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नया साल नया अवतार

इंडियन कंपनीज और एमएनसीज द्वारा दिए जाने वाले ऑफर्स में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। पिछले साल के एक करोड़ के ऑफर अब दो करोड़ रुपये को भी क्रॉस करने लगे हैं। ऐसी खबरें पढ़-सुन कर आपके जेहन में भी सवाल आता होगा कि आखिर किस तरह के लोगों

By Babita kashyapEdited By: Published: Fri, 26 Dec 2014 03:34 PM (IST)Updated: Fri, 26 Dec 2014 03:38 PM (IST)
नया साल नया अवतार

इंडियन कंपनीज और एमएनसीज द्वारा दिए जाने वाले ऑफर्स में हर साल बढ़ोतरी हो रही है। पिछले साल के एक करोड़ के ऑफर अब दो करोड़ रुपये को भी क्रॉस करने लगे हैं। ऐसी खबरें पढ़-सुन कर आपके जेहन में भी सवाल आता होगा कि आखिर किस तरह के लोगों को इतने अट्रैक्टिव ऑफर्स मिलते हैं? आखिर उनमें कौन-सी खूबियां होती हैं? एक क्षण के लिए आपके मन में यह बात आती होगी कि काश... मुझे भी ऐसा पैकेज मिल पाता... लेकिन दूसरे ही पल आपका दिमाग यह जवाब दे रहा होता है कि मुझे ऐसा ऑफर भला क्यों मिलेगा? मुझ में तो ऐसा कोई टैलेंट है ही नहीं? लेकिन नहीं, खुद को कभी कम करके न आंकेें। अपने भीतर के टैलेंट को जानें और उसे तराशें?अपनी कमजोरियों को पहचान कर उन्हें दूर करें। उन्हें अपनी ताकत बना लें। इस नए साल आप इसी मिशन पर काम करें। आप देखेंगे कि आपका एक नया अवतार सामने आ रहा है...स्किल्ड, कॉन्फिडेंट और कामयाब। इस नए अवतार को पाने के लिए पर्सनैलिटी और नॉलेज के किन-किन पहलुओं को तराशना होगा, पढ़ें इस बार की एक्सक्लूसिव स्टोरी में...

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12वींके बाद जिस चौराहे पर हम खड़े होते हैं, वहां ढेर सारी कंफ्यूजंस होती हैं। किस रास्ते पर जाने से मिलेगी मंजिल? कौन-सा करियर बेस्ट रहेगा? यह हर स्टूडेंट के लिए यक्ष प्रश्न होता है। कई बार जल्दबाजी में हम कोई करियर तो चुन लेते हैं, लेकिन काफी आगे बढ़ जाने के बाद यह महसूस होता है कि गलत रास्ते पर आ गए। हो सके, तो 10वीं से लेकर 12वीं तक अपनी पसंद की स्ट्रीम चुन लें। आइए जानें कि अपने इंट्रेस्ट को जानने और उस पर अमल के लिए क्या करना जरूरी है :

अपना टैलेंट पहचानें

अक्सर हम पेरेंट्स, भाई या नाते-रिश्तेदारों की सलाह पर करियर चुन लेते हैं। कई बार अपने फ्रेेंड्स की देखादेखी भी करियर चुन लेते हैं। कॉलोनी या क्लास के सारे फ्रेेंड्स इंजीनियरिंग करने जा रहे हैं, तो आप भी आइआइटी की तैयारी में जुट जाते हैं। यह ठीक नहीं है। अपने भीतर झांकें। खुद को पहचानें। अपनी काबिलियत को ढूंढ़कर निकालें। यह देखें कि आप सबसे अच्छा क्या कर सकते हैं?

कैपेसिटी को परखें

कई बार आप खुद को सही जज नहीं कर पाते। हो सकता है, आपकी आवाज में लडख़ड़ाहट हो, लेकिन आप सिंगर बनना चाहते हों। आप साइंटिस्ट बनना चाहें, लेकिन आपका मैथ्स में इंट्रेस्ट न हो। हो सकता है, आप रिपोर्टर बनना चाहते हों, लेकिन आपको फील्ड में दौड़-धूप करने से एलर्जी हो। इसलिए पहले आप जो बनने की सोच रहे हैं, उसके बारे में पूरी रिसर्च करें। जैसे-अगर आपको टीवी एंकर बनना है, तो केवल उसके ग्लैमर से प्रभावित होकर अपना डिसीजन न लें। टीवी एंकर को कई बार सुबह से लेकर रात तक लगातार एंकरिंग करनी पड़ती है। अपनी पसंद के स्ट्रीम-करियर के हर पहलू की अच्छी तरह पड़ताल करने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचें और फिर उस पर कदम बढ़ाएं।

