शोले का खलनायक कैसे बना गब्बर सिंह, राज से हटेगा पर्दा
कोल्हान विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की ओर से अपराध मनोविज्ञान को लेकर शोध कार्य किए जा रहे हैं।
ब्रजेश मिश्र, चाईबासा। कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? इस सवाल का जवाब मिल गया, लेकिन सन 1975 में आई फिल्म शोले का खलनायक गब्बर इनामी अपराधी कैसे बना? इसके पीछे का मनोविज्ञान क्या था, इस प्रश्न का उत्तर अब तक नहीं मिल सका है। बहुत जल्द इस रहस्य से पर्दा उठ सकता है। शैक्षणिक शोध के जरिए इस सवाल का जवाब खोज निकालने की कोशिश हो रही है।
दरअसल, कोल्हान विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की ओर से अपराध मनोविज्ञान को लेकर वृहद पैमाने पर शोध कार्य किए जा रहे हैं। इसमें अपराध, अपराधी, आपराधिक स्वभाव व सुधार का वैज्ञानिक अध्ययन हो रहा है। इस शोध कार्य से झारखंड पुलिस के कुछ अधिकारी भी जुड़े हुए हैं। इसके तहत अपराध के प्रति समाज के रवैया, अपराध के कारण, अपराध के परिणाम, प्रकार एवं अपराध की रोकथाम को लेकर रिसर्च की पृष्ठभूमि बना ली गई है।
विवि के मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. जेपी मिश्र और देश भर में उनके कुछ मनोवैज्ञानिक सहयोगियों की टीम अपराध मनोविज्ञान के अलग-अलग पहलुओं पर पिछले तीन वर्षों से शोध कर रही है। इसके लिए उत्तर प्रदेश के कानपुर तथा उन्नाव की जेलों में बंद अपराधियों के बीच पहुंचकर शोध के लिए डाटा एकत्र किया गया है।
अलग-अलग शोध विषय को अंतिम रूप देने से पहले प्रोफेसर जेपी मिश्र की ओर से अपराध मनोविज्ञान को लेकर रिसर्च पेपर प्रकाशित किया जा रहा है। इसका शीर्षक अपराध, अपराधी और कारावास रखा गया है। अपराध व अपराधियों के कई मौजूदा और कुछ काल्पनिक चरित्रों को केस स्टडी का हिस्सा बनाया गया है। इसमें शोले का अपराधी गब्बर सिंह का भी नाम है।
ऐसे हो रहा अध्ययन:
अलग-अलग शोध विषय के केस स्टडी के लिए अलग-अलग अपराध की प्रवृत्ति, अपराधियों के इतिहास, व्यक्तित्व को शामिल किया गया है। शोध समस्या के रूप में कहा गया है कि ऐसी मान्यता है कि अपराधी किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार होता है। शोषण के प्रतिक्रिया स्वरूप वह अपराध करने की तरह अग्रसर होता है। अगर फिल्म शोले में के गब्बर सिंह के इतिहास के बात करें तो वह अपराध की सजा से बचने के लिए भागने का प्रयास करता है। पकड़ कर जेल में डाल दिए जाने पर वह वापस लौटकर पुलिस अधिकारी से बदला लेता है। पहले से कहीं अधिक बड़ा अपराध करता है।
अपराध व अपराधी को परिभाषित करने का प्रयत्न
विवि में शोध के जरिए अपराध व अपराधी को परिभाषित करने का प्रयत्न किया जा रह है। प्रो. डॉ. जेपी मिश्र ने बताया कि संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी अपराध की व्याख्या करने की चेष्टा की है और उसने भी केवल असामाजिक अथवा समाजविरोधी कार्यों को अपराध माना है। नवीन औद्योगिक सभ्यता में अपराध का रूप तथा प्रकार भी बदल गया है। इसलिए अपराध की पहचान वर्तमान में यही है कि कानून ने जिस काम को मना किया है वह अपराध है। मनाही के बावजूद जिसने वह काम किया वह अपराधी है। अपराधी परिस्थिति का दास हो सकता है। वह विवश हो सकता है, उसे पहचानने का प्रयत्न करना होगा।