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ढिबरी युग में जी रहे सिमडेगा के हजारों लोग, यहां अब तक नहीं पहुंची बिजली

Power crisis. झारखंड के सिमडेगा शहर की बड़ी आबादी को अब तक बिजली का दर्शन नहीं हुआ है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 01:03 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 01:09 PM (IST)
ढिबरी युग में जी रहे सिमडेगा के हजारों लोग, यहां अब तक नहीं पहुंची बिजली
ढिबरी युग में जी रहे सिमडेगा के हजारों लोग, यहां अब तक नहीं पहुंची बिजली

सिमडेगा, वाचस्पति मिश्र। सरकार दिसंबर के अंत तक हर घर तक बिजली पहुंचाने का दावा और वादा करती रही, मगर झारखंड के सिमडेगा शहर की बड़ी आबादी को अब तक बिजली का दर्शन नहीं हुआ है। यह सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि 21वीं सदी में जहां हम विकास के तमाम दावे कर रहे हैं, वहां झारखंड का यह शहर बिजली से वंचित है।

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शहर के सात मोहल्लों खहनटोली, भुड़ूटोली, मैनाबेड़ा, केलेटोली, नवाटोली, कुम्बाटोली और अंबाटोली में अब तक बिजली नहीं पहुंची है। शाम होते ही ये शहरी इलाके अंधेरे में डूब जाते हैं। कोई तीन हजार परिवारों की आबादी बिना बिजली के है। गांव-गांव तक बिजली पहुंचा देने की बात इनके लिए किसी मजाक से कम नहीं। यह अंधेरे में डूबी इनकी जिंदगी पर तंज की तरह है। जाहिर है बिजली नहीं है तो इन घरों में न बल्ब जलते हैं न पंखे चलते हैं। शाम होते ही जब शहर अंधेरे में डूबता है आप किरोसिन की ढिबरी की रोशनी में आंखे गड़ाए बच्चों को पढ़ते हुए देख सकते हैं। चार्ज करने का उपाय नहीं है तो इंवर्टर भी नहीं है। मोबाइल चार्ज करने के लिए भी दूसरे इलाके में जाना पड़ता है।

यह जानना भी कम दिलचस्प नहीं कि जिला समाहरणालय, जहां उपायुक्त बैठते हैं, वहां से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर बसे भुंडूटोली में भी यही हालत है। घरों में बिजली नहीं पहुंची है। यह वही बस्ती है, जिसने समाहरणालय के लिए जमीन दी, जहां पूरे जिले की योजनाएं बनती हैं, शासन चलता है। और ऐसा नहीं है कि ये सात मोहल्ले अचानक शहरी क्षेत्र में शामिल हो गए। अलग झारखंड बनने के समय ही ये नगर परिषद में शामिल हुए थे। भुंड़ूटोली के जेवियर टेटे ने बताया कि इस मुहल्ले के लोगों की जमीन पर समाहरणालय का निर्माण हुआ। यहीं से जिले का काम-काज चलता है। हम शहर के हिसाब से होल्डिंग टैक्स भी देते हैं। मगर इसी का ध्यान नहीं रखा गया।

जन प्रतिनिधि और प्रशासन सब खामोश

सरकार के वादों और घोषणाओं के बावजूद इतनी बड़ी आबादी के घरों में बिजली का न पहुंचना किसी अपराध से कम नहीं। इन इलाकों में रहने वाले भी 99 फीसद लोग अनुसूचित जाति व जनजाति के हैं। जिनके बारे में सरकारें प्रथम प्राथमिकता की बात कहती रही हैं। 75 फीसद आबादी अनुसूचित जनजाति की है। इन घरों में बिजली के न पहुंचने के सवाल पर स्थानीय विधायक हों या जिले के मालिक उपायुक्त का एक ही उत्तर है अच्छा, देखता हूं। यानी सुनने वाले ही खामोश। लोगों के असंतोष का सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। इलाके में रहने वाले लोग लगातार आंदोलन करते रहे मगर कहीं सुनी नहीं गई।

कब आएगी बिजली

ढिबरी की मद्धिम रोशनी में पढ़ रही कशिश टेटे, खुशबू और स्वाती केरकेट्टा ने कहा कि ऐसी स्थिति में पढ़ना काफी मुश्किल होता है। सवाल करती है हमारे घरों में बिजली कब आएगी..। इसी हालत में पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुजर गईं, लेकिन बिजली नहीं आई। हर घर को महीने में सिर्फ दो लीटर ही केरोसिन तेल मिलता है। इसे महीने भर खींचना भी मुश्किल है।


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