फैमिली बैकग्राउंड

कोई भी करियर चुनते वक्त आपको अपनी फैमिली कंडीशन का भी ध्यान रखना होगा। आप जो करियर चुनना चाहते हैं, वह आपकी फैमिली के लिए फिजीबल है या नहीं? अगर आप ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढऩे की सोच रहे हों, तो उस पर होने वाले खर्च के बारे में भी सोचें या अगर आप सिंगर या एक्टर बनना चाहते हैं, तो उसके लिए दिन-रात की कड़ी रिहर्सल और कई सालों तक स्ट्रगल करने के लिए भी तैयार रहना होगा।

रियल नॉलेज गेन करें

केवल किताबी कीड़ा बनना खतरे से खाली नहीं है। ऐसा होने पर आप बाकी दुनिया से अनजान रह जाते हैं। ऐसा करना अपनी टांग खुद ही पीछे खींचने जैसा है। जिस तरह कार चलाते वक्त ड्राइवर को स्टेयरिंग, एक्सीलरेटर, ब्रेक, रियर मिरर, फ्रंट मिरर हर तरफ एक्टिव रहना पड़ता है, कुछ वैसे ही आपको भी मल्टी लेवल पर एक्टिव रहना होगा। आज के दौर में मल्टीटास्कर होने पर ही आप प्रोफेशनल रेस में दूसरों से आगे निकल कर अपनी पहचान बना पाएंगे।

परफॉर्मेंस पर ध्यान दें

अक्सर हम एकेडमिक स्टडी के दौरान सोसायटी या फैमिली के प्रेशर में एग्जाम और माक्र्स ओरिएंटेड हो जाते हैं। यह ठीक नहीं है। एकेडमिक एग्जाम के माक्र्स की बजाय लाइफ में कुछ नया, कुछ क्रिएटिव, कुछ इनोवेटिव करने की सोचें। सब्जेक्ट की समझ और उसमें इंट्रेस्ट डेवलप करें, जिससे सोचने-समझने का विजन डेवलप होगा और आप करियर को एंज्वॉय करें।

दुविधा से बाहर निकलें

जितनी जल्दी डिसीजन ले लेंगे, उतना ही अच्छा होगा। करियर का डिसीजन लास्ट मोमेंट तक लटकाकर न रखें। तब तक शायद देर हो जाए और आपसे कम काबिल लोग कहींज्यादा आगे निकल जाएं।

पसंद को दें तरजीह

अपनी पसंद के करियर से जुड़ी स्ट्रीम चुनने का सबसे आइडियल समय 10वींसे लेकर 12वींतक होता है। इसके बाद जितनी देर करेंगे, ऑप्शंस कम होते जाएंगे। इसलिए बेहतर होगा कि समय रहते निर्णय ले लें और इसके मुताबिक स्ट्रेटेजी बनाकर आगे बढ़ें।

संतुलित राय बनाएं

सही ऑप्शन चुनने के लिए करियर के ज्यादा से ज्यादा ऑप्शंस की जानकारी अखबार, इंटरनेट से लें। उन ऑप्शंस में से कुछ को सलेक्ट करें। फिर सलेक्टिव करियर फील्ड के अलग-अलग लोगों से मिलकर एक संतुलित राय बनाएं।

जानने की भूख

जिंदगी की दौड़ में आगे निकलना चाहते हैं, तो अपने भीतर हमेशा सीखने की भूख पैदा करें। इसे अपनी आदत में शुमार कर लें। कोई भी नॉलेज कभी बेकार नहींजाती है।

परवीन मल्होत्रा

सीनियर करियर काउंसलर

खुद पर भरोसा रखें, रास्ते खुलते जाएंगे, एनर्जी आती जाएगी, आगे बढ़ते जाएंगे

सब कुछ आपके अंदर है। अपने अंदर की शक्ति को पहचानें। खुद से बातें करें। खुद से सवाल करें। उनके जवाब तलाशें। दुनिया को जानें-समझें। जितना ज्यादा आप समझेंगे, उतना ही ज्यादा आप सुलझते जाएंगे। आपको अपनी मंजिल का रास्ता समझ में आता जाएगा।

सिद्रा जाफरी, मोटिवेटर ऐंड काउंसलर

दिल की सुनें आगे बढ़ें

जयविजय सचान

पॉपुलर मिमिक्री आर्टिस्ट

लीक पर चलना ही अगर सफलता का पैमाना होता, तो आज न सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेटर होते, न मैरीकॉम जैसी बॉक्सर और न ही चेतन भगत जैसे राइटर। जिसने अपने टैलेंट को पहचाना और तमाम मुश्किलों के बावजूद आगे बढ़ता रहा, वही सफल होता है। मिडिल क्लास आम फैमिली से निकले ऐसे ही एक यंग टैलेंट का नाम है जयविजय सचान, जो आज मिमिक्री आर्टिस्ट के रूप में मशहूर हैं।

