस्ट ग्रेजुएट लेवल कोर्स भी कर सकते हैं।

जेनेटिक इंजीनियरिंग

जेनेटिक तकनीक के जरिए जींस की सहायता से पेड़-पौधे, जानवर और इंसानों में अच्छे गुणों को विकसित किया जाता है। इस तकनीक द्वारा रोग प्रतिरोधक फसलों का उत्पादन किया जाता है। इसके जरिए पेड़-पौधे और जानवरों में ऐसे गुण विकसित किए जाते हैं, जिसकी मदद से इनके अंदर बीमारियों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सके। इनके लिए मुख्यत: रोजगार के अवसर मेडिकल व फार्मास्युटिकल कंपनियों, प्राइवेट और सरकारी रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट सेंटर्स में होते हैं। कुछ ऐसे संस्थान भी हैं, जो जेनेटिक इंजीनियर को हायर करते हैं, जैसे-नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ इम्यूनोलॉजी, नई दिल्ली, सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंट ऐंड डायग्नोस्टिक, हैदराबाद, बायोकेमिकल इंजीनियरिंग रिसर्च ऐंड प्रॉसेस डेवलॅपमेंट सेंटर, चंडीगढ़, द इंस्टीटयूट ऑफ जिनोमिक ऐंड इंटेग्रेटिव बायोलॉजी, दिल्ली।

जेईई : एक नजर

दो फेज में होते हैं एग्जाम। जेईई मेन्स ऐंड जेईई एडवांस्ड।

जेईई मेन्स

-ऑनलाइन फॉर्म सब्मिट करने की लास्ट डेट:

18 दिसंबर 2014

-ऑफलाइन एग्जाम : 04 अप्रैल 2015

-ऑनलाइन एग्जाम : 10 और 11 अप्रैल 2015

जेईई एडवांस

-2 मई से 7 मई तक रजिट्रेशन होगा -एग्जाम डेट: 24 मई 2015

-कोर्स: 4 साल के बीटेक अलावा अब 5 साल के एमटेक कोर्स भी ऑफर किए जा रहे हैं। यही नहीं 5 साल में आप बीटेक और एमबीए की पढ़ाई भी पूरी कर सकते हैं।

-जेईई मेन्स में टॉप डेढ़ लाख स्टूडेंट्स ही जेईई एडवांस्ड की काउंसलिंग के लिए एलिजिबल होते हैं।

रमेश बाटलिश

एक्सपर्ट, दिल्ली

सक्सेस टिप्स

-ओरिजिनल सोर्स से एग्जाम पैटर्न और सिलेबस पर ध्यान रखें।

-स्टडी शिड्यूल बनाकर इंपॉर्टेंट सब्जेक्ट्स और वीक एरियाज की तैयारी करें।

-पहले थ्योरी के क्वैश्चंस सॉल्व करें, फिर न्यूमैरिकल क्वैश्चन।

-एनसीइआरटी की11वीं और 12वीं के सिलेबस के क्वैश्चंस की स्टडी करें।

-बेसिक कॉन्सेप्ट्स पर फोकस करें।

-क्वैश्चन सॉल्व करने का अपना शॉर्टकट मेथड डेवलप करें, कॉपी न करें।

-हर दिन तीन सब्जेक्ट्स पर बराबर का ध्यान दें।

-न्यूमेरिकल्स सॉल्व करने की स्पीड बढ़ाएं।

-हर सब्जेक्ट के इंपॉर्र्टेंट प्वाइंट्स, और फॉर्मूलों की लिस्ट तैयार करके रखें।

-दो महीने पहले रिवीजन पर पूरा ध्यान दें।

-पूरे सिलेबस को कम से कम दो बार रिवाइज करें।

एक खास खत

31 दिसंबर 2013 की रात 12 बजे मेरे कानों में गाने, पटाखे और लोगों के हो-हल्ले का शोर पड़ रहा था। मैं उस वक्त न्यू ईयर के लिए एक रिज्यॉल्यूशन ले रहा था। रिज्यॉल्यूशन आइआइटी में एडमिशन का। 12वीं तक मेरी पढ़ाई यूपी बोर्ड के हिंदी मीडियम से हुई थी। आमतौर पर इसमें कान्वेंट स्कूलों वाले इंग्लिश मीडियम के स्टूडेंट्स ही ज्यादा सक्सेस होते हैं। मेरे घर की आर्थिक स्थिति भी बेहद खराब थी। पिताजी मुझे बोल चुके थे कि प्राइवेट कॉलेज में नहीं पढ़ा पाएंगे। इसलिए मेरे ऊपर चुनौतियां और उम्मीदों का भार बहुत ज्यादा था। मुझे फस्र्ट अटेंप्ट में ही सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में सलेक्ट होना था। जनवरी से मैंने सीरियसली तैयारी शुरू कर दी। जुनून इस कदर सवार हो गया कि खाने-पीने की सुध न रही। नतीजा तबीयत खराब हो गई। मुझे 103 डिग्री बुखार हो गया, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। 18 जून, 2014 को जब जेइइ का रिजल्ट आया, मेरी आंखों में आंसू आ गए। मेरे माता-पिता फूले नहीं समा रहे थे। मुझे लग रहा था कि मानो मैंने जिंदगी की पहली जंग अपनी मेहनत की बदौलत जीत ली हो।

सूरज पांडे दारागंज, इलाहाबाद

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट : दिनेश अग्रहरि,

अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव


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