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Lok Sabha Election 2019 : रोजगार की तलाश में अपना देश हुआ बेगाना

झींकपानी व टोंटो प्रखंड के गांवों के युवा मतदान में भागीदार नहीं बन पाएंगे। वजह रोजगार की तलाश में उनका अपना ही देश बेगाना हो गया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 03:43 PM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 03:43 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019 : रोजगार की तलाश में अपना देश हुआ बेगाना
Lok Sabha Election 2019 : रोजगार की तलाश में अपना देश हुआ बेगाना

चाईबासा (मो. तकी)। सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में चुनाव आयोग से पश्चिम सिंहभूम जिला प्रशासन तक मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास रहा है। जिले के उच्च अधिकारी सड़क पर उतर कर वोट देने की अपील कर रहे हैं। बच्चे और बूढ़े रैली निकाल कर मतदान के लिए जागरूक कर रहे हैं। इस बीच बुरी खबर यह है कि झींकपानी व टोंटो प्रखंड के गांवों के युवा मतदान में भागीदार नहीं बन पाएंगे। वजह, रोजगार की तलाश में उनका अपना ही देश बेगाना हो गया है। वे कमाने के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर गए हैं। चुनावी पर्व में उन्हें घर लाने की कोई कवायद नजर नहीं आ रही।

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दरअसल पश्चिम सिंहभूम जिले के गांवों में ऐसे वोटरों की संख्या हजारों में है। इस समस्या को जानने के लिए दैनिक जागरण की टीम चाईबासा जिला मुख्यालय से सटे झींकपानी और टोंटो प्रखंड के कुछ गांवों में रविवार पहुंची। कई गांवों में ऐसे घर भी मिले, जहां सिर्फ महिला व बूढ़े लोग ही नजर आए। पूछने पर पता चला कि घर के युवक परिवार के साथ रोजगार के लिए बेंग्लुरू, हैदराबाद, पश्चिम बंगाल, पंजाब, पुणो, हरियाणा, दिल्ली आदि शहरों में चले गए हैं। मतदान के दौरान घर लौटकर नहीं आएंगे। चालगी गांव के रेगा कारवा कहते हैं कि गांव में काम नहीं मिलने की वजह से २० से २५ परिवार, रामाय कारवा उनका भाई छोटा कारवा, मांडवा कारवा, मानकी लोहार, सुखलाल गोप समेत अन्य लोग हैदराबाद काम के लिए पलायन कर गये हैं।

तीन महीने बाद घर लौटेंगे। झींकपानी के अटल नायक ने कहा कि नौजवानों को अपने गांव-शहर में रोजगार नहीं मिल रहा है, इसलिए काम के लिए मजबूरी में घर व परिवार को छोड़कर बाहर चले जाते हैं। झींकपानी तख्ता बाजार के दीपक नायक, विकास नायक, कृष्णा बिरुवा, सोनु लागुरी, सामी, मानिक, सोयो, जोड़ापोखर के सुखदेव बारी, गोङ्क्षवद गोप, अभिषेक गोप, दिलीप गोप, मोंगडु गोप, लक्ष्मण गोप, सेलाय गोप, छत्तीस गोप, अजरून गोप, प्रकाश गोप, जगदीश गोप ऐसे ही युवाओं के नाम हैं, जो इसबार पलायन की वजह से मतदान में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। जब आप कोंदवा, दोकट्टा, बड़ा चालगी, लोकेसाई, नवागांव, चांदीपी, राजांका, नीमडीह आदि गांवों में जाएंगे तो पलायन करने वाले लोगों के नामों की सूची लंबी होती जाएगी। घर-परिवार छोड़ने का दुख इनके बूढ़े परिजन के चेहरे पर भी आप महसूस कर सकते हैं। ७० साल के बुजुर्ग सोमारू कहते हैं कि कई सरकारें बनीं, पर गांव में रोजगार के लिए कुछ नहीं हुआ। आज भी गांव बदहाल ही हैं। पीने के लिए पानी तक नहीं है। खेत सूखे पड़े हैं। युवा क्या करें। पलायन से निपटने के लिए नेता और प्रशासन किसी ने पहल नहीं की।

झींकपानी और टोंटो समेत कई गांव ङोल रहे पलायन

घरों में बचे हैं सिर्फ बुजुर्ग, बड़े शहरों में कमाने गए हैं युवा


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