पापा का कनटाप

सुबह लेट उठने पर पापा का दनदनाता कनटाप (तमाचा) ही हमारे लिए अलार्म होता था। इस अलार्म ने ही मुझे हमेशा जगाए रखा। एक दिन ऐसे ही किसी बात पर पापा की मार पड़ी। रोता हुआ घर से बाहर चला गया। बाहर मुझ पर कुत्ता भौंकने लगा। मुझे गुस्सा आया। मैंने उसे मारकर भगाया नहीं, बल्कि मैं भी भौंकने लगा। कुत्ते की आवाज से शुरू हुआ सिलसिला दादा मुनि, किंग खान, बिग-बी सबकी आवाज से होता हुआ आज 500 मिमिक्री की संख्या पार कर चुका है।

घरवाले नहीं समझे टैलेंट

बचपन में जब मैं आवाज की नकल उतारता था, तो घर वाले मुझे बहुत डांटते थे। बोलते थे, तू क्या करता रहता है दिन-भर, कुछ पढ़ाई-वढ़ाई भी कर लिया कर। हीरो बनना है क्या तुझे? करना क्या चाहता है तू आखिर? इसका जवाब मेरे पास भी नहीं होता था। मुझे क्या बनना है, क्या करना है यह बहुत क्लियर नहीं था, हां, इतना जरूर पता था कि मुझमें दूसरों की हू-ब-हू आवाज निकालने का टैलेंट है। इसमें मैं माहिर हूं। शुरू-शुरू में कुछ स्टेज परफॉर्मेंस दिए, तो कॉन्फिडेंस भी आया। तब मुझे यह भी नहीं मालूम था कि इस आर्ट को मिमिक्री कहते हैं। एक बार अखबार में छपा, तो मुझे विदूषक कहा गया, मुझे ज्यादा समझ में नहीं आया, लेकिन कुछ ठीक भी नहीं लगा। कोई हंसोड़ कहता, तो कोई कॉमेडियन कहता, लेकिन मैं खुद को एंटरटेनर मानता हूं।

रोक नहीं पाई मुफलिसी

ग्रेजुएशन के दौरान मुझे लगा कि मिमिक्री तो कोई करियर ऑप्शन है नहीं। हां, मीडिया को मैं अपना करियर बना सकता हूं। लखनऊ से मॉस कॉम करने के बाद मैं रेडियो सिटी में काम करने लगा। फिर दिल्ली आ गया। काफी मुफलिसी में दिन काटे। नोएडा सेक्टर 12 में एक किचेन के बराबर रूम में रहता था, जिसका किराया 700 रुपये था। सर्दी की रात में मेरे पास मां का दिया हुआ एक कंबल होता था। कई बार लंच या डिनर तो छोडि़ए चाय पीने तक के लिए पैसे नहीं होते थे। हिम्मत जवाब दे जाती थी, लेकिन मैंने ठान लिया था, चाहे जो हो जाए, खुद को साबित करके रहूंगा। फिर न्यूज चैनलों में बतौर एंकर काम किया। इसी दौरान मुझे इंडिया गॉट टैलेंट शो में पार्टिसिपेट करने का मौका मिला। तब से देश भर में लोगों ने मेरा काम देखा और पसंद भी किया। आज कलर्स चैनल ने मुझे साइन कर लिया है और मैं देश ही नहीं, विदेश में भी अपने शो कर रहा हूं।

टर्न योर ड्रीम्स टु रिएलिटी

शैली शौर्य क्रिकेटर

कैप्टन, अंडर-25, दिल्ली

बचपन में क्रिकेट तो सभी खेलते हैं, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ बैट-बॉल में भी बैलेंस बनाकर क्रिकेट में करियर बनाने की हर कोई नहींसोच पाता और अगर सोचता भी है, तो कर नहीं पाता। लाइफ और करियर का यह बैलेंस्ड अप्रोच दिखाया क्रिकेट एसोसिएशन से लगातार 5 बार नेशनल क्रिकेट एकेडमी, बेंगलुरु के लिए सलेक्ट हो चुके और अंडर-16 और अंडर-16 क्रिकेट में लगातार दो साल सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले दिल्ली अंडर-25 क्रिकेट टीम के कैप्टन शैली शौर्य ने।

24 घंटे बहुत हैं

अगर हम सच्चे मन से कुछ करना चाहें, तो 24 घंटे बहुत हैं। सबके पास इतना ही होता है, फिर भी कुछ लोग बहुत कुछ कर जाते हैं और कुछ लोग कुछ नहीं कर पाते हैं। मैंने भी बचपन में जब हाथ में बॉल पकड़ी थी, तो यही सोचा था और लगातार इसे फॉलो कर रहा हूं। एक बार जो बॉल पकड़ी, फिर क्रिकेटर बनने का सपना हर पल मेरी आंखों के आगे नाचता रहता था।

