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जॉब सीकर नहीं क्रिएटर बनें

अपना ड्रीम पूरा करना है, तो एंटरप्रन्योर बनें। जॉब सीकर नहीं, क्रिएटर बनें। इंडिया को जरूरत है ऐसे युवाओं की जो जॉब दे सकें। कहना है, इंटरनेशनल स्कूल ऑफ एंटरप्रन्योरशिप एजुकेशन ऐंड डेवलपमेंट (आईसीड) के सीईओ और फाउंडर संजीव सिवेश का। जानते हैं उनसे उनकी सक्सेस के बारे में... संघर्ष ने दिखाया रास्ता आज

By Edited By: Published: Tue, 01 Apr 2014 02:43 PM (IST)Updated: Tue, 01 Apr 2014 02:43 PM (IST)
जॉब सीकर नहीं क्रिएटर बनें

अपना ड्रीम पूरा करना है, तो एंटरप्रन्योर बनें। जॉब सीकर नहीं, क्रिएटर बनें। इंडिया को जरूरत है ऐसे युवाओं की जो जॉब दे सकें। कहना है, इंटरनेशनल स्कूल ऑफ एंटरप्रन्योरशिप एजुकेशन ऐंड डेवलपमेंट (आईसीड) के सीईओ और फाउंडर संजीव सिवेश का। जानते हैं उनसे उनकी सक्सेस के बारे में...

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संघर्ष ने दिखाया रास्ता

आज मैं जिस जगह पर हूं, उसके पीछे संघर्ष की लंबी कहानी है। भागलपुर के सरकारी स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। कॉन्वेंट स्कूल में कुछ दिनों तक पढ़ाई की, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण स्कूल से नाम कटाकर सरकारी स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। मैं पढ़ाई में हमेशा से ठीक था। बाद में आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग करने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी। सेलेक्शन भी हो गया। फिर दस साल रेलवे में जॉब करने के बाद आईएएस बनने की इच्छा हुई, तो फिर से सिविल सर्विसेज एग्जाम में बैठा और इस बार आईपीएस के लिए सेलेक्शन हो गया। लेकिन पुलिस सेवा में नहीं जाना चाहता था, इसलिए रेलवे की सर्विस को ही जारी रखा।

अलग करने की चाहत

दस साल तक गवर्नमेंट जॉब करने के बाद भी मन में कुछ और करने की चाह थी, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है? तब जॉब छोड़कर लंदन चला गया और वहां क्रैनफील्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। इस दौरान महसूस हुआ कि इंडिया और यूरोपियन एजुकेशन कल्चर में बहुत डिफरेंस है। एमबीए करने के बाद एक कंसल्टेंसी कंपनी में जॉब की। उसके बाद इंडिया वापस आ गया और यहां फायर कैपिटल फंड कंपनी में एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर बन गया। इसके बाद अपनी खुद की कंपनी स्मार्ट वेव एजुकेशन सर्विस प्राइवेट लिमिटेड खोली। यह वेंचर सक्सेस हो गया। फिर स्मार्ट वेव कंसल्टिंग कंपनी शुरू की और वेस्ट बंगाल गवर्नमेंट के लिए टूरिज्म और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम किया।

एंटरप्रेन्योरशिप की नींव

इतना सब कुछ करने के बाद एक दिन खुद से सवाल किया, क्या मैं वह कर पाया हूं जिसके लिए मैंने गवर्नमेंट जॉब छोड़ी। जवाब मिला, नहीं। कुछ और करना अभी बाकी है। इंडिया में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। हर साल कॉलेज और यूनिवर्सिटीज से हजारों नौजवान निकलते हैं, लेकिन उन्हें जॉब नहींमिलती। ऐसे में मैंने डिसाइड किया कि क्यों न यूथ में एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा दिया जाए। इंडिया में ऐसा कोई संस्थान नहीं था, जहां स्टूडेंट्स को एंटरप्रन्योर बनाया जाता हो। इसलिए इंटरनेशनल स्कूल ऑफ एंटरप्रेन्योरशिप एजुककेशन ऐंड डेवलपमेंट (आईसीड) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य देश में ज्यादा से ज्यादा एंटरप्रेन्योर को तैयार करना है।

फेल्योर का कम चांस

मेरा मानना है कि कम उम्र में जब हम कोई शुरुआत करते हैं, तो फेल्योर के चांस बहुत कम होते हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, चैलेंज लेने की क्षमता कम होती जाती है। मैंने आईसीड की स्थापना से पहले कई सर्वे किए थे, जिससे पता चला कि 20 से 25 साल के ज्यादातर स्टूडेंट्स रिस्क लेने से संकोच नहींकरते हैं। उन्हें अपने आइडियाज पर कॉन्फिडेंस होता है, इसलिए वे खुद का स्टार्ट-अप शुरू करने में भी पीछे नहींरहते हैं। हां, इसमें पैरेंट्स का रोल भी अहम होता है। पैरेंट्स अगर बच्चे को सपोर्ट करते हैं, तो उनका मनोबल बढ़ता है। वे पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने फैसले करते हैं। जाहिर तौर पर इससे सक्सेस का रेट कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए चांस लेने से कभी डरना नहींचाहिए।

Profile @ a glance

संजीव सिवेश

(सीईओ इंटरनेशनल स्कूल ऑफ एंटरप्रेन्योरशिप एजुकेशन ऐंड डेवलपमेंट, गुड़गांव)

क्वालिफिकेशन : सिविल इंजीनियरिंग फ्रॉम आईआईटी दिल्ली, एमबीए फ्रॉम क्रैनफील्ड स्कूल ऑफमैनेजमेंट, लंदन

एक्सपीरियंस : एक्स सिविल सर्र्वेट, ऑफिसर इन इंडियन रेलवे

स्टार्ट-अप : स्मार्ट वेव एजुकेशन ऐंड स्मार्ट वेव कंसल्टिंग

टीचिंग : इनोवेशन ऐंड एंटरप्रेन्योरशिप, एमडीआई गुड़गांव

हॉबी : ट्रैवलिंग, लिसनिंग म्यूजिक, रीडिंग हिस्ट्री बुक्स इंटरैक्शन : मो. रज़ा


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