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जल छाजन से पानी संचय नहीं हुआ तो बूंद-बूंद को तरसना पड़ेगा

जल है तो कल है जल ही जीवन है। बावजूद इसके बेवजह पानी बर्बाद होने पर किसी का ध्यान नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल-संकट का समाधान जल के संरक्षण से ही हो सकता है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 08:28 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 08:28 PM (IST)
जल छाजन से पानी संचय नहीं हुआ तो बूंद-बूंद को तरसना पड़ेगा
जल छाजन से पानी संचय नहीं हुआ तो बूंद-बूंद को तरसना पड़ेगा

परमानंद गोप, नोवामुंडी :

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जल है तो कल है, जल ही जीवन है। बावजूद इसके बेवजह पानी बर्बाद होने पर किसी का ध्यान नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल-संकट का समाधान जल के संरक्षण से ही हो सकता है। लोग हमेशा से ही पानी को बर्बादी से बचाने के लिए सुनते आए हैं कि जल के बिना भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसके लिए पानी बचाना बेहद जरूरी है। सरकार जिस तरह से पानी संचय के लिए ग्रामीण क्षेत्र में डोभा निर्माण योजना शुरू की थी। ठीक इसी तरह निचली सतह पर डोभा निर्माण की संख्या में इजाफा करना होगा। जगह-जगह बहते पानी को रोककर रिसाइक्लिंग के लिए जल छाजन योजना शुरू करनी चाहिए। इससे बारिश में बहने वाला पानी एक स्थान पर रूक जाएगी। नोवामुंडी मनसा मंदिर की महिलाओं ने शुक्रवार को 'कितना -कितना पानी' अभियान के तहत दैनिक जागरण प्रतिनिधि से चर्चा करने जल संवाद कार्यक्रम में पहुंची हुईं थीं। मौके पर महिलाओं ने पानी बचाने के लिए आसपास की अन्य महिलाओं में भी जागरूकता लाने की शपथ ली। मौके पर महिलाओं ने पानी बचाने के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने की बात कही। कहा कि जगह- जगह छल छाजन योजना से पानी को बचाया जा सकता है और उसी पानी को रीसाइकिल कर घरों में इस्तेमाल किया जा सकता है। घरों के छत से अधिकतर पानी वर्षा के मौसम में बेवजह बह जाता है। उसे भी एक जगह रोकर सुरक्षित रखा जा सकता है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो भविष्य में लोगों को बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है। मनसा मंदिर मुहल्ले की महिला मुन्नी देबी ने कहा कि जल पृथ्वी पर जीने का आधार है। धरती का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है। इसमें से 97 फीसदी पानी बेवजह बर्बाद हो रहा है। पीने योग्य पानी की मात्रा बहुत कम रह गई है। रीता देबी ने उदहरण देते हुए बताया कि नगरीकरण और औद्योगिकीरण की तीव्र गति व बढ़ता प्रदूषण तथा जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। गर्मी के दस्तक देते ही नोवामुंडी शहरी क्षेत्र के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। लोग हमेशा यही सोचते हैं बस जैसे-तैसे गर्मी का मौसम निकल जाए बारिश आते ही पानी की समस्या दूर हो जाएगी। बबिता देबी बताती हैं कि आज भी शहर में फर्श चमकाने, गाड़ी धोने और गैर-जरुरी कार्यों में पानी अधिक खर्च किया जाता है। प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौहांस आदि की मात्रा अधिक होती है। जिसे पीने से कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। गिरजा देबी ने बताया कि पहले मोदी गेट समीप बहती नदी के पानी से लोग स्नान करते थे। आज आलम यह हो गया है कि जलस्तर पूरी तरह से घट गया है। नदी बह तो रही है परंतु प्रदूषित पानी। फिर भी लोग किसी तरह लोटा व मग के सहारे नहा रहे हैं। ऐसी स्थिति सरकार और आम जनता के लिए चिंता का विषय है। यदि इस दिशा में कदम उठाते हुए सार्थक पहल की जाए तो स्थिति बहुत हद तक नियंत्रण में रखी जा सकती है। इसे नजरअंदाज किया तो निश्चित ही अगले कुछ वर्षों में हम सबके लिए पानी मनुष्य जीवन के लिए चुनौती के रूप में सामने होगा। मौके पर अभियान में शामिल होने वाली महिलाओं में रेखा देबी, सोनी देबी, सुमित्रा देबी, गीता देबी, जैनब खातुन आदि महिलाओं ने भी अपने विचार रखे। ऐसे बचाएं पानी ------गाड़ी धोने के लिए पानी सीमित मात्रा में खर्च करें। -------नल के पानी को कभी खुला नहीं छोड़ें। जिस जगह से पानी बह रही है उसे गड्ढे में जमा किया जाए। ------प्रत्येक घर के छत से गिरते बारिश के पानी की बर्बादी होने से बचाने के लिए सॉफ्ट पिक बनाना अनिवार्य है। --------छोटे-छोटे नहरों के पानी को अपने स्तर से रोककर उसे सिचाई के रूप में इस्तेमाल करें। -------औद्योगिक क्षेत्र में व्यवसायीकरण उपयोग के लिए डीप बोरिग की मात्रा में कमी लाई जाए।


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