खेल केेसाथ पढ़ाई

मैं दिन-रात मेहनत करता हूं। क्रिकेट मेरा पहला प्यार है, मेरा पैशन है, लेकिन स्टडी करना भी बहुत अच्छा लगता है, इसलिए मैं दोनों को स्मार्टली मैनेज करता हूं। इसका नतीजा दिखता है। ज्यादा समय क्रिकेट पर देने के बावजूद 12वीं में मेरे 89 परसेंट माक्र्स थे। मैं आगे इंजीनियरिंग करना चाहता था, लेकिन अटेंडेंस एक बड़ी प्रॉब्लम बनकर सामने आई। अगर मैं क्रिकेट की प्रैक्टिस करता और मैच खेलने जाता, तो अटेंडेंस पूरी नहीं हो पाती। इसलिए मैंने डीयू के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में इकोनॉमिक्स ग्रेजुएशन में एडमिशन लिया।

क्रिकेट के साथ तैयारी भी

फैमिली की तरफ से मुझे करियर चुनने की फ्रीडम है, फिर भी उनकी इच्छा है कि मैं आइएएस बनूं। अनिल कुंबले, श्रीकांत जैसे महान क्रिकेटर्स क्रिकेटर के अलावा इंजीनियर भी थे। उसी तरह मैं भी क्रिकेटर के साथ-साथ आइएएस अफसर बनना चाहता हूं। जानता हूं यह काफी मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं, क्योंकि कई सारे ऑफिसर्स ऐसे हैं, जिन्होंने अपनी जॉब के साथ-साथ स्पोट्र्स में भी काफी अच्छा मुकाम बनाया है, तो फिर मैं ऐसा क्यों नहींकर सकता। अक्सर लोगों को करियर चुनने की उतनी फ्रीडम नहीं मिल पाती। उन पर जॉब करने का, इंजीनियर या डॉक्टर बनने का ही प्रेशर होता है, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है, इसलिए मैं खुलकर खेलता हूं। अपने पैशन और शौक के साथ इस तरह आगे बढऩे का अपना अलग मजा है।

किस इंडस्ट्री में होगी डिमांड

इंडियन इकोनॉमी के पटरी पर लौटने से इंडिया इंक में भी पॉजिटिव चेंज आया है। छंटनी और वॉलंटरी रिटायरमेंट के बढ़ते मामलों पर विराम लगा है। कंपनियों में रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया ने जोर पकड़ी है। 2014 में आइटी-बिजनेस प्रॉसेस मैनेजमेंट इंडस्ट्री ने भारत में सबसे ज्यादा 3.1 मिलियन लोगों को रोजगार दिया। इसी तरह पिछले पांच से छह सालों में अधिकांश सेक्टर्स में पॉजिटिव हायरिंग हुई। आने वाले सालों में भी यह ट्रेंड बना रहेगा। सबसे अधिक हायरिंग आइटी सेक्टर में ही होने की उम्मीद है।

नौकरियों की बरसात

इंफो एज की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (मार्केटिंग), कॉरपोरेट कम्युनिकेशन और अलायंसेज, सुमित सिंह ने बताया कि 2015 में आइटी, फार्मा और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में काफी जॉब अपॉच्र्युनिटीज क्रिएट होंगी। इनके अलावा बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विस, इंश्योरेंस (बीएफएसआइ) और ऑटो सेक्टर भी नए तेवर के साथ उभरेगा। यहां भी नौकरियों की कमी नहीं होगी। वहीं, इंडिया स्किल्स रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में इस साल के मुकाबले 18 प्रतिशत अधिक हायरिंग होगी। आइटी, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर सेक्टर में इंजीनियर्स और फ्रेशर्स की सबसे ज्यादा डिमांड रहेगी। जो लोग किसी तरह की वोकेशनल ट्रेनिंग कर रहे हैं, उनके लिए भी आने वाला साल उम्मीदों भरा होगा।

इनोवेटिव टूल्स से जॉब सर्च

ऑनलाइन रिक्रूटमेंट प्रॉसेस में भी पहले की अपेक्षा काफी बदलाव आया है। नौकरी डॉट कॉम ने कॉरपोरेट्स और मार्केट्स की डिमांड के मुताबिक, माइक्रोसाइट्स, करियर साइट मैनेजर, नौकरी असेसमेंट टूल, नौकरी रेफरल टूल, द फस्र्ट नौकरी कैंपस हायरिंग सॉल्यूशन जैसे नए इनोवेटिव प्रोडक्ट्स लॉन्च किए हैं। नौकरी के रेफरल टूल से एम्प्लॉयीज के सोशल और ई-मेल नेटवक्र्स का पता लगाने में काफी मदद मिलती है। इसके साथ ही वे कंपनी की ब्रांडिंग और उसके लिए सही टैलेंट चुनने की जिम्मेदारी भी निभा रहे हैं। आने वाले समय में जॉब पोर्टल पहले कैंडिडेट से बात कर, फिर उसकी प्रोफाइल के मुताबिक सही नौकरी की तलाश में मदद करेगा।

