परफॉर्मेस ही करता है प्रूव
कभी जिनका मन हिंदी फिल्मों और बॉलीवुड में जरा भी नहीं लगता था, आज वे शख्स बॉलीवुड में न सिर्फ कामयाब हैं, बल्कि एक के बाद एक हिट फिल्में दे रहे हैं। मिलिए अपने परफॉमर्ेंस से खुद को साबित करने वाले एक्टर इमरान हाशमी से .. कभी सोचा भी नहीं था कि एक्टर बनूंगा। मैं करियर को लेकर बहुत कन्फ्यूज था। मैं तो कंप्यूटर ग्रा
कभी जिनका मन हिंदी फिल्मों और बॉलीवुड में जरा भी नहीं लगता था, आज वे शख्स बॉलीवुड में न सिर्फ कामयाब हैं, बल्कि एक के बाद एक हिट फिल्में दे रहे हैं। मिलिए अपने परफॉमर्ेंस से खुद को साबित करने वाले एक्टर इमरान हाशमी से ..
कभी सोचा भी नहीं था कि एक्टर बनूंगा। मैं करियर को लेकर बहुत कन्फ्यूज था। मैं तो कंप्यूटर ग्राफिक्स में करियर बनाना चाहता था। उस समय ज्यादा इंस्टीट्यूट भी नहीं थे, फिर भी मैंने मुंबई के एक कॉलेज में एनिमेशन और ग्राफिक्स का कोर्स किया।
दुनिया की परवाह नहीं
9 साल का था, जब 1988 में संजय दत्त के लीड रोल वाली फिल्म 'कब्जा' की शूटिंग हमारे ही अपार्टमेंट में हो रही थी। मैंने काफी करीब से देखी थी शूटिंग। फिर चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में कुछ ऐड फिल्मों में काम किया। छोटी उम्र में एक अलग तरह का ईगो होता है। दुनिया की परवाह नहीं होती कि कोई देख रहा है, क्या सोचेगा। उसके बाद जैसे-जैसे आप
बड़े होते हैं, ये सारी बातें आपके लिए मायने रखने लगती हैं।
ऐरोगेंस ने बनाया एक्टर
करीब 20 साल का था, जब असिस्टेंट प्रोड्यूसर का काम करना शुरू किया, लेकिन मैं सेट पर काम नहीं करता था। मैं काफी ऐरोगेंट था। मेकअप वैन तक जाकर एक्टर्स को बुलाने में भी मुझे झिझक होती थी। महेश भट्ट साहब मेरी हरकतों को बड़े गौर से देखते थे। एक दिन उन्होंने मजाक में कहा, 'वह हार्डवर्किग नहीं है, इसलिए उसे एक्टर होना चाहिए।' उन्होंने कहा, 'तुम हमारी फिल्मों में एक्टिंग क्यों नहीं करते?' मैंने कहा, 'मैं नहीं कर सकता।' उन्होंने एक बार और कहा, 'कर लो।' मैंने फिर कहा, 'नहीं, मुझसे नहीं होगा यह सब।' वह बार-बार कहते रहे। ऐसा करीब छह महीने चला, आखिरकार मैं तैयार हो गया।
ट्रेनिंग मेक्स यू परफेक्ट
मैं हिंदी फिल्में नहीं देखता था। बॉलीवुड के बारे में बहुत ज्यादा समझ नहीं थी। दुनिया भी कम देखी थी। मेरी हिंदी भी अच्छी नहीं थी। शायद इसी वजह से एक्टिंग करने से डर लगता था। लेकिन जब एक बार डिसाइड कर लिया कि एक्टिंग करनी है, फिर तो जी-जान से जुट गया। करीब 6 महीने तक ट्रेनिंग चली। उसके बाद तो धीरे-धीरे कॉन्फिडेंस बढ़ता गया और एक के बाद एक फिल्में करता गया।
काम को सबसे ज्यादा प्रिऑरिटी
आज भी मैं दूसरे एक्टर्स से खुद को काफी अलग पाता हूं। पार्टियों में जाना, सोशलाइजिंग करना, यह सब मुझसे नहीं होता। मेरे अंदर हर वक्त यह फीलिंग नहीं रहती कि मैं एक्टर हूं या स्टार हूं। इन सबसे अलग भी मेरी दुनिया है। अगर डायरेक्टर शूटिंग के लिए मुझे सुबह 6 बजे बुलाता है, तो बिल्कुल टाइम पर पहुंच जाऊंगा। मेरे लिए मेरा काम ज्यादा इम्पॉर्टेट है। वह भी तब, जब तक मैं शूट पर हूं।
आप क्या अच्छा कर सकते हैं
सबकी अपनी-अपनी खासियत होती है। एक्टिंग को ही लें, तो कोई अच्छा एक्शन कर सकता है, तो कोई अच्छा इमोशनल ड्रामा कर सकता है। आपको यह खुद में ढूंढ़ना पड़ता है कि आप क्या अच्छा कर सकते हैं, तभी आप अच्छा रिजल्ट पा सकते हैं।
अच्छा काम सफलता दिलाता है
कभी भी सफलता का पैमाना केवल फिल्म हिट होने को न मानें। बॉलीवुड में कई ऐसी फिल्में हैं, जिन्हें क्रिटिक्स अच्छी रेटिंग्स नहीं देते, फिर भी वे 100 करोड़ का बिजनेस पार कर जाती हैं। कई फिल्मों की स्टोरी बेहद साधारण होती है, वे भी अच्छा बिजनेस कर जाती हैं। हिट और फ्लॉप सब मार्केटिंग का खेल है। आप अपनी या फिल्म की अच्छी मार्केटिंग करेंगे, तो वह हिट होगी। कई बार अच्छी फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा बिजनेस नहीं कर पातीं। इसी तरह आम जिंदगी में भी सफलता का पैमाना केवल शोहरत से नहीं लगाया जाना चाहिए। अगर आपका काम अच्छा होगा, तो निश्चित तौर पर वह पसंद किया जाएगा।
जिंदगी का नाम मैनेजमेंट
कई बार आपके हालात थोड़े नाजुक होते हैं, लेकिन काम से समझौता नहीं कर सकते। मसलन मेरे बेटे को कैंसर हो गया था। उसका इलाज टोरंटो में चल रहा था और मैं मुंबई में फिल्म की शूटिंग कर रहा था। ऐसी मुश्किल परिस्थिति में पेशेंस रखना पड़ता है। काम और फैमिली दोनों को मैनेज करना पड़ता है कि कब किसको प्रिऑरिटी देनी है। मैनेजमेंट की यही स्किल आपको जिंदगी में आगे बढ़ाती जाती है।
इंटरैक्शन : मिथिलेश श्रीवास्तव