रेफरल हायरिंग का ट्रेंड

आजकल कंपनीज सही टैलेंट को हायर करने और उन्हें अपने साथ जोड़े रखने पर अधिक ध्यान दे रही हैं। इसमें नौकरी असेसमेंट टूल उनकी मदद करता है। हाल ही में नौकरी हायरिंग आउटलुक सर्वे से यह बात सामने आई है कि देश में जिस टैलेंट क्रंच का अंदेशा जताया जा रहा था, वह इतनी गंभीर समस्या नहीं है। कंपनीज रेफरल हायरिंग के जरिए रिक्रूटमेंट को प्रिफरेंस दे रही हैं।

जॉब ओरिएंटेड कोर्सेज

नए साल में जिन सेक्टर्स में नौकरियों का पिटारा खुलने वाला है, आप उन्हें मद्देनजर रखते हुए कोर्स का चुनाव कर सकते हैं। लेकिन करियर की सही शुरुआत तभी होगी, जब स्टूडेंट्स उन कोर्सेज को चुनेंगे जिनमें उनकी खुद की दिलचस्पी या झुकाव होगा। आने वाले वर्षों में ज्यादातर जॉब्स उन लोगों को मिलेंगे, जिन्होंने बेसिक एजुकेशन के साथ किसी तरह की प्रोफेशनल या वोकेशनल ट्रेनिंग ली है। इसलिए स्पेशलाइज्ड एजुकेशन हासिल करना सही रहेगा। आप 12वीं के बाद मैनेजमेंट, आइटी, कंप्यूटर, फार्मास्युटिकल या कोई वोकेशनल कोर्स कर सकते हैं।

जॉब पोर्टल बना टू वे प्लेटफॉर्म

''इंफॉर्मेशन के इस एज में कंपनीज सही टैलेंट को अट्रैक्ट करने के लिए जहां अपने कल्चर, जॉब ओपनिंग को सोशल साइट्स और पोर्टल्स पर शो-केस कर रही हैं, वहींकैैंडिडेट्स काफी रिसर्च के बाद किसी कंपनी को ज्वाइन कर रहे हैं। इसमें कंपनी की करियर साइट्स के अलावा नौकरी डॉट कॉम की करियर साइट मैनेजर भी कंपनीज की मदद कर रही हैं।ÓÓ

सुमित सिंह, सीनियर वीपी (मार्केटिंग), कॉरपोरेट कम्युनिकेशन, इंफो एज

2015 में भी आइटी होगा हॉट

नए साल में आइटी और इससे रिलेटेड सेक्टर में स्पेशलाइज्ड प्रोफेशनल्स की डिमांड बरकरार रहेगी। खासकर प्रोडक्ट डेवलपमेंट और इंटरनेट स्पेस में एंड्रॉयड और आइओएस ऐप डेवलपर्स को कंपनियां हाथों-हाथ लेंगी। इनके अलावा सॉल्युशन आर्किटेक्ट भी हाई डिमांड में रहेंगे। इसका मतलब यह भी है कि कंपनियां पहले की तरह या उससे अधिक पैकेज पर यंग प्रोफेशनल्स को हायर करेंगी। दरअसल, मार्केट में स्किल्ड और टैलेंटेड युवाओं की कमी के बीच जैसे ही किसी कंपनी को अपनी रिक्वायरमेंट के अनुसार कोई स्किल्ड कैैंडिडेट मिलता है, तो वह उसे दूसरों के मुकाबले हाई पैकेज पर हायर कर लेती हैं। आइटी सेक्टर में एनालिटिक्स, एसइओ, एसइएम, वेब डिजाइन या नेटवर्र्किंग स्किल्स रखने वाले युवा आइआइटी या कुछेक टॉप के इंजीनियरिंग कॉलेजेज में ही मिल पाते हैं। ऐसे में कंपनीज इन्हें मोटी सैलरी ऑफर करती हैं। इनमें इंटीग्रिटी, वैल्यू, रिजल्ट ओरिएंंटेशन, कम्युनिकेशन, डोमेन एक्सपर्टीज, न्यूमेरिकल, लॉजिकल और अडैप्टिव कैपिबिलिटीज भी ज्यादा होती हैं।

रिज्यूमे बनाए विनर

हर साल कॉलेजेज से नए प्रोफेशनल्स ग्रेजुएट्स निकल रहे हैं, जिन्हें नौकरी चाहिए। लेकिन मार्केट में टफ जॉब कॉम्पिटिशन को देखते हुए हर किसी को जॉब मिलनी मुश्किल है। कई कैंडिडेट्स तो रिज्यूमे शॉर्टलिस्टिंग के स्टेप तक भी नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जॉब के लिए अप्लाई करने से पहले परफेक्ट, प्रोफेशनल रिज्यूमे तैयार करने का स्मार्ट तरीका जान लें। इन दिनों रिटेन रिज्यूमे के अलावा वीडियो रिज्यूमे का ट्रेंड भी देखा जा रहा है।

बदल रहा है ट्रेंड

प्रोफेशनल रिज्यूमे राइटिंग एक्सपर्ट संदीप कटारिया ने बताया कि किसी भी जॉब सीकर या फ्रेशर के लिए उसकी सीवी यानी फैक्टशीट बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसके बाद टेक्स्ट रिज्यूमे को रिक्रूटर्स तक पहुंचाना होता है, जो तीन तरीके से किया जाता है। पहला जॉब पोर्टल्स, दूसरा प्लेसमेंट कंसल्टेंट्स और तीसरा डायरेक्ट कंपनी एचआर के जरिए। आजकल बहुत सारे रिक्रूटर्स वीडियो से लेकर ब्लैकबेरी जैसे डिवाइस पर भी रिज्यूमे रिव्यू करने लगे हैं। वीडियो रिज्यूमे में कैंडिडेट खुद का प्रेजेंटेशन देते हैं। इस वीडियो को पोर्टल पर अपलोड किया जा सकता है।

प्रोफेशनल रिज्यूमे राइटर्स

अब वह दौर चला गया जब लंबी-चौड़ी और लंबे पैराग्राफ्स वाली रिज्यूमे भेजी जाती थी। इन दिनों बाकायदा प्रोफेशनल रिज्यूमे राइटर्स की मदद ली जा रही है, जो इंटरव्यू जेनरेटिंग रिज्यूमे तैयार करते हैं। इसके लिए कैंडिडेट से आमने-सामने इंटरैक्शन किया जाता है। उनके एक्सपीरियंस, हॉबीज को लेकर नोट्स बनाए जाते हैं। इस तरह से दो से तीन दिनों में एक शॉर्ट एंड कॉम्पैक्ट रिज्यूमे रेडी हो पाता है। दरअसल, रिक्रूटर्स को वही रिज्यूमे अट्रैक्ट करता है, जिसके पहले पन्ने पर कैंडिडेट की अचीवमेंट, क्वालिटीज और एक्सपीरियंस का लेखा-जोखा होता है। इसलिए रिज्यूमे जितना संक्षिप्त और ब्रांड फोकस्ड होगा, यानी जॉब प्रोफाइल के मुताबिक होगा, उतना ही कैंडिडेट को फायदा मिलेगा।?

सक्सेस का पहला स्टेप रिज्यूमे

एक रिज्यूमे करियर की शुरुआत से लेकर रिटायरमेंट तक नौकरी हासिल करने में मदद करता है। रिज्यूमे जितना अट्रैक्टिव और लॉजिकल होगा, उसमें जरूरी इंफॉर्मेशन हाइलाइटेड होंगी, उतना ही रिक्रूूटर का ध्यान उस पर जाएगा। रिज्यूमे के फॉर्मेट में कोई चेंज नहींआया है, बल्कि टेक्नोलॉजी की मदद से उसे और प्रेजेंटेबल बनाया जा सकता है।

संदीप कटारिया, रिज्यूमे राइटिंग एक्सपर्ट एवं सीइओ, एसीएस, दिल्ली

ट्रेंडी हुआ सोशल रिक्रूटमेंट

इंडिया में रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया बदल रही है। बीते तीन सालों में सोशल मीडिया रिक्रूटमेंट एक लोकप्रिय ट्रेंड बन चुका है, यानी सोशल मीडिया से कंपनीज ह्यूमन टैलेंट से न सिर्फ जुड़ रही हैं, बल्कि उनके आइडियाज को भी एक्सप्लोर कर पा रही हैं। रिसर्च से पता चला है कि करीब 92 प्रतिशत कंपनियां आज ट्विटर, लिंक्डइन और फेसबुक के जरिए रिक्रूटमेंट कर रही हैं। इन सोशल प्लेटफॉम्र्स ने एस्पिरेंट्स को भी नई जॉब अपॉच्र्युनिटीज से रू-ब-रू कराया है।

कम समय में हायरिंग

सोशल मीडिया ने हायरिंग से पहले भावी एम्प्लॉयीज की पर्सनैलिटी से लेकर उनके विचारों को जानने का अवसर दिया है। इस समय रिक्रूटमेंट में सबसे ज्यादा इस्तेमाल लिंक्डइन का हो रहा है। ट्विटर पर हर महीने करीब 20 लाख नौकरियों की वैकेंसी निकलती है। कंपनीज की बात करें, तो फॉच्र्यून 500 कंपनीज ने अपने करियर पेजेज पर सोशल मीडिया के लिंक्स दे रखे हैं। वहीं, लक्मे, लॉरियल आदि ने फेसबुक पर अपना एक्सक्लूसिव पेज क्रिएट कर रखा है, जिनके जरिए रिक्रूटमेंट किया जाता है। दूसरी ओर, एयरसेल, एक्सपीडिया और एचसीएल टेक्नोलॉजीज जैसी कंपनीज फेसबुक, ट्विटर औऱ लिंक्डइन पर बाकायदा रिक्रूटमेंट ड्राइव्स कंडक्ट करती हैं, जिससे उनके समय के साथ-साथ पैसे की भी बचत होती है। इंफोसिस, टाटा भी सोशल एचआर के जरिए रिक्रूटमेंट करती हैं।

संतुलित हो प्रोफाइल

ऑनलाइन प्लेटफॉम्र्स पर सोशल मीडिया यूजर्स की संतुलित मौजदूगी होनी चाहिए। कुल मिलाकर आपकी सोशल प्रोफाइल प्रोफेशनल होनी चाहिए, क्योंकि स्टडीज के मुताबिक तीन में से एक एम्प्लॉयर उस कैंडिडेट को रिजेक्ट करने में देर नहीं करते, जिनके ऑनलाइन प्रोफाइल में कुछ आपत्तिजनक या विवादास्पद पोस्ट पाया जाता है। ऐसे में जो कैंडिडेट्स थोड़े जिज्ञासा भरे या बौद्धिक प्रश्न पोस्ट करते हैं, कंपनियां उन्हें प्रिफरेंस देती हैं।

स्किल प्रेजेंटेशन का प्लेटफॉर्म

सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स का रिक्रूटमेंट प्रॉसेस में डुएल रोल होता है। इससे कंपनीज अपनी जरूरत के मुताबिक कैैंडिडेट्स का चुनाव कर पाती हैं। वहींकैैंडिडेट्स को अपने कौशल और दक्षता पेश करने का मौका मिलता है, जो पर्सनल इंटरव्यू में संभव नहींहोता है। इस तरह से सोशल मीडिया ने आज के पूरे वर्क कल्चर को बदल कर रख दिया है।

जफर रईस, सीइओ, माइंडशिफ्ट इंटरैक्टिव, मुंबई

इंटरव्यू फेस-टु-फेस

रिज्यूमे शॉर्ट लिस्टेड होने के बाद आपको इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। आजकल इंटरव्यू का मतलब इंटरव्यू नहीं रह गया है। इसके तहत आपको कई तरह के राउंड्स से होकर गुजरना पड़ता है। मसलन प्री-क्वालिफिकेशन राउंड, ग्रुप डिस्कशन, कम्युनिकेशन राउंड, इंटरपर्सनल रिलेशन राउंड, स्किल टेस्ट, एचआर राउंड, पर्सनैलिटी टेस्ट आदि। इनसे गुजरकर ही इंटरव्यू कंंप्लीट होता है।

प्री-क्वालिफाई राउंड

इस राउंड में आमतौर पर फील्ड से जुड़ी नॉलेज चेक की जाती है। ज्यादातर जगह रिटेन एग्जाम होते हैं। इसमें वर्बल और नॉन-वर्बल दोनों तरह की रीजनिंग के कुछ क्वैश्चंस सॉल्व करने होते हैं। कुछ सवाल सिंपल मैथमेटिक्स, जनरल नॉलेज के भी होते हैं। इसके अलावा, सिचुएशनल बेस्ड क्वैश्चंस भी पूछे जाते हैं।

कम्युनिकेशन स्किल

अक्सर देखा जाता है कि कई कैंडिडेट्स इंटरव्यू के लिए काफी तैयारी करते हैं, लेकिन बोर्ड के सामने अपनी बात सही तरीके से नहीं रख पाते हैं। इसकी दो वजह है, पहला लैक ऑफ कॉन्फिडेंस और दूसरा कम्युनिकेशन स्किल्स की कमी। कम्युनिकेशन का बुनियादी मतलब है एक स्थान से दूसरे स्थान तक सूचना को भेजना। यह स्किल एक-दो महीने में डेवलप नहीं होती। इसके लिए आपको हर तरह के लोगों से मिलना-जुलना चाहिए। अगर आप इसमें झिझकते हैं, तो आप आईने के सामने खुद से भी बातें करके यह स्किल डेवलप कर सकते हैं।

ग्रुप डिस्कशन राउंड

इस राउंड में आपको कुछ और कैंडिडेट्स के साथ बैठाकर एक टॉपिक दे दिया जाता है और डिस्कशन करने को कहा जाता है। इस राउंड के जरिए यह देखा जाता है कि आप कितने

एक्टिव हैं, आपके अंदर लीडरशिप की क्वालिटी कितनी है, आप कितने लॉजिकल हैं और इनिशिएटिव लेने को कितने तत्पर रहते हैं? अक्सर यह डिस्कशन बिना किसी कंक्लूजन के ही खत्म हो जाता है। आपको अपने फ्रेंड्स के साथ बैठकर करेंट अफेयर्स के किसी टॉपिक पर डिस्कशन करना चाहिए। इससे आपमें कई सारी स्किल्स डेवलप होंगी और आप हर इंटरव्यू क्लियर करते जाएंगे, सामने कोई भी हो, आप हमेशा बैलेंस्ड रहेंगे।

साइकोलॉजिकल राउंड

यह राउंड आपकी पर्सनैलिटी को जज करने के लिए रखा जाता है। इसमें आपसे सिचुएशनल बेस्ड क्वैश्चंस किए जाते हैं। इसमें यह देखने की कोशिश की जाती है कि आप कितना स्ट्रेस झेल सकते हैं। आप इमोशनली कितने स्ट्रॉन्ग है। आप डिसीजन लेने के दौरान इमोशंस और प्रैक्टिकलिटी में कितना बैलेंस बनाकर चलते हैं? कुछ जगहों पर साइकोमेट्री राउंड भी होते हैं, जिनमें रिटेन टेस्ट लिए जाते हैं।

स्किल टेस्ट राउंड

इस राउंड में आपके डिपार्टमेंट हेड आपसे वर्किंग फील्ड से रिलेटेड क्वैश्चंस करते हैं। इसका मसकद यह जानना होता है कि अपने वर्किंग फील्ड के प्रति आप कितने अवेयर और स्किल्ड हैं। इसके लिए आपसे सब्जेक्ट से रिलेटेड क्वैश्चंस भी पूछे जाते हैं। थ्योरिटिकल के अलावा आपसे उनके प्रैक्टिकल एप्लीकेशन के बारे में पूछा जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर आप मार्केंटिंग फील्ड में हैं, तो आपसे पूछा जा सकता है कि टेबल पर रखी इस पेंसिल को आप कैसे सेल करेंगे?

एचआर राउंड

इस राउंड में आपके बैकग्राउंड के बारे में क्वैश्चंस होते हैं। वे यह जानने की कोशिश करते हैं कि आप कंपनी के लिए कितने लॉयल रहेंगे? कितने लंबे समय तक कंपनी के साथ काम कर सकेंगे? आपके लिए यह जॉब कितनी इंपॉर्टेंस रखती है? आपके लिए कंपनी के तय वर्किंग शेड्यूल और पॉलिसीज कितने सूट करते हैं?

स्मार्टनेस दिलाता है सलेक्शन

समय के साथ रिक्वॉयरमेंट्स भी बदली हैं और उसी हिसाब से इंटरव्यू का पैटर्न भी। 20 साल पहले भी स्मार्ट कैैंडिडेट्स का ही सलेक्शन होता था, आज भी हो रहा है। बस आज कई सारे राउंड्स हो गए हैं। अगर आप सिंसियर और स्मार्ट हैं, तो सलेक्शन पक्का है।

अनुपम जौहरी, वाइस प्रेसिडेंट ऐंड ग्लोबल हेड (एचआर), इंफोगेन

क्या करें, क्या न करें

-इंटरव्यू के लिए पॉजिटिव नोट्स के साथ जाएं। सभी से कॉन्फिडेंस के साथ आई कांटैक्ट रखें।

-आंसर बहुत लंबे न दें। यदि आपकी फैमिली के बारे में पूछा जाए, तब लंबी-चौड़ी कहानी बिल्कुल न सुनाएं।

-क्वैश्चंस पहले अच्छी तरह सुनें, उसकेे बाद अपने लॉजिकल आंसर दें।

-न ज्यादा एक्स्ट्रोवर्ट हों और न ज्यादा इंट्रोवर्ट। बोर्ड फ्रेंडली होकर रियल पर्सनैलिटी परखना चाहता है।?

-शिष्टाचार का ख्याल रखें। जैसे मोबाइल की रिंगटोन बजने पर फोन कॉल अटेंड कर लेना आपके लिए निगेटिव रिजल्ट ला सकता है।

-कई बार पर्सनल क्वैश्चंस भी कर दिए जाए जाते हैं, जैसे-क्या आपकी गर्लफ्रेंड है? क्या आप शराब या सिगरेट पीते हैं? ऐसे क्वैश्चंस के आंसर बेहद सावधानी से दें।

-बोर्ड मेंबर्स कभी आपको अंडर-एस्टीमेट भी कर सकते हैं और कभी बिल्कुल फ्रेंडली हो सकते हैं। आपको दोनों स्थितियों में बैलेंस्ड रहना होगा।

इनपुट्स :

अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव


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